नींद में ही कविताएं बुनना
और थोड़े लफ़्ज़ों को चुनना
ख़्वाब इसे ही कहते हैं।
(2)
ये कास के फूलों का मौसम है,
और पत्तों के झड़ने का।
ये ढाक के बजने का मौसम है,
है तितलियां पकड़ने का।
ये मौसम बदलने का मौसम है।
(3)
मेरी ओक में पानी दे दो
पन्नों पर भी बारिश बिखरे
धुंधलें हों कुछ ख्वाब पुराने
नए सपनों का मौसम गुज़रे।
(4)
तुम्हें देखकर
यूं धुलता है गुस्सा
जैसे सावन की बारिश में
धुलती है दिल्ली।
11 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा....शायद मेरी जानकारी में हाईकु की परिभाषा जो है, उसमें खरे नहीं उतरते मगर क्षणिका के हिसाब से उम्दा है.
शुक्रिया। मैंने परिभाषा के दायरे से बाहर कर दिया इन्हें। अब शायद ठीक लगे।
बहुत अच्छी लगी पोस्ट। बधाई।
ओक क्या है? जरा बताइए।
दोनों हाथों को जोड़कर ओक बनता है।
"मेरे हाथों की ओक में
गिर रहा है सावन का पानी
बूंद-बूंद टपकता हुआ।"
शायद इससे स्पष्ट हो।
धन्यवाद।
@
मेरी ओक में पानी दे दो
पन्नों पर भी बारिश बिखरे
धुंधलें हों कुछ ख्वाब पुराने
नए सपनों का मौसम गुज़रे।
अब समझ रहा हूँ। ये पंक्तियाँ बहुअर्थी हैं।
आभार।
आभार आपका...
बहुत ही प्रभावी पंक्तियाँ.....
कम शब्दों में व्यापक फलक को समेटती रचनाएँ...साधुवाद.
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"शब्द-शिखर' पर जयंती पर दुर्गा भाभी का पुनीत स्मरण...
बहुत अच्छी रचना,
यहाँ भी पधारें:-
ऐ कॉमनवेल्थ तेरे प्यार में
तुम्हे देखकर
यूं धुलता है गुस्सा
जैसे सावन की बारिश में
धुलती है दिल्ली
गहन भावों के लिए सटीक बिम्बों का प्रयोग कविता को प्रभावशाली बना रहा है...बहुत सुंदर...बधाई।
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