गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

किस कमबख्त को कविता कहनी है?

मुझे मीटर की पहचान नहीं, तुकबंदी-बेतुक कुछ नहीं समझती। अलंकार, प्रतीक और बिंब सब अबूझ। एक अज़ीज़ दोस्त के मुताबिक तो मुझे कविता लिखनी भी नहीं आती। लेकिन सोचे हुए से मजबूर हूं। कौन कमबख़्त यहां कवयित्री बन जाने के लिए लिखता है? किस कमबख़्त को भरा हुआ ऑडिटोरिम और तालियों की गड़गड़ाहट चाहिए? यहां तो दिमाग में चली आ रही पंक्तियों से निजात पाना है, कविता हुई तो ठीक, ना हुई तो मेरी बला से।

बच्चों, मम्मा का ब्लॉग पढ़ोगे पांच साल बाद तो जीभर के हंस लेना। अभी मेरे कहने की बारी है।

मौजों से लड़ने का दम नहीं
फिर भी
जुबां पर बेवजह उम्मीद की रट है
जो साहिल दूर है तो क्या, 
कुछ ऐसा कर मेरे ख़ुदा
दो-चार दिन की ख़ातिर
मुझे पतवार दे, मुझको 
सफ़र में नाख़ुदा बना

उसका सांस पर हक़ है
कहे तो
रूह में लिपटी बदन की आग भी दे दूं
जो इश्क नाम है इसका
कुछ ऐसा कर मेरे ख़ुदा
वस्ल में हिज्र दे ऐसा 
उसे बांधे रखूं फिर भी
मुझे उससे जुदा बना

मेरी इस बाग़ी आवाज़ में
क्या दम
ये शोर और चीखनेवालों की बस्ती है 
अगर यही यहां होता 
कुछ ऐसा कर मेरे ख़ुदा
मुझे ख़ामोश कर दे
और मेरी चुप्पी को
नर्म ख्यालों की सदा बना

7 टिप्‍पणियां:

के सी ने कहा…

कविता हो गयी है. बधाई :)

Arvind Mishra ने कहा…

पिंगल शास्त्री और वैयाकरण कहते हैं कि वक्रोक्ति ही कविता है -वही मापदंड है और कविता लाजवाब है -क्या कहने! :)

vandan gupta ने कहा…

सुन्दर रचना।

vidha ने कहा…

अच्छी खासी कविता लिख लेती है आप तो

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रवाह कविता का मूल तत्व होना चाहिये।

विभूति" ने कहा…

बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति..

Rahul Paliwal ने कहा…

कुछ चांद के टुकड़े हैं, ज़ईफों की जवानी है/कुछ रेत है मुट्ठी में, कुछ बहता पानी है।
Wah, kya bat he..Will keep visiting..Loved these lines..!