शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

कुट्टी और मेल का खेल


वो आई है लौटकर घर चुपचाप-सी,
कहती है, भाई से कुट्टी हुई है।
नहीं चाहिए उसके खिलौने, और साथ भी
ऐसे रूठी जैसे सुबह ही रूठी हुई है।
नहीं हो तुम मेरी मम्मा अगर पास आएगा वो,
ऐसी एक सख़्त-सी ताक़ीद मुझको हुई है।

लेकिन जो मैं कान पकडू़ं भाई का
तो मुझपर बरसती है।
जैसे कोई गलती ही मुझसे हुई है।
जाने कब मिल जाते हैं दोनों,
पिघल जाता है गुस्सा,
यूं हो जाते हैं फिर एक साथ
जैसे मेरी ही कुट्टी उनसे हुई है!