बुधवार, 28 नवंबर 2012

फिर से पढ़ी है एक दुआ

उससे मैं कई सालों बाद मिली। हमने अपनी ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल लम्हे गुज़ारे हैं एक साथ। जिन दोस्तों के साथ कॉफी, मुस्कुराहटों और ऐश के दिनों का साथ रहा हो उनके साथ का रिश्ता ख़ास होता ज़रूर है, लेकिन जिन दोस्तों ने मुश्किल दिनों में साथ दिया हो उनसे एक ज़िन्दगी का ही नहीं, कई ज़िन्दगियों का वास्ता होता है। साथ बहाए जाने वाले आंसू बहते नहीं हैं, कहीं भीतर समंदर बनकर हिलोरें खाते रहते हैं। अपनी गहराई का अंदाज़ा भीतर उमड़ने-घुमड़ने वाले उसी समंदर से लगता है, और उस गहराई का अंदाज़ा दिलाने वाले दोस्त कभी विस्मृत हो ही नहीं सकते।

इसलिए हमने भी एक-दूसरे को याद रखा, दो अलग-अलग देशों में होते हुए भी, कई सालों में सिर्फ चार बार मिल पाने के बावजूद भी, एक-दूसरे की शादियों, एक-दूसरे के बच्चों के आने के लम्हों की खुशियां सिर्फ फोन पर बांट सकने की मजबूरी के बाद भी।

मैं उसके साथ गुज़ारे दिनों को याद करती हूं तो हैरत से भर जाती हूं। ज़िन्दगी में हर मोड़ पर चौराहे मिल जाया करते हैं, लेकिन कुछ मोड़ वाकई दुरूह हुआ करते हैं। ज़िन्दगी नाम की सड़क पर से वापस जाने का कोई रास्ता नहीं होता, और आगे की चोटियों और खाई से निकलने का लाइफ स्किल कोई सिखा नहीं सकता। गलत-सही ही सही, हम खुद ही अपने लिए रास्ते बनाना सीख जाते हैं। मैंने और उसने भी सीख लिया था। अगर हम लड़खड़ा गए होते तो? अगर कोई रास्ता ना निकल पाता तो?

उसकी मुश्किलें मुझसे बहुत भारी थीं। उसके पास घर नहीं था, वो शौहर नहीं था जिससे उसने टूटकर प्यार किया। मेरे पास एक नौकरी-भर ही तो नहीं थी। एक अजनबी शहर में एक अजनबी घर में बहुत सारी अजनबियत के बीच हम अजनबी से दोस्त हो गए - कुल पांच महीने के लिए। उस पांच महीने की दोस्ती में हमने कई ज़िन्दगी जी ली थीं, और अपने-अपने रास्ते चले गए। दस साल पहले उसके साथ मैंने अपनी सालगिरह कैसे मनाई, ठीक-ठीक याद भी नहीं। जुहू चौपाटी पर समंदर किनारे रेत पर नंगे पांव चलते हुए शायद, कई सारी नाउम्मीदियों के बीच बहुत सारे हौसले जुटाते हुए शायद... या अकेले-अकेले रोते हुए शायद।

ये कैसा इत्तिफ़ाक था कि ठीक दस साल बाद मेरी ही सालगिरह पर हम फिर आमने-सामने थे - हंसते, खिलखिलाते और एक-दूसरे को जीभर के गले लगाते हुए। हमारे पास गिनने को कुदरत और किस्मत की कितनी ही सारी कृपाएं तो थीं! हम फिर ढेर सारे आंसू बहा रहे थे। इस बार आंसू खुशी और कृतज्ञता के थे।

हिंदुस्तान में लाइफ एक्सपेक्टेन्सी सुना है कि 68 हो गई है। उस लिहाज़ से मैंने अपनी उम्र का करीब-करीब आधा सफ़र तय कर लिया है। इस आधे से मुझे कोई शिकायत नहीं। बल्कि, इससे बेहतर तो कुछ हो ही नहीं सकता था। अपनी ब्लेसिंग्स गिनने बैठूं तो गिनती भूल जाऊंगी कि इतना प्यार बहुत किस्मत से मयस्सर होता है। बहुत-बहुत सारा दुलार करने वाला मायका, बहुत-बहुत सारा प्यार करने वाली ससुराल, बहुत-बहुत सारा प्यार करने वाले भाई-बंधु-ननद-भौजाई और कम-से-कम ऐसे बीस दोस्त जिनके बारे में मैं इतनी ही संजीदा होकर घंटों बात कर सकती हूं और बेमतलब डायरी के पन्ने भर सकती हूं... फोन सुबह से बजना बंद नहीं हुआ, फेसबुक ने उन दोस्तों को भी मेरे लिए शुभकामनाएं भेजने की याद दिला दी जिनसे मेरा रिश्ता सिर्फ ब्लॉग और स्टेटस अपडेट पढ़ने का है। पिछली दो शामों से घर उन ख़ास दोस्तों के कहकहों से भरा है जिनके बच्चों को मैं बड़े होते देखना चाहती हूं, जिनके साथ बुढ़ापे का रिश्ता निभाना चाहती हूं। इतनी सारी मोहब्बत का वसीयतनामा किया जा सकता तो सबके बीच बांटकर जाती। प्यार भी तो आखिर बांटने से बढ़ता है।

ना जाने कौन-सी ऐसी ताक़त है जो हमारा मिलना-बिछड़ना, खोना-पाना, सुख-दुख, मरना-जीना तय करती है। लेकिन वो जो भी ताक़त है, उसका शुक्रान। दुआ बस इतनी है कि जो हासिल हुआ, बचा रहे। इसके सहारे बाकी का रास्ता बड़े मज़े में कट जाएगा। वो सारे दोस्त बचे रहें, जिनसे मेरा आंसुओं का रिश्ता है। वो बचे रहेंगे तो ज़िन्दगी में आस्था बची रहेगी।

मैं बहुत खराब गाती हूं, फिर भी ख़ुद को गुनगुनाने से रोक नहीं पाई, इस उम्मीद में कि ऐसी ऊटपटांग नज़्मों-गीतों को भी कभी को आवाज़ मिलेगी, कभी कोई सुर में पिरोएगा। और नहीं, तो दस साल बाद मेरे बच्चे ही सही। :-)


फिर से पढ़ी है एक दुआ
फिर से कहा है एक बार

ऐसी रहे जो हर सुबह
ऐसी मिले जो फिर से शाम
कह दूं तुझे ऐ ज़िन्दगी
फिर से लगी दिलचस्प है
किस्मत ने जो भी है लिखा
जो भी मिला, सब ख़ूब है
ये प्यार के जलते दीए
ये रौशनी के सिलसिले,
मेरे दिल ओ घर-बार पर
मेरे विसाल-ए-यार पर


फिर से पढ़ी है एक दुआ
फिर से कहा है एक बार


वो बचपन था जो कमाल था
जो थी जवानी, मस्त थी
ये ज़ुल्फ जब सर हो चले
फिर भी रहे अलमस्त-सी
बाकी रहें ये कहकहे,
गिरते रहें आंसू कहीं
मिलता रहे ऐसा चमन
बाकी रहे एक शुक्रिया
मेरे दिल ओ घर-बार पर
मेरे विसाल-ए-यार पर


फिर से पढ़ी है एक दुआ
फिर से कहा है एक बार



10 टिप्‍पणियां:

के सी ने कहा…

ज़िंदगी के कुछ किरदार पार्श्व से कुछ इस तरह "वाक इन" करते हैं जैसे पर्दे के पीछे खड़े थे। उकताहटों की उबासियाँ खाते हुये खुद को खारिज करते जाने के दिनों के दिनों मे भी भूल नहीं पाते हैं जिन किरदारों को...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हम इतना गहरे डूब जिये,
सब लोग कहें, क्या खूब जिये।

monali ने कहा…

Dua k lie.. Amen!!! :)

shikha varshney ने कहा…

AAMEEN...

अनूप शुक्ल ने कहा…

बहुत अच्छा गाया है। खूब सारी शुभकामनायें।

Arvind Mishra ने कहा…

आप तो फिर भी मजे में हैं बल्ले बल्ले ...मगर इनका भी तो सोचिये ....
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते हम तो बस इंतज़ार होता :-(
आपकी नज़्म पर दिल आ गया ,सच्ची !

Arvind Mishra ने कहा…

आप तो फिर भी मजे में हैं बल्ले बल्ले ...मगर इनका भी तो सोचिये ....
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते हम तो बस इंतज़ार होता :-(
आपकी नज़्म पर दिल आ गया ,सच्ची !

Arvind Mishra ने कहा…

आप तो फिर भी मजे में हैं बल्ले बल्ले ...मगर इनका भी तो सोचिये ....
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते हम तो बस इंतज़ार होता :-(
आपकी नज़्म पर दिल आ गया ,सच्ची !

Arvind Mishra ने कहा…

आप तो फिर भी मजे में हैं बल्ले बल्ले ...मगर इनका भी तो सोचिये ....
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते हम तो बस इंतज़ार होता :-(
आपकी नज़्म पर दिल आ गया ,सच्ची !

Arvind Mishra ने कहा…

आप तो फिर भी मजे में हैं बल्ले बल्ले ...मगर इनका भी तो सोचिये ....
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते हम तो बस इंतज़ार होता :-(
आपकी नज़्म पर दिल आ गया ,सच्ची !