उंगली पकड़ती है, पीछे से चलती है,
कहते हैं, मेरी है परछाई बिटिया। घूंघर-से बालों में तितली और पाखी,
रंगों से जीवन को भर आई बिटिया।
साड़ी के आंचल में, चुन्नी के झालर में,
चूड़ी की खन-खन में शरमाई बिटिया।
माथे पे मैंने जो सूरज को रखा तो
किरणों से बिंदिया सजा आई बिटिया।
नन्हीं-सी बांहें और गर्दन का झूला,
मुझको हिंडोला बना आई बिटिया।
अपनी हथेली के पीछे से झांका और
खिल-खिलकर थोड़ा-सा मुस्काई बिटिया।
5 टिप्पणियां:
Amazing Piece AnuJi.
pad ke ankhe gili ho gayi......
बहुत सुन्दर .....
हाला कि ये कविता मैंने किसी दूसरे ब्लॉग पैर पढ़ी और आपका पता मिल गया ......
Respected Anu ji,
First, I am very very sorry, But your kavita is so heart touching that I coudnt stopped
myself.I reproduced it on my blog, So that my friends can read it, Actually I am very new to blogs, So I dont know the manners. But many many thanks for this kavita and for guiding me about right or wrong... Please keep guiding me.
Always yours,
prabhakar kandya
shandar :) Kabhi Sadabahar kabhi harshringar see chayee bitiya...
एक टिप्पणी भेजें