किसी भी पब्लिक स्पेस में आकर ये किस्सा बताने के लिए बहुत हिम्मत जुटानी पड़ी है। लेकिन हम इसलिए अपने तजुर्बे बांटते हैं ताकि सुनने-पढ़ने वाला उन तजुर्बों से कुछ हासिल करे। चार साल पहले की बात है, घर के काम-काज और अपने बच्चों की देखभाल में मदद लिए रांची से मैं एक लड़की लेकर आयी थी। सोलह-सत्रह साल उम्र रही होगी उसकी, लेकिन वो लड़की दिल्ली में पहले भी काम कर चुकी थी। जैसा कि बड़े शहरों में अक्सर होता है, धीरे-धीरे आप अपनी कामवाली पर भरोसा करने लगते हैं, और फिर घर भी उसपर छोड़कर जाने लगते हैं।
उस लड़की के लिए हमारे घर में एक अलग-से कमरा था - सर्वेंट क्वार्टर के तौर पर, जिसका दरवाज़ा अलग से बाहर की ओर खुलता था। सब ठीक ही चल रहा था, कि उस लड़की की बहन (कुछ महीनों बाद दोनों बहनें मेरे साथ रहने लगी थीं) ने मुझे बताया कि लड़की की तबीयत ठीक नहीं रहती और उसे बहुत ब्लीडिंग होती है। हम भी देख रहे थे कि लड़की धीरे-धीरे पीली पड़ने लगी थी। कई कई दिन तक वो अपने कमरे से नहीं निकलती थी, और घर लौट जाने की ज़िद करती रहती थी। मैं जितनी बार डॉक्टर को दिखाने की बात करती, उतनी बार वो कहती कि उसने अपने डॉक्टर को दिखा लिया है। दोनों लड़कियां महीने में दो दिन की छुट्टी लेकर अपने रिश्तेदारों से मिलने जाया करती थीं, और मुझे लगा कि शायद वाकई किसी डॉक्टर को दिखा ही लिया होगा। फिर एक दिन उसकी तबीयत इतनी ही बिगड़ गई कि मैं ज़िद करके अपनी एक डॉक्टर दोस्त को घर बुला लाई। जब मेरी दोस्त ने उसका चेक-अप किया तो मालूम हुआ कि लड़की ने अबॉर्शन की गोलियां खाई थीं, और बहुत ब्लीडिंग की वजह से उसे सीवियर अनीमिया हो गया था। उसका ब्लड प्रेशर बहुत कम होने लगा था, और अब इतनी कमज़ोरी हो गई थी कि चलना-फिरना भी मुश्किल।
मुझे लगा कि किसी ने मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खींच ली हो! ये कब हो गया था? मेरे साथ ही तो रहती थी ये लड़की! क्या मेरे घर में...? लड़की ने ख़ुद ही 'बॉयफ्रेंड' के होने की बात क़ुबूल कर ली, और बहुत पूछने पर भी नहीं बताया कि वो लड़का कौन था। बाद में उसकी बहन ने मुझे बताया कि लड़का नहीं, दरअसल अधेड़ उम्र का एक रिश्तेदार था जिसने लड़की से शादी का वायदा किया था। मैं उस आदमी को पकड़कर पुलिस के हवाले कर देना चाहती थी, लेकिन इस लड़की की हालत देखकर सिर पीट लेने के अलावा कोई और चारा नहीं सूझा। वो पागल लड़की समझने को तैयार ही नहीं थी कि जिस प्यार में वो जान गंवाने चली है, और अपने शरीर की वो दुर्गति कर चुकी है उस "प्यार" को न लड़की की कद्र है न उसकी जान की। उस आदमी को एक शरीर मिल गया था, जिससे जीभर कर खेल लेने के बाद मरने के लिए छोड़ दिया था उसने। (उस आदमी ने किसी तरह के संबंध से साफ तौर पर इनकार कर दिया, और लड़की हमेशा के लिए घायल मन और शरीर लिए वापस गांव लौट गई)
राजस्थान में नाबालिग की गर्भपात के बाद मौत की ख़बर पढ़ने के बाद मन का फिर से विचलित हो जाना जायज़ था। इंटरनेट पर मौजूद एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर 1000 गर्भवती में 62 किशोरियां होती हैं और हर साल होने वाले गर्भपातों का 30 प्रतिशत 20 साल के कम उम्र की लड़कियों का होता है। ये कानूनी तौर पर होने वाले क्लिनिकल गर्भपातों का आंकड़ा है, और मुमकिन है कि इनमें से एक बड़ी संख्या शादी-शुदा किशोरियों की भी हो। लेकिन बिनब्याही किशोरियों के गर्भरातों की संख्या करने की ज़रूरत भी क्यों महसूस होगी भला?
14 से 20 साल की उम्र लड़के और लड़कियों, दोनों के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण होते हैं। लेकिन लड़कियां शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक, तीनों रूपों से कई तरह के बदलावों से होकर गुज़र रही होती हैं। शरीर को लेकर कई सारी जिज्ञासाएं होती हैं उस उम्र में, बहुत सारी भावनात्मक ज़रूरतें भी होती हैं। इसलिए जहां थोड़ी-सी भी चिकनाई दिखती है, वहां बहकावे में आने की गुंजाईश बन जाती है। उनकी इस कमसिन बेवकूफ़ियों का फ़ायदा उठाने वालों के किस्से मैंने, आपने - हम सबने अपने इर्द-गिर्द देखा है।
इसका फौरी तौर पर समाधान क्या हो सकता है, ये बताना मुश्किल है। लेकिन ये ज़रूर है कि सेक्स शिक्षा और अपने शरीर के बारे में बात किशोर-किशोरियों के लिए इसलिए ज़रूरी है क्योंकि उन्हें सही और ग़लत का 'इन्फॉर्म्ड' फ़ैसला लेना होगा। जिन मुद्दों पर मांएं बात नहीं करतीं, स्कूल में शिक्षिकाएं चुप्पी साधे रहती हैं, जिन मुद्दों पर फुसफुसाहटों और उठी हुई उंगलियों के अलावा कुछ सुनने-देखने को नहीं मिलता, उन मुद्दों पर किशोरियों से संवाद की सख़्त ज़रूरत है। उन्हें ये बताए जाने की ज़रूरत है कि जिस शरीर को हम 'प्यार' के नाम पर दूसरों के सामने खुला छोड़ देते हैं, उस शरीर के ज़ख़्मों पर मरहम लगाने कोई नहीं आता। 'प्यार' के नाम पर शरीर पुरुष के लिए अक्सर सिर्फ और सिर्फ एक ज़रूरत होती है, जिसे पूरा कर वो लड़की के शरीर से भी निजात पा लेता है, उस लम्हे के प्यार से भी। लेकिन एक लड़की के शरीर पर जो रह जाता है, वो 'गर्भ' के रूप में उसे तबाह न कर दे तो अपराधबोध के रूप में ज़िन्दगी भर थोड़ा-थोड़ा ज़रूर तबाह करता रहता है।
(डेली न्यूज़ के "खुशबू" में प्रकाशित)
1 टिप्पणी:
शरीर और मन को सयत्न बचायें सब।
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