१
बहुत बढ़ गई है महंगाई
कि हाफ़िज़ सईद पर है
दस मिलियन डॉलर का ईनाम
और क़ीमती हो गई हैं
आईपीएल की टिकटें
झीना हिकाका के बदले
मांगे गए हैं दो-चार और कॉमरेड
कुपोषण से लड़ने के लिए
बढ़ गया है सालाना डोनेशन
बाल काटने के लिए
पच्चीस रुपए ज्यादा लेगा नाई
एक इंसान की जान है
मुद्रास्फीति के विषमचक्र से बाहर।
२
उदास
बदहवास
कोई प्यास
नहीं पास
धीमी सांस
ना कोई आस
खुशी का कोई लम्हा
बेतुका लगता यहां!
३
भूला हुआ वक्त
भूले हुए लोग
भूला हुआ घर
भूला हुआ कल
भूली हुई यादें
भूली हुई बात
भूली हुई शाम
भूली हुई रात
एक तुम ही नहीं
गुमशुदा इन दिनों
एक मैं ही नहीं
भूली अपना रास्ता।
४
बुनते रहना
ख्वाबों के तिलस्म
सजाए रखना
दुखों का बाज़ार
बनाए रखना
चांद को बंदी
जिलाए रखना
सच्चा-झूठा प्यार
बचाए रखना
अनगढ़ कविताएं
बढ़ाए जाना
दंतकथाओं का कारोबार
तुमपर दूसरे की तकलीफ़ों का है दारोमदार
मैं भी समझूंगी भ्रम को सच बार-बार।
५
चुभते हैं दर्द के कांटे
सीना भी भारी-सा लगता है
रुकी रहती है सांस इन दिनों
कोई डर बस साथ चलता है
रंग-बिरंगी गोलियां
बच्चों को मम्मा की जेम्स लगती हैं
मैं पॉपिन्स को याद करती हूं बार-बार
कैंडीज़ नहीं,
ज़िन्दगी को बॉक्स ऑफ चॉकलेट्स
बनाने का कोई हुनर मालूम है दोस्तों?
8 टिप्पणियां:
मुद्रा की मुद्रा हर दिन बदल रही है।
कुछ लोगों में कुछ अतिसामान्य बीमारियाँ सामान अनुपात में पाए जाते हैं..
ये दनादन पोस्टें...ये बडबडाना, लोग कहें कि कहीं उन्हें खंड मनस्कता तो नहीं गाड फार्बिड!
मजाक है -इन रचनाओं की गहराई उद्वेलित करती है -टेक केयर!
भूला हुआ वक्त
भूले हुए लोग
भूला हुआ घर
भूला हुआ कल
भूली हुई यादें
भूली हुई बात
भूली हुई शाम
भूली हुई रात
एक तुम ही नहीं
गुमशुदा इन दिनों
एक मैं ही नहीं
भूली अपना रास्ता।
बहुत सुन्दर...........बधाई.
arey vaah .... bahut khoob ,.... pahli baar aayi ..achha lagaa yaha aa kar
जब अपनी खोज खोज शुरू की है तो फिर ये संसार के कंकड़-पत्थरों के गीत में तो नहीं मिलेगा. कुछ अन्दर के गीत को सुनिए और लिखिए.
मैं कौन? इसी एक सवाल की तलाश में तो उम्र गुज़ार रहे हैं। जवाब मिला तो लौटकर बताती हूं।
मैं कौन? का जवाब तो अन्दर ही मिलता है, बाहर तो सभी खोजते हैं, किसी ने नहीं पाया, आखिर में राख हाथ आती है. हाँ अन्दर खोजने वालों को जरूर मिला है. लेकिन वो फिर बाहर आ नहीं सके. कभी कोई कृष्ण ने आत्मा के स्वर बजाये हैं, कभी किसी बुद्ध के मौन का संगीत सुना गया है. कभी मीरा नाच उठी.
सुन्दर ,सार्थक रचना,बेहतरीन, कभी इधर भी पधारें
सादर मदन
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