मौसम कैसे बदलता है? बारिश कहां से आती है? आपके बाबा कहां चले गए? मर जाना किसको कहते हैं? हम सपने कैसे देखते हैं? नींद में धड़कन कैसे चलती है? सोने के लिए आंखें बंद क्यों करनी पड़ती है? कबूतर के बच्चे अंडे से ही क्यों निकलते हैं? बिजली कहां से आती है? आटा कैसे बनता है? रोटी गोल ही क्यों होती है?
थककर मैं अपनी दोनों हथेलियों से उनके मुंह बंद कर देती हूं। अंधेरे में भी उनकी गोल-गोल आंखें सवाल करती नज़र आती हैं।
ये मेरी ज़िन्दगी का सबसे ख़ूबसूरत लम्हा होना चाहिए। मुझपर दो ज़िन्दगियों की जड़ें मज़बूत करने का दारोमदार है। मुझे चुना गया उस वरदान के लिए जिसके लिए कई-कई सालों तक लोग पीर-फकीरों के दरवाज़े चूमते हैं। फिर ये थकान क्यों? क्यों है बंध जाने की शिकायतें? किस बात का मलाल है? क्या नहीं जी पाने का अफ़सोस है?
मातृत्व बंधन लेकर आता है। आप कई फ़ैसले खुद से परे लेते हैं। कॉफी के मग में उडेलकर पी ली जानेवाली बेपरवाह शामें छिन जाया करती हैं, घड़ी की सुईयों की गुलामी बख्श दी जाती है और अपने कपड़ों की सिलवटों में बच्चों के स्कूल ड्रेस के आयरन ना होने की फिक्र दिखाई देती है। घर को कला संग्रहालय बनाने के ख्वाब को दीवारों की लिखे ककहरे में तब्दील करना होता है, सवालों के जवाब ढूंढने के लिए विकीपीडिया की भाषा को सरल बनाने का अतिरिक्त काम (बिना किसी इन्सेन्टिव के) भी करना होता है। घुमन्तू को पैरों के पहिए निकालकर रबर की चप्पलें डालनी होती हैं, और उनके घिस जाने की परवाह दिमाग के आखिरी कोने में ढकेलनी होती है।
ऐसा नहीं कि मैं भाग जाना नहीं चाहती। ऐसा नहीं कि पैरों पर पैर चढ़ाए एक के बाद एक कविताओं की किताबों के पन्ने पलेटने का मन नहीं होता। ऐसा भी नहीं कि शामें बच्चों के होमवर्क के नाम नहीं, एक तन्हा सफर के नाम करने की इच्छा नहीं होती। अपने वजूद का हिस्सा-हिस्सा बंटता है और अपनी क्षमताओं के कहीं आगे जाकर हर वो नामुमकिन काम करना सीखाता है मां बन जाना, जो आपको कोई और रोल नहीं सिखा सकता। कुक, मैनेजर, वकील, जज, टीचर, ड्राईवर, धोबी, आया - ऑल रोल्ड इनटू वन।
चलो सो जाते हैं कि कल भी एक दर्ज़न रोलप्ले करने हैं। वैसे ऊपरवाला ऊब जाता है तो मौसम बदल जाता है, बारिश एक निश्चित चक्र में चलती है, मेरे बाबा आसमान में सबसे ज्यादा चमकनेवाला सितारा बन गए,
मर जाना हमेशा के लिए सुकून में चले जाना होता है, सपने दिनभर मंडराया करते हैं हमारे आस-पास और रात को चुपके से आ जाते हैं आंखों में, नींद में धड़कन भी धीमी चलती है, आंखों को भी आराम चाहिए इसलिए बंद करनी होती है पलकें, कबूतर के बच्चों को अंडों का कवच चाहिए कुछ दिनों के लिए, बिजली का एक घर होता है जहां से तारों का सहारा लेकर हमारे घर आती है रौशनी, आटा गेहूं से बनता है और कल से तिकोनी रोटी खिलाऊंगी तुम लोगों को... कि आज की रात के लिए इतने जवाब काफी हैं।
जो फिर भी तसल्ली ना हो तो वो गाना सुन लो, जो मम्मा बचपन में सुना करती थी कभी-कभी चित्रहार में।
12 टिप्पणियां:
कितने सुन्दर शब्द दे दिए एक माँ की स्थिति को.
माँ का दिल ऐसे ही थककर चूर होता है लेकिन apane
जाए संग कुछ पल बिताना हमेशा मंज़ूर होता है .
खुबसूरत नहीं बेहद खुबसूरत भावनाओं की लड़ी...........
बहुत सुंदर उद्गार ह्रदय के ....सीधे ह्रदय से ही निकले हैं ......जीवन देने के बाद ही मिलती है ,माँ बनकर ही मिलती है वो अद्भुत शक्ति जो इस जीवन का लालन-पालन भी करती है ....!!
आभार इस लेख के लिए ....
माँ क्या क्या नहीं हो जाती है , तभी तो कहते हैं कि माँ बनना अपने आप में सम्पूर्ण होना है !
सवालों के रोचक जवाब अगले सवालों की कड़ी बनेंगे !
अधिकतर तो बस रचना साहित्य में करते रह कर, नारी जीवन की व्यथा-गाथा गाते-सुनाते उम्र गुजार देते हैं.
वाह........
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति......
लाजवाब लेखन.
समटाईम्स आई रियली फील सारी फार यू ....
इतनी संवेदनशीलता ?
तुलसी ने यही लक्ष्य कर कहा था -
सबसे भले वे मूढ़ जिनहि न व्यापत जगत गति ....
कुछ तो असम्वेदनशील होईये ....
आज तिकोनी रोटी बनाकर ! :)
माँ के अंतस के भावों की बहुत प्रभावपूर्ण और सुंदर अभिव्यक्ति..
हृदयस्पर्शी.
यह दायित्वबोध स्वतः उपजता है और यही सृष्टि-चक्र कोमलता से बाँधे हुये है।
मजा आ गया आपके इन शब्दो को पढ कर , मै तो ऐसा कभी नही लिख सकता पर आपको पढकर ही अच्छा लगा
दिन भर लगातार काम काज, भाग दौड़, घर, दफ्तर, बच्चे सब कुछ कुशलता से सँभालने का हुनर, जाने कब एक लड़की को एक ज़िम्मेदार माँ में तब्दील कर देता है - बहुत अच्छा वर्णन किया है आपने !
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