इन दिनों अजीब-सी हालत है। आंधियां मध्य-पूर्व और पूर्वी अफ्रीका के रेगिस्तानों में चलती हैं, मौसम दिल्ली का बदल जाता है। ३१ मार्च की डेडलाइन नौकरीपेशा लोगों की सांसत कम, हम जैसे फ्रीलांसर्स के गले की हड्डी ज्यादा बन जाती है। सो, इन दिनों धूल भरी आंधियां हैं, ऑस्टियोपरोटिक मां की टूटी हुई कुहनी की चिंताएं हैं, अस्पताल के आईसीयू में पड़ी एक प्यारी लड़की के लिए दुआएं मांगने के बेसाख़्ता सिलसिले हैं, बच्चों के नए सेशन का आगाज़ है, ढेर सारे डेडलाइन्स हैं और हैं कुछ टूटी-फूटी कविताएं। वैसे सब बेमानी है क्योंकि कुछ ठहरता नहीं। आद्या और आदित, मम्मा की डायरी पढ़कर परेशान होना नहीं क्योंकि ये उलझे-उलझे सितमगर दिन भी निकल ही जाएंगे, तुम्हारे रतजगों वाले बचपन की तरह।
१.
मां ने सिखाया था बचपन से
कि जितनी हो चादर, उतना ही फैलाना पांव
क्या करें जब कम पड़ने लगे चौबीस घंटे भी।
२.
वो ज़िद्दी है मगर मन का है कोमल
अपने-उसके रिश्ते में हैं परछाईयां कहीं की
मैं भी तो तुम जैसी ही हो गई हूं, मां।
३.
रेगिस्तान में चलती है आंधियां
बदल जाती है हवा-फ़िज़ां दिल्ली की
कहां-कहां जुड़ी होती हैं इंसानों की नियतियां।
४.
दर्द के रेशे हैं, टूटी हुई कुहनी है
बिखरे तकिए, कुशन, चौके का बोझ है सिर पर
पचपन की स्पीड को भी चाहिए एक स्पीडब्रेकर।
५.
बालकनी में झूलती है जयपुरी चादर
छोटी नैपियां, ऊनी कपड़े, नई मां की चुन्नी
सुना है, हमारी पड़ोसन के घर बेटा हुआ है।
६.
ठेके पर हो जाती है पेंटिंग
घर भी तो मिल जाता है ईएमआई पर आजकल
हेडलाईन है, तलाक मिलना और हो गया आसान।
७.
रिक्शे की मूठ पकड़े, गले में बोतल टांगे
गीली आंखें लिए जा रही है वो स्कूल पहले दिन
मुस्कुराने का कोई सबब नहीं हुआ करता।
7 टिप्पणियां:
Beautiful, Anu. Each image so evocative.
ठेके पर हो जाती है पेंटिंग
घर भी तो मिल जाता है ईएमआई पर आजकल
हेडलाईन है, तलाक मिलना और हो गया आसान।
हर त्रिवेणी बहुत कुछ कहती हुई ...
bahut khoob...
कहने को तो जीवन पर्याप्त है सब देखने को, नहीं तो सागर सी अथाह इच्छायें हैं।
जीवन ,जीवन्तता की झलकियाँ और बटरफ्लाई इफेक्ट :)
समय का कैलिडोस्कोप.
सुन्दर त्रिपदिया...
सादर.
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