रात से पावर प्वाइंट में उलझी हूं। सुबह-सुबह क्लायंट के साथ मीटिंग है और भारी-भरकम शब्दों की तैयारी करके नहीं गई तो प्रभाव कैसे छोड़ पाऊंगी? तो, सारा ध्यान कंप्यूटर पर है। बगल में एक मोटी डायरी रखी है जिसमें मेरी कविताओं के साथ फिल्मों के लिए कॉन्सेप्ट से गीतों की पंक्तियां और गृहस्थी के हिसाब-किताब, सब मिल जाएंगे आपको।
रात ग्यारह बजे आद्या आई है झूमती हुई। मेरी नींद के साथ उसकी नींद के साथी भी गायब हैं। एक गुलाबी रंग की कलम है उसके हाथ में।
"कवीता लिख रही हो मम्मा? ये लोग पिंक पेन। इससे अच्छी 'कवीता' निकलेगी।"
आद्या के इतना भर कहने से मुझे पावर प्वाइंट से कुछ घंटे और उलझने की हिम्मत मिल गई है।
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