1
भरा हुआ डिब्बा हो गया है मन,
दिन निकला करता है रंग-बिरंगी कैंडी सा।
रंग चुनते हैं हम
इंद्रधनुष डिब्बे से
छलक आया करता है हर बार।
यूं भी होता है कोई एक दिन
मीठा, कुरकुरा, रंगीन कैंडी सा।
2
आईने पर चिपकी बिंदियां
लोटस और लैवेंडर
हेयरब्रश में उलझे बाल
खूंटी से लटकती
नीली चूनरी तुम्हारी
और दीवारों पर टांगे गए
गुज़रे हुए कुछ साल।
कहना नहीं आता
कि मैं कैसे कहूं तुमसे
ये जो है ना घर मेरा
मुकम्मल है, मुकद्दस है।
बहुत रात हुई
चलो घर लौट चलें जानां।
3
मां,
तुमसे कुछ ना कहूंगी
ना पूछूंगी कि
दर्द की सीमा भी होती है?
ये कैसी तकलीफ़ है
रोज़-रोज़ ख़ुद को जनने की?
नहीं पूछूंगी कि
हमने खुद को गढ़ना
क्यों नहीं सीखा?
4
'तुम अंधकार हो या प्रकाश,'
पूछा है किसी ने
एसएमएस पर।
बाहर नीम की डालियों पर
दोपहर मंडरा रही है
बिना सोचे मैंने
जवाब में
'गोधूलि' लिख दिया है
कि सबा का साथ तो
एक सदी पहले की बात थी!
3 टिप्पणियां:
अच्छी लगीं ये क्षणिकाएँ ..
3,4 बहुत ही अच्छे हैं।..बधाई।
मुझे लगता है गोधूलि आप जल्दीबाजी में लिख गयीं -बात धुधलके की थी और प्रकाश की किरने बस आ पहुँचाने वाली हैं !
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