रविवार, 10 अक्तूबर 2010

बेटे के जन्मदिन पर अम्मा को ख़त


है कौन-सी ऐसी पगडंडी, जन्नत तक जाती हो अम्मा
जिसपर कम हो थोड़ी फिसलन
और सर पर हो तेरा आंचल
वो कौन-सी ऐसी राहें हैं जो तुझतक आती हो अम्मा।

क्यों कहती हो परवाज़ लो,
क्यों उड़ने को हूं मैं मजबूर
वो कौन-सी ऐसी दुनिया है जो मेरी थाती हो अम्मा।

देखो मेरे छोटे पैर,
कितना थकते और हैं कमज़ोर
फिर दूर देश ही जाने की क्यों बात बताती हो अम्मा।

कहती हो, बड़ा बनोगे तुम
और घर की शान भी होगे तुम।
फिर बड़े हमारे पापा को कितना सताती हो अम्मा।

देखा है छुप-छुपकर तुमको
तुमने जोड़ी हर पाई है।
इतनी छोटी-सी चादर में कैसे काम चलाती हो अम्मा।

उन पनियल आंखों की तो
बोली भी मैं जानता हूं।
लेकिन फिर भी तुम भोली हो, अब बात छुपाती हो अम्मा।

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

कहती हो, बड़ा बनोगे तुम
और घर की शान भी होगे तुम।
फिर बड़े हमारे पापा को कितना सताती हो अम्मा।

-ये क्यूँ.....


बाकी तो बहुत सुन्दर....