मम्मी सुबह पांच बजे चौके में लग जातीं। अपने कमरे से झांककर देखतीं कि बाबा मॉर्निंग वॉक के लिए निकले हैं या नहीं। फिर पूरा दिन एक टांग पर खड़े होकर चौके में चूल्हा झोंकने में बीतता। पूरे परिवार के लिए तरह-तरह का खाना-नाश्ता बनता और दोपहर बारह बजे नहाने-धोने-पूजा-पाठ करने के बाद मम्मी की प्लेट में पड़नेवाले खाने में कभी सब्ज़ी गायब होती कभी दाल। पूरे दिन रसोई में जूझने, दाल और सब्ज़ी में नमक-मिर्च की आलोचना सुनने के बाद बचा-खुचा खाने की उनकी इस आदत को देखते-देखते मैंने तय किया खाना बनाना और खिलाना दुनिया का सबसे 'अनप्रोडक्टिव' और 'थैंकलेस' काम होता है। ये बात और है कि सबसे ज़्यादा मां के हाथ का खाना खाने की तलब होती है। बाकी, पेट तो कैसे भी भर ही जाता है।
मम्मी त्याग की प्रतिमूर्ति हैं। उनसे कोई भी चीज़ कभी भी मांगकर देखो, मना नहीं करेंगी। ना भी नहीं बोलतीं। इसका फ़ायदा घर-परिवार तो दूर, अड़ोसी-पड़ोसियों ने भी जमकर उठाया। नतीजतन, उनकी शॉल कई पार्टियों में अलग-अलग लोगों ने ओढ़ी (उन्हें पार्टी में जाने की इजाज़त नहीं थी), साड़ियों पर कभी मिठाई का रस, कभी मटर-पनीर की हल्दी गिरी, कानों के बूंदे उतरे, गले की चेन उतरी। मैं ख़ुदगर्ज़ तो नहीं, लेकिन दरियादिल भी नहीं। ना बोलने में खुद को ट्रेन करने लगी हूं बस।
पैंतीस साल में यूट्रस कैंसर हुआ, मौत से जूझकर निकलीं और फिर एक हज़ार बीमारियों का घर बनाकर चलती हैं खुद को। अब इस उम्र में आदत क्या बदले, लेकिन परफेक्शनिस्ट हैं और सफाई का मेनिया है। इस बात से मैंने इतना सीखा है कि हर दो महीने पर अपने शरीर से पूछो, तबीयत और मिज़ाज दुरुस्त तो है, कहीं ओवरहॉलिंग की ज़रूरत तो नहीं? वरना फैमिली हिस्ट्री देख लें तो कई बीमारियां तो रगों में दौड़ती होंगी। दूसरा, आंख मूंदना सीख लिया है। आप दुनिया को अपने हिसाब से नहीं चला सकते और ख़ून इतना भी सस्ता नहीं कि गंदे तवे और बेलन के लिए जलाया जाए।
मम्मी बेहद धार्मिक हैं और बिना नहाए और पूजा किए एक दाना भी मुंह में नहीं डालती। मैं नास्तिक नहीं लेकिन कर्मकांडों में यकीन नहीं करती। मम्मी साल में कम-से-कम 150 दिन व्रत करती हैं, कोई एकादशी प्रदोष नहीं छोड़तीं। मुझसे दो घंटे भी भूख बर्दाश्त नहीं होती। मम्मी तीर्थ और मंदिर दर्शन को अपने जीवन का इकलौता उद्देश्य मानती हैं, मैं तीर्थस्थानों पर भी पर्यटन स्थल ढूंढती हूं। मम्मी त्याग और बलिदान की भाषा बोलती हैं, मैं हक़ का झगड़ा करती हूं। मम्मी टूट-टूटकर संयुक्त परिवार बचाए रखने में यकीन करती हैं, मैं खुद को बचाए रखने की सलाह देती हूं।
ये भी सच है कि ज़िन्दगी के तकरीबन सभी पाठ उनकी ज़िन्दगी को देखकर ही सीखे, और ये भी सच है कि एक रत्ती भी उनके जैसी बन गई तो उम्दा इंसान कहलाई जाऊंगी। आज आपके जन्मदिन पर उन सभी बहस और झगड़ों के लिए क्षमा याचना करती हूं जो हमारे धुर विरोधी विचारों की वजह से हुए। दुआ है कि आपको सेहत भरी और लंबी उम्र मिले। बाकी, दुनिया में मुट्ठी भर लोग भी आपकी तरह हो जाएं तो जन्नत यहीं नसीब हो जाए। क्या मैं अब आपकी तरह बन सकती हूं?
(मम्मी और मेरी ये तस्वीर गांव में छठ की शाम की है)
10 टिप्पणियां:
माँ का व्यक्तित्व ऐसा ही होता है... घने छायादार वृक्ष की तरह...!
जन्मदिन पर यह स्नेहपूर्ण आलेख देख वे निश्चित ही भाव विभोर हो जायेंगी!
उन्हें जन्मदिन की कोटिशः शुभकामनाएं!
बेहतरीन शुभकामनाएं. माँ को जन्मदिन मुबारक हो. आप भी वैसी हो पायें... आमीन.
yaar aapki maa to meri maa jaisi hai aur mein shayad.....khair achchi post,aapki dua kubool ho.
अपने बच्चों पर जान छिड़क छिड़क माँओं ने यह संबंध महान बना दिया।
बहुत ही आत्मीय आलेख ..आँखें नम कर देने वाला...
माँ को जन्मदिन की अनेक शुभकामनाएं
एक ही उदाहरण से लोग अलग चीज़ें सीखते हैं...सुबह से पोस्ट साइडबार में दिख रही थी पर देखना टाल रही थी। फिर अब रहा नहीं गया। मेरी मम्मी भी ऐसी ही थी...और मैं भी खुद को कुछ कुछ आपके जैसा ही पाती हूँ। अब अकेली समझ में नहीं आता की मम्मी जैसा बनूँ तो कैसे बनूँ।
आपकी मम्मी को जन्मदिन की ढेर ढेर सारी बधाइयाँ...मेरा प्यार भी उन तक पहुंचा दीजिएगा। आपने दिल को छूने वाला लिखा है। मन भर आया मेरा।
माँ जी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं ...जीवेम शरदः शतम ....
उनका कठोर त्याग और बच्चों के प्रति समर्पण आपकी पीढी में प्रतिबिंबित हो रहा है!
हमारे यहाँ एक लोक कहावत है बाढ़े पीढी माँ बाप के धर्मे ....और सच यही चरितार्थ हुआ है !
मम्मी फिर भी संतुष्ट, हम फिर भी बेचैन.
क्या कहूँ अनु !! ऐसी माँ है शायद इसलिए ऐसे हम हैं..
आंटी को जन्म दिन की ढेरों बधाई.
ये जो आप लोगो को रुला देने की आदत है, पता नहीं इसके लिए आपका शुक्रगुजार होना चाहिए या नाराज़ परन्तु मेरे लिए ये हमेशा जिज्ञासा का विषय रहेगा की आप लोगो को कैसे पता होता है की कौन सी बात सबसे ज्यादा दिल पे लगेगी|
मुनव्वर साहब ने कहा है "इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है, बहुत गुस्से में होती है तो माँ रो देती है।" आपकी माता जी को जन्मदिन की शुभकामनाएं और संसार की सभी माताओं को शत-शत नमन।
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