गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

सैलेड डेकोरशन, क्रॉस स्टिच, चांद, कहानी, सपना

मैं जहां खड़ी हूं वो किसी स्कूल की इमारत लगती है। स्कूल हो ना हो, कोई शैक्षणिक संस्थान तो ज़रूर है। मुझे यहां होना चाहिए, मैं सोचती हूं। क्लासरूम्स में लगी हुई लकड़ी के मेज़ और कुर्सियां बेतरतीबी से बिखरी पड़ी हैं। इन्हें किसी ने दुरुस्त क्यों नहीं किया? कभी लगता है, पहली मंज़िल पर हूं, कभी त्रिशंकु से लटके होने-सा गुमां होता है।

ऊपर देखती हूं तो दस-बारह लोग बालकनी की रेलिंग से लटकर आसमान की ओर देख रहे हैं। सब एक कतार में खड़े हैं और उनसे किसी ने चांद पर कहानी लिखने को कहा है। कहानियों के बेतरतीब टुकड़े कानों में पड़ रहे हैं। मैं उनमें से दो-तीन लोगों को पहचानती भी हूं। उमेश, दु्र्गेश और सम्राट। मुझे वहां होना चाहिए। मैंने भी तो लिखी थी चांद पर एक कहानी, आद्या और आदित के लिए।

तुम्हें वहां दाख़िला नहीं मिलेगा, मेरे कॉलेज की एक बैचमेट है जोयिता, वो कहती है मुझसे। मैं जिरह नहीं करती और उसके पीछे-पीछे उस क्लास की ओर चल देती हूं जहां दाखिला मिल जाएगा। जोयिता को मैंने पहले कहीं देखा है, ये याद नहीं आता कि कहां। अरे हां, ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी कैंप में वर्धा गए थे हम साथ। सेंट स्टीफेंस के दो लड़के भी तो थे - एकलव्य और वेंकट। वेंकट जाने कहां है, एकलव्य के पापा तो मेदान्ता में थे। कैंसर हुआ था उनको।

जोयिता के साथ मैं जिस क्लास में खड़ी हूं वहां सब सलीके से बैठे हैं। दीवारों पर पेंटिग्स हैं, पढ़ने-लिखने वाली मेज़ों पर भी मेज़पोश, कोने में रखी केन के लैम्प से रौशनी जिसके चेहरे पर छन-छनकर आ रही है उस लड़की को भी मैं पहचान गई हूं - पूजा प्रकाश। मेरे स्कूल में थी और मुझे स्कूल छोड़े कोई सोलह साल हुए। पूजा अपनी हथेलियां दिखाती है मुझे - कई रंग हैं उनपर। हल्दी वाला रंग एक साफ दिख रहा है। हम फैब्रिक पेंटिंग करते हैं यहां, और ब्लॉक प्रिंटिंग भी। मैं अपने बनाए दुपट्टे ओढ़ती हूं और ये देखो, क्रॉस स्टिच से बनी चादर। तुम भी सीख जाओगी, अनु। मर गई। ये कहां ले आए मुझे? ये काम तो मुझसे कभी नहीं होगा। मुझे तो ऊपरवाली क्लास में होना था। हो जाएगा, ये मुकुट भी बना पाओगी तुम। सैलेड डेकोरेशन से बना हुआ मुकुट? छी।

प्यास लग आई है। आस-पास रखी बोतलों में से एक उठा लेती हूं, फिर सोचती हूं कि किसी ने जूठा तो नहीं किया होगा इसे? नहीं किया, लेकिन पानी पुराना है , जोयिता कहती है। बाहर नल है, वहां से भर लेना ताज़ा पानी। मैं बोतल लेकर बाहर आ गई हूं। मुझे वापस चांद पर कहानी लिखनेवाली क्लास में जाने देंगे क्या? बाहर पानी से भरी कई बाल्टियां रखी हैं, लबालब भरी हूई। बोतल का पुराना पानी फेंकना नहीं चाहती, इसलिए थोड़ा-थोड़ा पानी मैं सभी बाल्टियों में भरने लगी हूं। पानी छलककर नीचे गिर आया है। मेरे पैरों के आस-पास है पानी। नल से जो पानी भर रही हूं, गंदा है। मैं पानी बहने देती हूं, साफ पानी के इंतज़ार में।

लेकिन ये दर्द कैसा है बांह में? प्यास भी तो बुझी नहीं। घबराकर जाग जाती हूं। सपना था, जाने कैसा। आद्या मेरी बांह पर सो रही है पिछले घंटों से, दर्द इसलिए है। उसे धीरे से उतारकर फोन में वक्त देखती हूं - तीन बजे से ही नींद को तिलांजलि।

सपने सबकॉन्शस माइन्ड, हमारे अर्द्धचेतन मन (कई बार चेतन भी) का परिचायक होते हैं। होते ही होंगे, और इन बेतरतीब टुकड़ों का कोई तो मतलब होगा। मम्मी ने कहा, सपने में पानी बीमारियों का घर होता है। तुम पानी में गीली नहीं हुई तो बच गई। ऐसा ही हो, मां!

7 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

यादों के झरोखों से झांकना कभी कभी अच्छा लगता है...सुन्दर प्रस्तुति...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हमारी सपनों की बाल्टी तो सदा ही खाली रहती है।

पश्यंती शुक्ला. ने कहा…

Pata nhi kis kis blog se ghoomty ghoomty GHUMANTU par aa gai..Ghoomna bekar nhi hua...ab humesha ghooma kroongi..ha ha ha...Ur issues r really very unique

Arvind Mishra ने कहा…

कुछ अजीब सी बात है ..मेरे कई मित्र इन दिनों सपने देख रहे हैं और उन पर चर्चा ..कैसा संयोग है एक स्वप्न चर्चा यहाँ भी ..और मजे की बात कि मैं इन दिनों खुद अजीब अजीव से सपने देख रहा हूँ -पत्नी स्वप्न विचार करती हैं -सगुन अपसगुन बताती हैं ...
मैं कंधे उचका देता हूँ हर बार, बार बार..मगर आपके इस स्वप्न की चर्चा उनसे करूँगा -उनके पास सपनो के अर्थ यथार्थ विश्लेषण का प्रचुर लोकार्जित ज्ञान है! बहरहाल आपका स्वप्न दर्शन शुभ हो !

Arvind Mishra ने कहा…

पुनश्च : लीजिये उन्होंने बता भी दिया ..
पानी में डूबना बीमारी का संकेत
और पानी देखना मतलब इज्जत बढ़ना
आपकी इज्जत ऐश्वर्य में इजाफा हो :)

Arvind Mishra ने कहा…

पुनश्च : लीजिये उन्होंने बता भी दिया ..
पानी में डूबना बीमारी का संकेत
और पानी देखना मतलब इज्जत बढ़ना
आपकी इज्जत ऐश्वर्य में इजाफा हो :)

डॉ .अनुराग ने कहा…

आखरी लाइन बहुत खूबसूरत है .
बचपन से सपने देखने की बीमारी है मुझे . दोपहर में कभी झपकी लेता हूँ तो भी. किताबे कहती है याददाश्त पर असर पड़ता है .ब्रेन वेव काम जो करती रहती है .