सोमवार, 11 अक्टूबर 2010

तुम दोनों के लिए


इन जागती-सोती आंखों में सपनों की आंखमिचौली है
तेरी आधी नींदिया में जब अपनी नींद टटोली है।

दुनिया जब लगती बेमानी और मन खाली-सा लगता हो,
सन्नाटों की कड़वाहट में तब तुमने मिश्री घोली है।

जब रिश्ते ढ़ीले पड़ते हों और घर में दूरी बढ़ती हो
तब यूं ही रूठे लोगों की तू
एक नई हमजोली है।

ना काफ़िर हूं ना पंडित हूं, ना सज्दे में ही झुकता हूं,
फिर भी आयत-सी क्यों लगती बच्चे तेरी बोली है।


ऐसा नहीं कि सब जानूं, ना ही कोई मैं ज्ञानी हूं
लेकिन तेरे संग प्यारे इल्म की दुनिया खोली है।

6 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति....

नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।

Sunil Kumar ने कहा…

तेरी आधी नींदिया में जब अपनी नींद टटोली है।
सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

तेरी आधी नींदिया में जब अपनी नींद टटोली है....
bahut sunder..... ek maa ke liye to yah bhav man ko chhoone wala hai.... ek maa hun to in panktiyon ka arth samajh sakti hun..... sunder rachna aabhar

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन!

Kamlesh Tiwari ने कहा…

bahot khubsurat!

monali ने कहा…

Loved these lines...
ना काफ़िर हूं ना पंडित हूं, ना सज्दे में ही झुकता हूं,
फिर भी आयत-सी क्यों लगती बच्चे तेरी बोली है।