(1)
मेरी खिड़की पर चमका है सूरज बल्ब जैसा
इत्ती-सी रोशनी में
दिल्ली की सर्दी नहाई है।
(2)
ना चहक चिड़िया की ना गौरैया का फुदकना,
मेरी सुबह फिर भी गुलज़ार है
बच्चों के हंसने-रोने से।
(3)
ये कैसी आपाधापी है, ये कैसी भागमभाग मची,
एक बस्ते में हम सबने सुबह-सुबह
अपना पूरा दिन समेट लिया है।
(4)
पूरे दिन का टॉनिक चाहिए,
इसलिए मैं झुककर
बच्चों के बालों की खुशबू सांसों में भर लेती हूं।
(5)
भागती-दौड़ती सड़कों पर
इंसान की फितरत का पता चलता है।
मैं? मैं बाईं कतार में रुकती-चलती हूं।
(6)
दफ़्तर के कोलाहल में ही कई बार
अपने मन का शोर
काग़ज़ पर उतरने लगता है।
(7)
घर लौटी हूं।
कोलाहल में संगीत है, शोर भी लगता गीत है।
सोफे पर बच्चों ने पूरा रॉक बैंड सजाया है!
(8)
मेरे रूखे-उलझे बाल
उसकी नन्हीं उंगलियों से सुलझते हैं।
"तुम बेटी हो, मैं मम्मा हूं," कहती है छोटी आद्या!
(9)
मेरी गर्दन में झूल जाता है वो,
मेरे चश्मे पर उसकी सांसों का धुंआ है।
पूरे दिन में पहली बार मुझे कुछ साफ़ नज़र आया है!
(10)
हम तीनों पापा का स्वागत करते हैं,
ध्यान खींचने की पुरज़ोर कोशिश में
हमने उनको टीवी के सामने ले जा पटका है!
(11)
नवंबर की ठंड और बारिश को
मोरपंखी नीला कंबल और
हम तीनों के पैरों की गर्मी ऊष्म बनाए है।
(12)
कहानियां हैं, लोरियां हैं,
एक-दूसरे की उंगलियों में उलझे हाथ भी।
नींद में अब मैं सपने नहीं देखती!
(13)
सूरज आज नहीं निकला,
फिर भी दिल्ली की सर्दी रोशन है।
दिन भर के लिए हमने हथेलियों में गर्मी भर ली है...
5 टिप्पणियां:
3,4,5,9,12 बहुत पसन्द आए।
संयोग देख रहा हूँ। 3,4,5 समकोण त्रिभुज को व्यक्त करते हैं। दो बच्चे और माँ जैसे।
3 का गुणा करने पर एक और वैसी ही सीरीज बनती है 9,12,15... आप को 15 तक लिखना था। :)
मेरी गर्दन में झूल जाता है वो,
मेरे चश्मे पर उसकी सांसों का धुंआ है।
पूरे दिन में पहली बार मुझे कुछ साफ़ नज़र आया है!
सारी क्षणिकाएं बहुत सुंदर , लगता है यह सब मेरे घर में हो रहा है, बधाई
यहाँ, पुणे में सर्दियाँ नहीं होती :( लेकिन आपकी क्षणिकाओं से दिल्ली फिर पास आ गयी|
वाकई बेहतरीन..
एक ही दिन की कितनी छोटी छोटी बातें.
बच्चे सच्ची खुशी देते हैं. आप पर तो इश्वर की डबल कृपा है :))
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