जिस गीत को सुनने के लिए मैंने चैनल बदला नहीं उस गाने में आउटस्टैंडिंग कुछ भी नहीं। नदीम श्रवण के बेहद प्रेडिक्टेबल संगीत की इतनी ही हद है कि इस फिल्म के संगीत के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड मिल जाता है। लेकिन मैंने गाना सुनने के लिए चैनल नहीं बदला हो, ऐसा नहीं है। मैं आकाश वर्मा के कैरेक्टर के बारे में सोच रही हूं। एसपी बाला ने कैसेनोवा टाईप के आकाश के फ्लिंग्स को कोई नया डाईमेंशन नहीं दिया। मैंने 12 साल की उम्र में ये फिल्म देखी थी और याद है कि लॉरेन्स डिसूज़ा के किए अन्याय पर ख़ासा दुखी हुई थी। अमन तो सुलझा हुआ, भला इंसान था। उसे प्यार भी मिल जाता, प्यार करनेवाले भी। पूजा तो आकाश की ही होनी चाहिए थी। उस बिगड़े हुए, कंफ्यूज़्ड, हैरान-परेशान साहबज़ादे को उस प्यार की ज़्यादा ज़रूरत थी जो उसे स्टेबल और ज़िन्दगी पर भरोसा करने लायक बनाता। डिसूज़ा साहब को इतनी सी बात नहीं समझ आई?
भंसाली भी ये नहीं समझे। समीर फिर अगले जन्म के इंतज़ार में रह गया कि कोई तो दूसरा, तीसरा, सातवां आसमान होगा जहां नंदिनी उसके पास लौटेगी। एक लंबे और थका देनेवाले इंतज़ार के बाद 'कुछ कुछ होता है' में अमन को फिर से अपने प्यार की कुर्बानी देनी पड़ती है। इन गिनी-चुनी फिल्मों की तुलना में दसियों ऐसी फिल्में होंगी जिनमें हीरो को आख़िर अपनी महबूबा मिल ही जाती है। लेकिन मैं इन्हीं तीन कैरेक्टर्स के बारे में सोच रही हूं जो असल सलमान के बहुत करीब हैं।
रैश, वल्नरेबल, स्पॉन्टेनियस, इम्पलसिव, इमोशनल, ट्रस्टवर्दी - कुछ ये विशेषण दिमाग में घूम रहे हैं और फिल्म सिटी के बाद का मोड़ आ गया है। मैं अगले आठ मिनट में घर पहुंच जाऊंगी। सलमान के बारे में क्या सोचती हूं, तय करने के लिए आठ मिनट हैं अब। तमाम मुश्किल दौर से गुज़रते हुए भी जिस इंसान का कैरेक्टर छिन्न-भिन्न ना हुआ हो, जो ईमानदार और स्ट्रेटफॉर्वर्ड हो और जो मोहब्बत में अंजाम की परवाह किए बिना महबूबा के लिए सबकुछ कर गुज़रने पर आमादा हो, वो शख्स एक फेशियल नर्व डिसॉर्डर और ज़िन्दगी में किसी तरह के ऑर्डर से ज़्यादा ढेर सारा प्यार डिज़र्व करता है।
भाई, एक फिल्म हम सलमान को लेकर बनाएंगे जिसमें पूरी दुनिया को लात मारकर दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत लड़की द बैड मैन एंड द क्रेज़ी वन के पास आएगी। हम उस फिल्म के दो-चार सिक्वल भी बनाएंगे। कहो तो स्क्रिप्ट पर काम करना शुरू कर दूं।
फिलहाल, वो एक गाना सुनो जिसे देखते हुए मेरा कलेजा मुंह को आ जाता है। उसकी आंखों से टपके हर आंसू के कतरे की कसम, सलमान खान से बढ़कर किसी खान, कपूर, कुमार को नहीं माना। धीरज धरो सल्लू मियां, तुम्हारे दिन भी फिरेंगे।
भंसाली भी ये नहीं समझे। समीर फिर अगले जन्म के इंतज़ार में रह गया कि कोई तो दूसरा, तीसरा, सातवां आसमान होगा जहां नंदिनी उसके पास लौटेगी। एक लंबे और थका देनेवाले इंतज़ार के बाद 'कुछ कुछ होता है' में अमन को फिर से अपने प्यार की कुर्बानी देनी पड़ती है। इन गिनी-चुनी फिल्मों की तुलना में दसियों ऐसी फिल्में होंगी जिनमें हीरो को आख़िर अपनी महबूबा मिल ही जाती है। लेकिन मैं इन्हीं तीन कैरेक्टर्स के बारे में सोच रही हूं जो असल सलमान के बहुत करीब हैं।
रैश, वल्नरेबल, स्पॉन्टेनियस, इम्पलसिव, इमोशनल, ट्रस्टवर्दी - कुछ ये विशेषण दिमाग में घूम रहे हैं और फिल्म सिटी के बाद का मोड़ आ गया है। मैं अगले आठ मिनट में घर पहुंच जाऊंगी। सलमान के बारे में क्या सोचती हूं, तय करने के लिए आठ मिनट हैं अब। तमाम मुश्किल दौर से गुज़रते हुए भी जिस इंसान का कैरेक्टर छिन्न-भिन्न ना हुआ हो, जो ईमानदार और स्ट्रेटफॉर्वर्ड हो और जो मोहब्बत में अंजाम की परवाह किए बिना महबूबा के लिए सबकुछ कर गुज़रने पर आमादा हो, वो शख्स एक फेशियल नर्व डिसॉर्डर और ज़िन्दगी में किसी तरह के ऑर्डर से ज़्यादा ढेर सारा प्यार डिज़र्व करता है।
भाई, एक फिल्म हम सलमान को लेकर बनाएंगे जिसमें पूरी दुनिया को लात मारकर दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत लड़की द बैड मैन एंड द क्रेज़ी वन के पास आएगी। हम उस फिल्म के दो-चार सिक्वल भी बनाएंगे। कहो तो स्क्रिप्ट पर काम करना शुरू कर दूं।
फिलहाल, वो एक गाना सुनो जिसे देखते हुए मेरा कलेजा मुंह को आ जाता है। उसकी आंखों से टपके हर आंसू के कतरे की कसम, सलमान खान से बढ़कर किसी खान, कपूर, कुमार को नहीं माना। धीरज धरो सल्लू मियां, तुम्हारे दिन भी फिरेंगे।
3 टिप्पणियां:
मुझे ध्यान नहीं आता कि (हिन्दी में) लेखन की यह शैली ब्लाग के सिवा और कहीं मिल सकती हो.
सच में यह गाना सुन कलेजा मुँह आ जाता है।
Bilkul banayenge!! Kaam karna chaalu kar do script par! :)
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