हम साथ होते हुए भी एक-दूसरे से इतने जुदा कैसे हो जाते हैं?
हो ही तो जाते हैं क्योंकि एक ही घर में अजनबी हो जाते हैं दो इंसान। भाई-भाई में जन्मों की दुश्मनी हो जाती है, परिवार विघटित हो जाते हैं, घर टूट जाया करता है, रिश्ते बिखर जाया करते हैं। इन सभी की जड़ एक अहं होता है जो टूटता ही नहीं। जाने किस पत्थर का बना होता है हमारा अभिमान।
अहं ही आड़े आ रहा है कि फोन नहीं कर पा रही हूं उस दोस्त को। क्या कहूंगी? कैसे कहूंगी कि इतने सालों तक तुम्हें याद भी किया लेकिन तुम्हारे बिना जीने की ऐसी आदत पड़ गई है कि तुम हो ना हो, कोई फ़र्क़ पड़ता नहीं, फिर भी पड़ता है। पहले प्यार को एक टीस बनाकर जिए जाने का दर्द भी ऐसा ही होता होगा शायद, बचपन की दोस्त को खो देने के जैसा।
अहं आड़े आ जाता है और कई बार शुक्रगुज़ारी के तरीके भूल जाते हैं हम। कई बार साथ होते हुए भी कह नहीं पाते, ना होते तो क्या होता। मैं अपने अहं की वजह से सबसे भाग रही हूं इन दिनों क्योंकि कभी-कभी पलायन इकलौता रास्ता होता है। दर्द के तार में झूठी-सच्ची टीस के मोती गिन-गिनकर पिरोना ज़िन्दगी में रुचि बचाए रखता है क्योंकि उन्हीं के दम पर दिलफ़रेब कहानियां रची जा सकती हैं, पोस्ट लिखकर वाहवाहियां जमा की जा सकती हैं।
ये सारी तकलीफ़ें झूठी-मूठी हैं, हमारी अपनी पैदा की है, हमारे अपने दिमाग की उपज। इसलिए क्योंकि दर्द में डूबा इंसान किसको दिलकश नहीं लगता? मन मारकर जीनेवाली अपनी कहानियां सुनाकर सहानुभूतियां जमा करके सबसे मशहूर हुआ जा सकता है, कई दिलों में डेरा डाला जा सकता है। आंसू बहाकर, अपनी दुख-गाथा सुनाकर सबसे ज्यादा दोस्त और हितैषी बना सकते हैं आप। कमज़ोर, टूटे हुए इंसान पर सबको प्यार आता है, सीधे तौर पर उससे ख़तरा सबसे कम होता है इसलिए। ट्रैजडी हिट होती है, ट्रैजिक एंडिंग वाली लव स्टोरी सुपरहिट।
कह दो कि इतनी तकलीफ़ में हैं कि आस-पास उड़ते फिरते शब्दों को सलीके से एक क्रम में रख देना नहीं आ रहा तो सबसे ख़ूबसूरत कविता बनती है। इसलिए आओ झूठे-सच्चे दर्द जीते हैं। आंसुओं को बाहर निकालने के एकदम झूठे बहाने ढूंढते हैं। सिर को दीवार पर मारकर टीस पैदा करने के तरीके ईजाद करते हैं। आओ रोना रोते हैं कि फिर बेमुरव्वत निकली ज़िन्दगी और हौसले ने तोड़ दिया है दम फिर से। आओ, दूर बैठे किसी ना मिल सकने वाले साजन की दुहाई देते हुए फिर से कच्चे-पक्के गीत लिखते हैं। आज की रात मेरे पास मेरी बचपन की दोस्त के ना होने का बहाना है।
8 टिप्पणियां:
हम भूलते नहीं बस खुद को समझाते है हमें कुछ याद नहीं ...मेरी भी एक मित्र जिसके साथ 6th से जॉब तक का साथ रहा आज इसी शहर के एक कोने में है ..मैं हज़ारों किलोमीटर का फासला तय करने वाली वो २० किलोमीटर की दूरी नहीं तय कर पा रही ...
क्या कहें! सोचते हैं सलाह दे डालें कि अपनी पोस्ट का लिंक एस.एम.एस. कर दीजिये।
इतना अहम भी मनुष्य को कितना अकेला कर देता है न ..फिर आखीर में बचती हैं बस केवल काट खाने वाली तनहाईयाँ--लौटिये लौटिये कहीं देर न हो जाय !
यादों में डूबी खुबसूरत पोस्ट ऐसा हो ही जाता है
अहम् की दीवार लांघ लो...जल्दी से जल्दी...और जाकर गले मिल लो....कुछ कहने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी
बस एक बार बात कर लें...
। ट्रैजडी हिट होती है, ट्रैजिक एंडिंग वाली लव स्टोरी सुपरहिट।
कितना त्रासद है यह हास्य और कितना हास्यास्पद है ये त्रास
Anu ji bilkul sahi likha hai aapne hota hai asa bhi hota hai pr etne din milne ka bhi apna ak alag hi maza hoga.
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