शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

मॉर्निंग पेज १७ और टैक्सी का इंतज़ार

इतनी सुबह मैं दुनिया के वाहियात कामों में से एक काम कर रही हूं - टैक्सी का इंतज़ार।

सुबह सुबह एयरपोर्ट पहुंचने की जंग एक टैक्सी वाला ही समझ सकता है, फिर भी हर बार कमबख़्त देर से आता है।

रात भर आदित की खांसी ने जगाए रखा। बच्चे को छोड़ कर जाने पर मन और भारी लगता है। उसको जिस दिन एलर्जी से निजात मिल जाएगा, मुझे मेरे गिल्ट से। और उस दिन सारी टैक्सियां वक़्त पर आने लगेंगी। तबतक इस बाज़ीगर के हाथ में एक और गेंद सही। तब तक एक और स्ट्रेस का सबब।

फोन करती हूं उसको। अब लौटने तक मॉर्निंग पेज पन्ने पर।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी रचना।