सुबह-सुबह बजी है दरवाज़े की घंटी,
बिटिया के लिए आमंत्रण है।
आद्या में विद्यमान हैं अन्नपूर्णा,
ऐसा उन्होंने मुझे याद दिलाया है।
सज जाती है कन्याएं, बिछ जाते हैं आसन,
धुलते हैं पैर, लगा दी जाती है थालियां।
कुमकुम, रोली, अक्षत, फूलों से
पूजीं जाती हैं नौ कन्याएं बार-बार,
साक्षात देवी का आशीर्वाद लिया है उन्होंने।
कल ही देखा था, चीख-चीखकर
कामवाली की बेटी को देते धमकियां,
पकड़ी थी चोटी, खिंचा था थप्पड़,
सूखे, सांवले गालों पर।
"पोते की साइकिल छूने का गुनाह क्यों किया?"
देवी, तू कितने रूपों में विराजमान है!
2 टिप्पणियां:
इंसान में ही है देव और दानव ... देवी और राक्षशी ...
देवि, पथ प्रशस्त कर!
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