आधी रात गए परेशानियों की निशानियां थी पेशानी पर, एक और रात नींद ना आने का डर था और आते-जाते कुछ ख़्याल थे। उन्हें हर्फो़ं में उतारा था तो जाने क्या बना, कि कविताओं की विभिन्न विधाओं के बारे में मुझे ख़ास जानकारी नहीं। ना ग़ज़ल, नज़्म, त्रिवेणी, हाइकू, छंद, मुक्त छंद की समझ है। हालांकि लिखा हुआ मुकम्मल हुआ जब भाई ने काफ़िया मिलाया, आधी रात के बाद बैठकर। कुछ शब्द लिए एक-दूसरे से ख़्वाबों में बात करने का नतीजा है ये। ये कविताएं ना भी हो तो आज की सुबह उम्मीदनुमा कुछ लगती है कि सफ़र कट ही जाएगा, हम पा ही लेंगे एक हसीन मुकाम।
1.
हमारे दिल के चाहे पर कसो ना फ़ब्तियां
दुआएं और क्या होती हैं, ख़्वाहिशों के सिवा। - अनु
तुम्हारा मुस्कुराना भी, कि अब है तीर सा चुभता
बलाएं और क्या होती हैं, चंद नालिशों के सिवा। - प्रशांत
2.
निकल आए थे हर्फ़ों के कुछ तीखे-तीखे खंजर
आह हम भरते रहे, कत्ल-ए-आम होता रहा। - अनु
हमारी आहों में मिन्नत थी, गुलाबी थी नज़र मगर
नशे में तुम थे ऐ हमदम, छलकाए-जाम होता रहा - प्रशांत
3.
बुतपरस्ती अब नहीं करते, ना बदगुमां सिर झुकता है इन दिनों
हमें फिर भी कहनवाले काफ़िर कहा करते हों तो कोई बात नहीं। - अनु
ना अपना रास्ता कोई, ना ही कहीं ठिकाना है इन दिनों
जो अपनी मंजिल पर चंद आवारा रहा करते हों तो कोई बात नहीं। - प्रशांत
4.
किसने कहा मुश्किलें कम हो गईं,
यहां हर शख़्स सौ दर्द लिए चलता है।
किसी को चारागरी आती नहीं,
फिर भी अजनबी कंधों पर हाथ रखता है। - अनु
जिगर में एक चिंगारी थी, वो अब दिल तक पहुंची है
कि जलता दिल भी आँखें सर्द लिए चलता है
ये अच्छा है हमें हाराकिरी आती नहीं
खुदा भी खुदी वालों को अपने साथ रखता है। - प्रशांत
5.
नहीं है ख़ौफ़ ज़लज़लों का, ना हादसों का डर है आजकल
जो जान पर आई तो तैर जाएंगे एक आग का दरिया भी
बस एक तेरी तरकश से निकले सच का तीर डराता है। - अनु
ना कम किस्मत का ही है डर, ना समय से पहले होगी जुम्बिश
जो खुद पे हो तो हंस के काटेंगे लम्हे-गिरया भी
कि जिससे थी दुआ मांगी, मेरा वो पीर डराता है। - प्रशांत
6.
मत सिखाओ लीक पर चलना
कि तुम्हारा रास्ता मेरा हो, ज़रूरी नहीं
मुझे तुम भी तो अजनबी रास्ते पर मिले थे हमसफ़र। - अनु
दोस्त हो मेरे, वाईज़ नहीं बनना
कि तुमसे वास्ता मेरा हो, ज़रूरी नहीं
क्या करोगे जो मोहब्बत ही बन जाए शिकायत ग़र!! - प्रशांत
5 टिप्पणियां:
kaafiya mila diye hain :)
1
तुम्हारा मुस्कुराना भी, कि अब है तीर सा चुभता
बलायें और क्या होती हैं, चंद नालिशों के सिवा
2
हमारी आहों में मिन्नत थी, गुलाबी नज़रें थी मगर
नशे में तुम थे ऐ हमदम, छलकाए-जाम होता रहा
3
ना अपना रास्ता कोई, ना ही ठिकाना है इन दिनों
जो अपनी मंजिल पर चंद आवारा रहा करते हों तो कोई बात नहीं
4
जिगर में एक चिंगारी थी, वो अब दिल तक पहुंची है
कि जलता दिल भी आँखें सर्द लिए चलता है
ये अच्छा है हमें हाराकिरी आती नहीं
खुदा भी खुदी वालों को अपने साथ रखता है
5
ना कम किस्मत का ही है डर, ना समय से पहले होगी जुम्बिश
जो खुद पे हो तो हंस के काटेंगे लम्हे-गिरया भी
कि जिससे थी दुआ मांगी, मेरा वो पीर डराता है
6
दोस्त हो मेरे, वाईज़ नहीं बनना
कि तुमसे वास्ता मेरा हो, ज़रूरी नहीं
क्या करोगे जो मोहब्बत ही बन जाए शिकायत ग़र!!
निकल आए थे हर्फ़ों के कुछ तीखे-तीखे खंजर
आह हम भरते रहे, कत्ल-ए-आम होता रहा।
गजब अभिव्यक्ति..
ये बहुत सुन्दर है. :)
वाह जवाबिया शेरो शायरी :)
खूब है कव्वाली.
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