क्योंकि पैरों में पहिए हैं और घुमन्तुओं की सोहबत है...
बहुत ही खूबसूरत रचना...
जो लौटी तो ठीक,ना लौटी तोसंभाले रखनामुझे मेरे साथी,यहीं, इसी जगह परयह कैसी तमन्ना.. ना जी ना .. घर तो जाना पड़ेगा..मूड कुछ अल्हदा मालूम पड़ता है ..?!
"एक जंग है आज।निकलना है आगे,ख़ुद से ही मुझको"सुन्दर अभिव्यक्ति. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.
दीपावली के इस पावन पर्व पर आप सभी को सहृदय ढेर सारी शुभकामनाएं
अच्छी लगी आपकी ये कविता ...........आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ (सौजन्य "एक आलसी का चिट्ठा" )आपकी ये रचना बहुत कुछ post-colonial literature की याद दिलाती है जहां आपको 'आत्म-युगनद्ध' बहुत कुछ दिख सकता है ...."self is like an onion.........if you try to reach its center @end nothing will remain....'आपके उत्तर की प्रतीक्षा में.......सादर
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5 टिप्पणियां:
बहुत ही खूबसूरत रचना...
जो लौटी तो ठीक,
ना लौटी तो
संभाले रखना
मुझे मेरे साथी,
यहीं, इसी जगह पर
यह कैसी तमन्ना.. ना जी ना .. घर तो जाना पड़ेगा..
मूड कुछ अल्हदा मालूम पड़ता है ..?!
"एक जंग है आज।
निकलना है आगे,
ख़ुद से ही मुझको"
सुन्दर अभिव्यक्ति. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.
दीपावली के इस पावन पर्व पर आप सभी को सहृदय ढेर सारी शुभकामनाएं
अच्छी लगी आपकी ये कविता ...........
आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ (सौजन्य "एक आलसी का चिट्ठा" )
आपकी ये रचना बहुत कुछ post-colonial literature की याद दिलाती है जहां आपको 'आत्म-युगनद्ध' बहुत कुछ दिख सकता है ....
"self is like an onion.........if you try to reach its center @end nothing will remain....'
आपके उत्तर की प्रतीक्षा में.......
सादर
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