शनिवार, 3 अगस्त 2013

बहती धारा बन जा, फिर दुनिया से डोल

हैप्पी बर्थडे बाबा!

मैं बचपन की तरह इस बार भी काग़ज़-कलम लेकर चिट्ठी लिखने बैठना चाहती थी। हर बार की तरह इस बार भी कोई आड़ी-तिरछी कविता लिखी होती आपके लिए और आपके सिरहाने, तकिए के नीचे एक रंगीन लिफ़ाफ़े में वो चिट्ठी रख दी होती इस बार भी।

लेकिन वो सिरहाना नहीं रहा, चिट्ठी लिखने की आदत नहीं रही और आप भी नहीं रहे।

आप नहीं रहे बाबा, लेकिन आपको मन में कई-कई दफ़े चिट्ठियां अब भी लिखा करती हूं। सफर में हर मोड़ पर दोराहा नज़र आता है, हर बार दुविधाएं घेरे रहती हैं। कुछ ज़िन्दगी का चलन यही है कि जो जूझना जानता है उसके सामने जि़न्दगी चुनौतियां भी उसी तेज़ी से फेंक दिया करती है। कुछ फितरत ऐसी है कि उन चुनौतियों को गले लगाने में ही सुख मिलता है।

आप नहीं रहे बाबा, लेकिन फिर भी मेरी चिट्ठियों का जवाब आपने मुझे हमेशा लिखकर दिया है। मुझे हर बार कहीं न कहीं से अपने सवालों का जवाब मिल ही जाया करता है - कभी किसी किताब में, कभी किसी गाने में तो कभी किसी कहानी में। मैं यकीन के साथ कह सकती हूं कि मेरी ही भाषा में मेरे सवालों के जवाब भेजने वाले आप ही होते होंगे, बाबा। हालांकि आपकी सालगिरह पर लिखी इस चिट्ठी के जवाब में मुझे कोई जवाब नहीं चाहिए। ये तो बस ख़ैरियत की चिट्ठी समझ लीजिए।

तो बाबा, यूं समझ लीजिए कि सब ख़ैरियत है। बारह सालों में सबने तरक्की ही की है, पीछे कोई नहीं लौटा। जिस रांची में आपने सारी ज़िन्दगी बसर की, जहां की पहाड़ियों और डैमों के किनारे हमें पिकनिक पर लेकर गए वो रांची अब मेट्रो कही जाने लगी है। पंजाब स्वीट हाउस के पंतुए और कावेरी के डोसों के स्वाद का तो पता नहीं अब, लेकिन कैफ़ै कॉफी डे की कॉफ़ी और डॉमिनॉज़ के पिज़्जा का स्वाद दिल्ली, मुंबई या चेन्नई से अलग होगा, ऐसा लगता नहीं है।

अरे हां, आपको ये भी बताना था कि दिल्ली की सड़कों पर फर्राटे से गाड़ी चलाती हूं अब। आप मेरे बगल में बैठे होते तो देखते, रिवर्स करते हुए न मेरी आंखें बंद होतीं न आपकी। मैं यकीन दिलाकर कह सकती हूं कि मेरी ड्राइविंग देखकर अब आपका ब्लड प्रेशर नहीं बढ़ता। अब मारुति ८०० तो क्या, ज़रूरत पड़े तो ट्रक भी चला सकती हूं। लेकिन आपको लॉन्ग ड्राईव पर ले जाने की मेरी ख़्वाहिश अधूरी ही रह गई। अब भी गाड़ी में गाने सुनती हूं तो लगता है, बाबा को ऐसी ड्राईव पर ये वाला गाना पसंद आता।  

बाबा, जिस मोबाइल फोन से फोन लगाने के बत्तीस रुपए प्रति कॉल और फोन रिसिव करने के सोलह रुपए प्रति कॉल लगा करते थे, उस मोबाइल फोन के मनचाहे नंबर अब मुफ्‍त में बंटा करते हैं। जिस कंप्यूटर पर टाइपिंग सीखने के लिए मैं बीस-बाईस किलोमीटर दूर  आपकी फैक्ट्री जाया करती थी, वो कंप्यूटर हमारी मेज़ों से उतरकर हमारी गोद में और अब हमारी गोद से उतरकर हमारी हथेलियों में समा गया है। जिस मनमोहन सिंह के ख़ामोश उदारीकरण के आप कायल हुआ करते थे, उस मनमोहन सिंह की ख़ामोशी की अब दुनिया कायल है। उदारीकरण बड़ी निर्ममता से हमें और महत्वाकांक्षी, और लोभी, और भ्रष्ट बनाने में लगा हुआ है। आप कौन-सा सबसे बड़ा घोटाला देख कर गए थे बाबा? बोफोर्स? हर्षद मेहता? अब करदाताओं के पैसे की जो हेराफेरी और घोटाले होते हैं, उन्हें घोटाला नहीं कहा जाता, निवेश, बाज़ार और बिज़नेस कहा जाता है।

बाबा, अपनी फैक्ट्री में जर्मन असेम्बली लाइन को हटाकर जिस चीन की मशीनें आपने  लगाई थीं उस चीन के प्रोडक्ट्स ने फैक्ट्रियों पर तो क्या, घरों में, यहां तक कि आद्या और आदित की खिलौनों की अलमारी तक में घुसपैठ कर ली है। मैं जिस बेड-टेबल पर बैठकर ये चिट्ठी लिख रही हूं न, वो भी उसी चीन से बनकर आया है जिस चीन के बारे में आप कहा करते थे कि चीन और भारत - इन दोनों देशों के कॉलैबोरेशन से दुनिया का नया सुपरपावर तैयार होगा। आपकी ही तरह आपकी और आपके बाद की पीढ़ी भी इसी गफ़लत में जीती रही। भारत-चीन युद्ध के बाद आप 'पीस' और 'नॉन-वायलेंस' का लबादा ओढ़े ड्रैगन की जादुई शक्ति की चपेट में आने वाली पहली पीढ़ी थे। उसके बाद की पीढ़ियां चीनी प्लास्टिक, कलम, कॉस्मेटिक्स, कपड़े, जूते, सुई और दीवाली की लड़ियां खरीदकर ख़ुद को धन्य मानती है। जो भी हो, वक्त के साथ कदमताल करने की बात आपने तब भी कही थी।

बाबा, आपने जिन मिडल क्लास मूल्यों की विरासत हमें सौंपी उनपर एक हज़ार लानतें हम हर रोज़ भेजते हैं फिर भी उन्हीं मूल्यों की गठरी टांगे नौकरियों पर जाते हैं, काम करते हैं और घर आकर उसी मिडल क्लास तरीके से परिवार भी चलाते हैं। शहर और गांव के बीच के पुल थे आप। हम उस पुल को जला डालने की ख़्वाहिश रखते हैं, लेकिन फिर भी जला नहीं पाते। जडों के हो न पाने और जड़ों से अलग न हो पाने की दुविधा के साथ ज़िन्दगी गुज़ार देने वाली हमारी तीसरी पीढ़ी आख़िरी हो शायद।

बाबा, ज़िन्दगी की तमाम तल्ख़ियों के बीच आपके जीने का अंदाज़ याद आता है तो बड़ी उम्मीद बंधती है। आपकी दरियादिली हममें बची रहे और आपकी तरह अपनी शर्तों पर अपने तरीके से जीना हमें आ जाए, यही उम्मीद हमें एक साल से दूसरे साल, ज़िन्दगी की राहों के एक माइलस्टोन से दूसरे माइलस्टोन तक खींचते हुए लिए ले जाती  है।

बाबा, मैं नहीं जानती आप कहां हैं। मैं ये भी नहीं जानती कि मरने के बाद हमारी रूह का क्या होता है। लेकिन रूह कहीं कुछ होती है तो आपकी वो रूह मेरे लिए बहुत बेचैन होती होगी, मैं ये भी जानती हूं। बाबा, आप जहां भी जिस भी ज़िन्दगी के रूप में हों - चाहे गाय हों या बकरी, सांप हों या बिल्ली या फिर किसी इंसानी रुप में आपकी रूह ने धरती का रूख़ किया हो - आप चाहे जहां हों, आपकी रूह वही बनी रहे जो थी, यही दुआ है। आप वैसे ही दूसरों की मदद करते रहें, आप वैसे ही ज़िंदादिल बने रहें, आप वैसे ही सबके भरोसे जीतते रहे, आप वैसे ही कड़ी मेहनत करके ज़िन्दगी की सीढ़ियां चढ़ते रहें, आप वैसे ही नामुमकिन को मुमकिन बनाते रहें और आप वैसे ही मेरे ज़ेहन में लौट-लौटकर मेरे मुश्किल सवालों का जवाब देते रहें, ये दुआ मैं दिन में कम-से-कम दो बार ज़रूर मांगती हूं।

शुक्रिया बाबा। आप न होते तो ज़िन्दगी में इतना यकीन न होता। आप न होते तो ये नहीं मालूम चलता कि वक्त के साथ बदलने में, धारा के साथ बहने में सुख है। वरना ठहरा हुआ पानी तो मलेरिया और डेंगू  के मच्छरों का घर बनता है। आपसे सीखा है कि अपने बच्चों से सीखने में कोई हर्ज़ नहीं। आपने मुझसे ई-मेल आईडी बनाना सीखा था। मैं अपने बच्चों के साथ बच्चों के लिए ही ई-बुक्स तैयार करना सीख जाऊंगी। आप न होते तो यकीन न होता कि किसी को इस कदर भी प्यार किया जा सकता है कि उसकी रूह को छुआ जा सके। आप न होते तो किसी ने ये भी नहीं सिखाया होता कि ब्लैक, व्हाईट और ग्रे शेड वाली ज़िन्दगी में और भी कई रंग हैं। हमें बस अपनी आंखों पर के चश्मे बदलने की ज़रूरत है। आप न होते तो समझ नहीं आता कि जीने का कोई सही या ग़लत तरीका नहीं होता। हम अपने तरीके खुद अपनी सहूलियत के हिसाब से ईजाद करते हैं। ज़रूरत सिर्फ ये ध्यान में रखने की है कि हमारे तरीकों से किसी और को तकलीफ़ न पहुंचे।

हैप्पी बर्थडे बाबा। जहां रहिए, सुकून से रहिए।   

7 टिप्‍पणियां:

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

जडों के हो न पाने और जड़ों से अलग न हो पाने की दुविधा के साथ ज़िन्दगी गुज़ार देने वाली हमारी तीसरी पीढ़ी आख़िरी हो शायद।..........इधर चलें हम उधर चलें, जाने कहां हम किधर चलें, फिसल रहे, कि जाने कब तक फिसलेंगे।

Rakesh Kumar Singh ने कहा…

'आप वैसे ही दूसरों की मदद करते रहें, आप वैसे ही ज़िंदादिल बने रहें, आप वैसे ही सबके भरोसे जीतते रहे, आप वैसे ही कड़ी मेहनत करके ज़िन्दगी की सीढ़ियां चढ़ते रहें, आप वैसे ही नामुमकिन को मुमकिन बनाते रहें ...
'

हमारा आत्‍मविश्‍वास हमसे इतना ही करवा जाए तो बाबा हम अपनी इस जिन्‍दगी को पूरा मान लेंगे. क्‍योंकि बाबा 'अब करदाताओं के पैसे की जो हेराफेरी और घोटाले होते हैं, उन्हें घोटाला नहीं कहा जाता, निवेश, बाज़ार और बिज़नेस कहा जाता है।' बाबा, अनु की इस चिट्ठी के ज़रिए हमारी भी आपसे जान-पहचान बनी है. बहुत कुछ सीखने को मिला है आपसे. अमल की कोशिश करेंगे. जन्‍मदिन पर हमारा मुबारकबाद भी क़बूल कीजिए बाबा.

अनु, बाबा को इस तरह करके मुझे भी उनसे जुड़ने का मौका दिया आपने. आपका शुक्रिया.

Ramakant Singh ने कहा…

यादों की लम्बी फ़ेहरिश्त और सुकून से बाबा संग जिए लम्हे सच कहा आपने जहाँ रहें आराम से रहें

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मन की कहती, मन की भाषा,
बुनती, बँधती, बहती, आशा।
उनसे जिनसे प्रेम मिला है,
उनसे जिनसे प्रेम उपासा।

अनुपमा पाठक ने कहा…

खैरियत की यह चिट्ठी बाबा तक जरूर पहुंची होगी, उनका आशीष भी आपतक अवश्य पहुंचा होगा!

उनकी स्मृति को नमन!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

saheje hue pyare yaad... !!
aapke baba ko naman..

Neeraj Neer ने कहा…
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