कैसी बेचैनी है जो तकिए पर लेटी दिखती है।
जहां जाती हूं, घर में पीछे-पीछे चलती है।
लफ़्ज़ हैं कि तितलियों जैसे फड़फड़ाते हैं,
थाम भी लूं तो काग़ज़ पर उतरने से डरते हैं।
आंखों के कोने पर लटका एक आंसू
आज क्यों बाढ़-सा बहने को बेताब है?
क्या उलझन है जो मन में
एक गांठ-सी बनी बैठी है
किसे झकझोरूं, किसको खोलूं।
खिड़की से बाहर आसमां का कोई कोना
अपना नहीं लगता।
नीले-नीले बादलों की नाव
मुझे मंझधार में क्यों छोड़ जाती है
क्यों सब डूबता उतराता-सा लगता है।
सुबह सिरहाने मिला वो ख़्वाब
कुछ कहता ही नहीं,
बस साथ-साथ चलता है।
वो बेचैनी जैसे आंखों में उतर आई है
धूप में भी सब नमनाक दिखता है।
Dreams, that don't speak
I find a dream kept on my bed
The restless one rests on my pillow.
It follows me in the house,
And wherever I go.
Words keep flying around,
Like butterflies.
And won't sit still on the paper,
Even when I hold them by their wings.
One teardrop hangs at one corner
Waiting to inundate my world.
What is that snarl in my heart,
Looks like a knot not willing to open.
What do I shake?
What do I open?
The sky hanging down on my window
Looks so far away.
Blue clouds are like boats,
Which refuse to move from here.
I can't take the plunge.
I can't sit still.
The dream that I found
Doesn't say anything.
Only walks around with me.
The dream has now walked into my eyes,
And the sun seems wet today.
4 टिप्पणियां:
दिल की बात..
निर्वेद
करुण
अब
दूसरे रस भी।
धूप में भी सब नमनाक दिखता है।
खूब लिखा है.... अच्छा लगा
बहुत तरल...सीधे उतरी.
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