रविवार, 15 अप्रैल 2012

अब तो तुम्हारी भी कर्ज़दार हुई

गूगल मैप्स कहता है कि ऐरोली से बैंड्रा २८ किलोमीटर दूर है। वो मुझसे तीन ट्रेनें और दो ऑटो बदलकर आई है। मेरे पास मेज़बानी के नाम पर जॉगर्स पार्क में समंदर किनारे की ठंडी हवा है, चाय की प्यालियां हैं और मेरे जुडवां बच्चों के दिलफरेब एन्टिक्स हैं। मैं कहीं और, ध्यान कहीं और, बच्चे कहीं और, बातचीत के सिरे कहीं और। ऐसा भी होता है कि कोई आपको आपके ब्लॉग और फेसबुक के ज़रिए जानता हो, चंद टिप्पणियों और जीटॉक के अलावा आपका कोई वास्ता ना हो, बावजूद इसके मुंबई जैसे शहर में एक कोने से दूसरे कोने तक का थका देनेवाला सफ़र करके आपको घड़ीभर के लिए गले लगाने आया हो? ऐसा भी होता है? मैं हैरत में हूं।

हम उम्रभर के रिश्तों का लेखा-जोखा करें तो ज्यादातर गहरे रि श्ते औचक बन जाया करनेवालों में शुमार होते हैं। इनके पीछे कोई तर्क नहीं होता, कोई समझ काम नहीं करती। इनमें स्वार्थ नहीं होता, कोई कॉमन ग्राउंड नहीं होता इसलिए शायद कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इन्टरेस्ट का ख़तरा भी नहीं होता। इनमें अपेक्षाएं भी नहीं होती होंगी शायद, इसलिए जितना मिलता है उतना ही बेइंतहा खुशी दे जाया करता है। ऐसे रिश्तों में अक्सर उलीच-उलीचकर आपपर डाला जाता है प्यार।

बचपन से घड़ीभर में दोस्त बना लेने की वजह से मुझे आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा है। मैं अड़ोसी-पड़ोसी, लंपट-शरीफ सबसे दोस्ती कर लेती हूं। सबपर भरोसा भी उतनी ही तेज़ी से करती हूं। सबके सामने उससे भी तेज़ी से खुल जाया करती हूं। सही नहीं ये, पतिदेव अक्सर कहते हैं। इसलिए क्योंकि पता नहीं पाती अक्सर कि किसी एक ख़ास इंसान से दोस्ती हुई कैसे थी? यकीन करना मुश्किल होगा लेकिन मेरी सबसे क़रीबी दोस्तों में से एक ट्रेन के एक सफ़र में दोस्त बनी थी, अलग-अलग शहरों में होते हुए भी हम एक-दूसरे को सालों तक चिट्ठियां लिखते रहे थे और बुरे वक्त पर उसने सबसे ज़्यादा साथ निभाया मेरा। अब मेरे साथ मेरे पति-बच्चे, भाई-भाभी और मां तक उस ट्रेनवाली दोस्त के दोस्त हैं। कितनी बड़ी राहत है क्योंकि यहां जितनी तेज़ी से लोग मिलते हैं, रिश्ते बनते हैं, उतनी ही जल्दी गुम भी हो जाया करते हैं।

अपनी इस नई दोस्त के लिए मैं लिखना ही चाहती हूं कुछ, क्योंकि दूसरा और कोई तरीका आता नहीं हाल-ए-ज़ेहन बयां करने का। मुश्किल है कि कविताएं लिखना भी नहीं जानती और गद्य तो ख़ैर अपनी फिगर की कमियां छुपा लेने के लिए पहन लिया गया काफ़तान ही समझिए। लेकिन बिना किसी आवरण के शुक्रगुज़ारी की कोशिश में दो ही काम कर सकती हूं - तुम्हें गले लगा सकती हूं और बेतरतीबी से रख सकती हूं यहां टूटे-फूटे शब्द। मेरे सेविंग अकाउंट में डाल दिए गए इन लम्हों का कर्ज़ फिर भी ना उतरेगा।

अव्वल दर्ज़े की अतिव्ययी है ये दुनिया
हमें भी सिखाया करती है
लम्हों और अहसासों को खर्च कर देना
और उनपर भी लगा होता है
डिज़ाईनर आईटम-सा कोई प्राइस-टैग।

समंदर की छाती में डूबती रौशनी की होती है क़ीमत
आंखों में बुझते चांद के बदले
जलनेवाला तेल भी होता है महंगा
यहां घंटे के हिसाब से मिलते हैं पैसे
बिना टेकअवे के मीटिंग्स
कहलाई जाती हैं ज़ाया।

जाने दो,
मैं भी सीख लूंगी क्रेडिट के सहारे जीना
कि तुम्हारा कर्ज़ उतारने को मिल जाए शायद
एक और ज़िन्दगी।

6 टिप्‍पणियां:

Rahul Singh ने कहा…

भरोसा भी तो अपने पर और अपने अंदर ही होता है.

Nidhi Shukla ने कहा…

एक लम्बे इंतज़ार के बाद आज वो दिन आया जिसका मुझे जाने कब से इंतज़ार था और मेरी खुशकिस्मती तो देखिये अनु दीदी - आपके साथ साथ, मुझे आदि और आद्या से मिलने का मौका भी मिला, आपके भाई साहब और भाभी से भी मुलाक़ात हो गयी, इसे कहते हैं खुशियों का कम्प्लीट पैकेज, जैसे भगवान् ने आज का दिन मेरी तमन्नाओं को पूरा करने के लिए ही बनाया हो, कुछ भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्द कम पड़ते हैं, कुछ खुशियों को समेटने के लिए दो हाथ भी कम पड़ते हैं, और कभी कभी किसी से मन के तार ऐसे जुड़ जाते हैं, मानो जन्मो का नाता हो, आपने मुझसे मिलने के लिए वक़्त निकाला, बड़ा अच्छा लगा, इतने अपनेपन से तो आज के इस दौर में वो भी नहीं मिलते जिनसे हमारा खून का रिश्ता होता है, आज की भागती ज़िन्दगी में वक़्त ना होने का बहाना सबसे आसान बहाना जो है, पर दिल के रिश्तों को किसी बहाने की ज़रुरत नहीं होती, जिनसे हम सच में मिलना चाहते हैं, उनसे मिलने के लिए इंतज़ार भले करना पड़े, पर एक दिन वो वक़्त ज़रूर आता है जो हमें ये एहसास दिलाता है, की 'देर आये दुरुस्त आये'| सच कहूं तो - मुझे ना तो सफ़र ने थकाया, ना ही इंतज़ार ने, मन खुश हो तो उर्जा का स्तर अपने आप बहुत बढ़ जाता है, उम्मीद करती हूँ की आपसे जल्द ही फिर मुलाक़ात हो, और ऐसे एनर्जी बूस्टेर्स मुझे मिलते रहे :-)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यदि कहीं मन लगा हो तो हर मोड़ एक पग सा लगता है।

poonam ने कहा…

मैं भी सीख लूंगी क्रेडिट के सहारे जीना
कि तुम्हारा कर्ज़ उतारने को मिल जाए शायद
एक और ज़िन्दगी।..bahut khub

Arvind Mishra ने कहा…

मुम्बई की बाहों में हैं आप जन्नत और दोजख एक साथ जहां मौजूद हैं ...९१-९३ दो वर्ष था वहां ...
आपकी आगे की पोस्ट आपके मुंबई प्रवास की गतिविधियों ,कुशल क्षेम की जानकारी देती रहे ....

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

excellent piece of writing.........
well expressed!!!!

anu