बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

कोई पूछे है कभी...

सुबह-सुबह इत्मिनान से मिलने वाली एक प्याली चाय भी कितनी बड़ी नेमत है न?

कम से कम मेरे लिए तो है। सुबह उठते ही जिसके पैरों में घिरनी लग जाती हो, उसके लिए तो इत्मीनान का कोई एक पल भी अनमोल है। देखिए, कोई शिकायत नहीं कर रहे हैं हम कि ये सब चुनी और बुनी हुई दुविधाएं भी हमारी ही हैं। लेकिन कोई तो ऐसी जगह हो कि जहां खुलकर अपना दुखड़ा रोया जा सके। 

सोचती हूं कि पहले के दिन अच्छे थे। चुपचाप डायरियों में लोग टूटी-फूटी कविताएं और अपने मन का संताप लिखकर रख दिया करते थे, और फिर उन डायरियों के संदूकों में बंद कर दिया जाता था। ये और बात है कि वही डायरियां फिर गृहस्थियों में भूचाल भी ले आया करती थीं। कम-से-कम यहां जो है, खुले में तो है। सनम ये दुख भी तेरे, दुख का रोना भी तेरा। कहीं कोई दुराव-छिपाव नहीं। आओ कर लो, जो ठीक करना है। संवाद में कोई तो ताक़त होगी। कम-से-कम घुटते हुए ख़ामोश मरते हुए जीने से तो ज़्यादा ही होगी। 

ख़ैर, सुबह धूप लेकर आई है। सामने चंपा के पेड़ पर गौरैया शोर मचाए हैं। ठंड गई नहीं कि इनकी दिल्लगी शुरू। दो-चार दिन में कोयलें भी निकलकर आ जाएंगी जाने कहां से। वसंत राग छेड़ो साजन, छेड़ो कोई गान।

सुजाता सुबह साढ़े छह बजे सफाई कर गई है। मुझे इतनी सुबह इतना शांत घर देखने की आदत नहीं। मुझे बिना शोर मचाए बच्चों को स्कूल भेजने की भी आदत नहीं। लेकिन आद्या अकेली बहुत कम परेशान करती है। अकेले उसका सारा काम वक़्त पर, बिना किसी अड़चन के हो जाता है। अजब होती है बेटियां। अटेंशन न मिले, तो मां का ध्यान खींचने के लिए हर वो शैतानी कर गुजरती हैं जिससे और कुछ नहीं तो उनके हिस्से डांट तो आए। भाई बीमार सो रहा है तो आद्या को कुछ नहीं चाहिए - न अपने हिस्से का प्यार, न उसके हिस्से की डांट। उसका शांति से तैयार हो जाना, अपने कपड़े और जूते आप पहन लेना, अपने हाथ-पैरों में आप क्रीम मल लेना मुझे इतना बेचैन क्यों कर रहा है? 

हम रात भर नहीं सोए - मैं और आदित। बीमार बच्चे की तामीर भीतर की कई खिड़कियां खोल देती हैं। ये बीमार न पड़ता तो मैं रुककर न सोचती कि वो कौन-सा हिस्सा है अपने भीतर का, जिसकी मरम्मती की ज़रूरत है? अगर ये बीमार न पड़ता तो मैं इसके और आद्या के हिस्से का प्यार, उनके हिस्से जाने वाली मेरी अपनी ऊर्जा पता नहीं कहां लगा आती। बच्चे बीमार इसलिए पड़ते हैं क्योंकि उन्हें अपने हिस्से का अटेंशन, अपने हिस्से का प्यार चाहिए होता है। बच्चे मेरी आंखें खोलने के लिए बीमार पड़ते हैं, मुझे टू-डू लिस्ट में वरीयता के क्रमों को बदल देने की ज़रूरत है, ये याद दिलाने के लिए बीमार पड़ते हैं। बच्चे मुझी को मुझसे मिलाने के लिए बीमार पड़ते हैं। वरना तो हर अज़ीज़ को ग्रान्टेड लेना शाश्वत इंसानी फ़ितरत है। 
  
आदित को सोता छोड़कर मैं धीरे-धीरे कई काम निपटा रही हूं। बिस्तर की चादर बदलना, तकिए-कुशन अपनी जगह पर रखना, बच्चों को कपड़े तह करके अलमारियों में डालना और अपने लिए बहुत सारी चाय बना लेना - ग्रीन टी। हर काम का सलीका मुझे ख़ुद को सहेजने में मदद कर रहा है। वरना मुझे लगने लगा था कि मेरी हालत लॉन्ड्री बैग में पड़ी जीन्स की तरह होती जा रही है। न इस्त्री का वक़्त मिलता है, न उनके बिना काम चलता है। इसलिए जो मिला, जैसे मिला पहन लिया और चल पड़े। सलीका थोड़ा-सा ही सही, ख़ुद को बचाए रखने के काम आता है।

बच्चों के कमरे में धूप का एक कोना बिखरा पड़ा है। समेट पाती तो एक डिब्बे में समेटकर रख लेती। लेकिन धूप का वो कोना अपने भीतर बचाए रखना होता है। इस मन का कोई ठिकाना नहीं। बेमौसम बरसात है। जब जी में आए, बरस जाए। उन दिनों काम आती ये धूप, मगर फिर... 

मां सब सीख जाती है। मां बरसना, गरजना, बिखरना, सहेजना सब सीख लेती है धीरे-धीरे। सब्र भी सीख जाएगी और सलीका भी। आज के दिन के कई कामों के बीच एक बीमार बच्चे को वक़्त देते हुए, उसकी जायज़-नाजायज़ मांगें पूरी करते हुए जिए जीना भी एक काम है। जिए जाने के इस नए सलीके के बीच हम आपस में ये तय कर लेंगे कि आज लिटल मिस सनशाइन देखी जाए या फिर तारे ज़मीन पर। 

ज़िन्दगी खुशगवार नहीं तो इतनी भी ज़ालिम नहीं।  

मैंने तो किसी दुख में निकाला था ये पन्ना। मुझे तो गिले-शिकवों से भरनी थी पंक्तियां। फिर ये क्या हो गया? क्यों आशा ताई और उस्ताद शुजात दिमाग़ में गुनगुनाए हुए हैं? कहीं के लिए निकलने और कहीं पहुंच जाने की तो मेरी बुरी आदत है!

कोई पूछे है कभी फूल की महकार का नाम
आप जो चाहें वो रख दें, मेरे दिलदार का नाम...  

3 टिप्‍पणियां:

monali ने कहा…

May Aadit gets well soon :)
Sending love and blessings for the lil champ... pls convey :)

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

सब ठीक होगा। आपने अपने मन को सही रास्‍ता दिखाया।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आदित शीघ्र ही अच्छा हो जायेगा, निश्चय ही प्राथमिकतायें बदलने पर विवश कर देते हैं अपनों के संग बिताये क्षण।