गुरुवार, 15 सितंबर 2011

सोनपरी, सीता, सावित्री और प्रेम का स्टीरियोटाईप

मेरी पांच साल की बिटिया मुझे और अपने जुड़वां भाई को कहानी सुना रही है – एक थी सोनपरी। दूर आसमान में रहती थी। उसके पंख सोने से थे, बाल रेशम से। उसके घर के बाहर फूलों की घाटी थी, आसमान का दरीचा थी। सोनपरी के घर एक दिन राक्षस आया। सोनपरी ने तुरंत सोनपरा को याद किया।


मेरा बेटा उसे रोकता है, सोनपरा कुछ नहीं होता। झूठी-झूठी बातें मत किया करो। नहीं होता ना मम्मा?’ हमेशा की तरफ इस बार भी आख़िरी फ़ैसले की ख़ातिर मध्यस्थता के लिए मुझे खींच लिया जाता है। मैं सोचते हुए कहती हूं, होता है, कहानियां में सब होता है। सोनपरा भी, और सफेद घोड़े पर आनेवाला राजकुमार भी, जो हमेशा आख़िर में राक्षसों को मार दिया करता है।
रिश्तों, प्रेम और विवाह को लेकर हमारे मन में बनी सारी धारणाओं की ज़िम्मेदार अचानक मेरे दिमाग में वे सारी परिकथाएं उमड़-घुमड़ कर आने लगी हैं जो हमने बचपन में सुनीं। दादी की कहानी में फूलकुमारी को हंसाने के लिए जोकर बनकर आया राजकुमार, नानी की कहानी में सात भाईयों की इकलौती बहन के लिए सात समंदर पार से नाव पर बैठकर आनेवाला मुसाफ़िर, जेल में राजकुमारी को बंद करनेवाला राक्षस जिसकी जान तोते में बसती है, यहां तक कि शिव को वररूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करती गौरा, सीता के राम, राधा के कृष्ण और सावित्री के सत्यवान – हर कहानी से और पुख़्ता होती वो छवि जो जीवन-साथीके लिए बचपन से बनती रही।
लेकिन बच्चों से कैसे कहूं कि ज़िन्दगी परिकथा-सी नहीं होती, ना हर इंसान को एक छवि के भीतर डाला जा सकता है। ये सही नहीं होगा, फेयर नहीं होगा – ना अपने लिए, ना उसके लिए जिसके कंधों पर आप अपने सपनों और अपेक्षाओं की इतनी बड़ी गठरी डाल देने को तैयार बैठे होते हैं। हम सिन्ड्रेला ना सही, हमें कोई प्रिंस चार्मिंग तो मिले! जबकि सच्चाई हमेशा इस तस्वीर का दूसरा पहलू ही होती है।
लेकिन ये स्टीरिटाईप कई-कई रूपों में घुमकर हमारे सामने आ जाया करते हैं। अपनी शादी की सारी रसमें मुझे एक कोलाज की तरह याद हैं। उस वक्त आप होश में भी होते भी कहां हैं! एक तो लाल जोड़े का भार, ऊपर से डूबता-उतराता मन, फिर कभी स्लो मोशन और कभी फास्ट-फॉरवर्ड में चलती रसमें... लेकिन मुझे ये याद है कि सात वचनों को याद कराते हुए पंडित जी ने बार-बार सावित्री का नाम लिया था। जी में आया, पंडित जी से पूछुं, पंडित जी, सत्यवान के कॉन्ट्रिब्यूशन भी याद करा देते तो अच्छा रहता। नहीं... जस्ट इन केस, मुझे बाद में ये पूरा रिप्ले करना पड़े कभी...। फिर बेचारी सावित्री को क्या मालूम कि सदियों तक आनेवाली पीढ़ियां उसे जी भर-भर के कोसेंगी। पत्नी के पैमाने को कोई इतनी ऊंचाई दे देता है क्या? विवाह गीत क्यों राम-जानकी के ही होते हैं? ताकि जब मर्ज़ी आए, राम आपको वनवास दे दिया करे। राम-राज्य में सब जायज़ है, इसलिए? बल्कि सच तो ये है कि जीवन साथी प्रिंस चार्मिंग सा हो या राम जैसा, सावित्री बनने की ज़िम्मेदारी तो आप ही की है। दे लिव्ड हैपिली एवर आफ्टर का दारोमदार आपके सिर। वरना तुलसीदास ने भी तो बिन घरनी के घर को ही भूत का डेरा कहा है। 
सोचने ये भी बैठी हूं कि परिकथाओं, कहानियों और सिनेमा की बदौलत हम ये स्टिरीयोटाईप कबतक गढ़ते रहेंगे? अगर मेरे ब्रदर के लिए दुल्हन मुझे दिल्ली की दिलवाली और लंदन की धड़कनवाली चाहिए तो अपनी बहन के लिए दूल्हा भी ऐसा चाहिए जो घुटनों पर बैठकर चमकते हीरे का साथ प्रोपोज़ करे, गिफ्ट्स के तौर पर सॉफ्ट टॉयज़ और कार्ड्स लाए, राज की तरह अपने दिल के राज़ सरसों के खेतों के बीच एक ख़ास अंदाज़ में ही खोले, और मिले तो समंदर के किनारे या फिर अंडरवाटर।
लेकिन अफ़सोस कि ऐसा होता नहीं है। जो होता है, सच का सामना होता है, समझौते होते हैं, रोज़-रोज़ की जद्दोज़ेहद होती है और होती है उसी में प्यार बचाए रखने की चुनौती। स्टिरीयोटाईप ये बातें हमें नहीं सिखाते।
इसलिए कुछ सोचकर मैं अपनी बेटी से कहती हूं, सोनपरा ना भी आए तो कोई बात नहीं। सोनपरी राक्षस को भगा ही देगी। उसमें इतनी हिम्मत है। पूछकर देखना। और बेटे की तरफ देखकर कहती हूं, थैंक यू। सच तुम भी मत भूलना।
(पोस्ट स्क्रिप्ट: किसी ने मेरी सिस्टर का दूल्हा फिल्म पर काम करना शुरू किया है क्या? अगर नहीं, तो बननी चाहिए। ये फिल्म भी बनी तो हिट होगी। टाइटल सॉन्ग लिखने की ज़िम्मेदारी मैं उठा सकती हूं! कुछ स्टिरियोटाईप मेरे मन में भी हैं दूल्हे मियां के लिए।)
(http://jantantra.com/2011/09/14/anu-singh-article-on-love) 

5 टिप्‍पणियां:

Rahul Singh ने कहा…

परिकथा, परीकथा से ले कर फिल्‍मों तक फैली हकीकत.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

हास्य के साथ गहन विचार ... अच्छा लगा लेख

Arvind Mishra ने कहा…

हकीकत और वायवीयता का फर्क बड़ी शिद्दत से उभरा है यहाँ !

सतीश पंचम ने कहा…

'मेरी सिस्टर का दूल्हा' ?

फिल्म का नाम 'मेरे जीजा जी' भी रखा जा सकता है :)

पुरूष आयें या न आयें महिलायें बम्पर संख्या में उपस्थिती दर्ज करायेंगी जिसके चलते उनके पति महोदय को भी आना ही पड़ेगा और जहां पति आ गये तो बच्चों को घर में कैसे छोड़ेंगे। सो पूरा कुनबा ही समझिये 'जीजा जी' को देखने जुट लेगा। बॉक्स ऑफिस कलेक्शन रिकार्ड तोड़ेगा सो अलग :)

वाणी गीत ने कहा…

परीकथाओं और वास्तविकता में अंतर होता है ,
राजकुमारी खुद ही भगा देगी राक्षस को , अच्छा सबक सिखाया है !