किसने कहा था कि मेरी ज़ुबान काली है? किसने कहा था कि सपनों में आने वाले दिनों के संकेत छुपे होते हैं? जाने किसने कहा था, लेकिन दोनों बातें सौ फ़ीसद सही निकलीं - उन तमाम अंदेशों की तरह जो मेरे दोस्त, मेरे शुभचिंतक हमेशा मेरे लिए ज़ाहिर किया करते हैं और जिन्हें नज़रअंदाज़ करते हुए मैं अपनी धुन में चलती चली जाती हूं। ठोकर हर हाल में लगनी है। बेहतर है कि ख़ुद के चुने रास्ते पर ख़ुद की शर्तों के साथ ठोकरें खाई जाएं।
बहरहाल, भूमिका बहुत हुई और मैं मुद्दे पर आती हूं। तो सपना ख़ौफ़नाक तरीके से सच निकला। आदित को चोट लगी आज। बुरी तरह। मैं घर पर नहीं थी और मेरे पास आद्या का फ़ोन आया। "मम्मा, जल्दी आओ। आदित गिर गया और और उसको बहुत-बहुत सारा ख़ून निकल रहा है।"
मैं घर में मौजूद इकलौती वयस्क - बच्चों की मौसी रुचि से बात करना चाहती थी। "मौसी फ़ोन पर नहीं आ सकती। वो आदित को बाथरूम में लेकर खड़ी है। उसके मुंह से ख़ून निकलना बंद नहीं हो रहा।"
आनन-फ़ानन में दो-चार नसीहतें देकर मैं घर की ओर भागी। ऐसी भागी कि दो ट्रैफिक सिग्नल तोड़े, एक ट्रैफ़िक पुलिस के रोके जाने पर गाड़ी को और तेज़ कर दिया (जाने इसका नतीजा क्यो होगा) और उल्टे-सीधे तरीकों से ओवरटेक करते हुए हांफते-सांस फुलाते किसी तरह घर पहुंची।
अस्पताल, सूजा हुआ मुंह, निकलता हुआ ख़ून और उन सबके बीच धीर-गंभीर सा एक बच्चा।
"डॉक्टर अंकल सुई भी देंगे?"
"हां बेटा। टिटनस की।"
"अच्छा। मुंह में भी देंगे?"
"हो सकता है। अनीस्थिसिया। स्टिच लगाने से पहले, ताकि तुम्हें दर्द ना हो।"
"आप मेरे पास होगे मम्मा?"
"शायद। हो सकता है डॉक्टर अंकल मुझे थिएटर से बाहर भी कर दें। मैं बाहर वेट करूंगी।"
"अच्छा। मेरे दांत टूट जाएंगे तो मुझे दर्द भी होगा?"
मैंने दांतों को हिलाकर देखा। मसूढ़ों से और ख़ून निकल पड़ा। इस बच्चे ने किस बुरी तरह ज़ख़्मी किया है ख़ुद को।
मैं आदित के कटे हुए होंठे, बहता हुआ ख़ून, टूटे हुए दांत के बीच अपना काम करती रही - गाड़ी चलाना, एटीएम से पैसे निकालना, बिल भरना, दवाएं लेकर आना... ऐसे कि जैसे ये सब रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा हो। मुझे एमरजेंसी में और लोगों को देखकर घबराहट भी नहीं हुई। मुझे ख़ून सने कपड़े देखकर घिन नहीं आई। ना जी मिचला। मैं अपने-आप से हैरान थी। एक साल भी नहीं हुआ इस बात को... पिछली गर्मी छुट्टियों में हम पूर्णियां में थे और मनीष के पीठ पर एक घाव हो गया था। किसी किस्म का सिस्ट जिसमें बुरी तरह इन्फेक्शन हो गया था। उस सिस्ट की ड्रेसिंग का काम मां करती थीं - मेरी सासू मां, क्योंकि मुझसे ज़ख़्म देखे नहीं जाते। किसी को सुई पड़ते देखकर मरीज़ से ज़्यादा मेरे चिल्लाने का ख़तरा रहता है। तो हुआ यूं कि छत पर खड़ी होकर मां मनीष के ज़ख़्म की गर्म पानी से सफ़ाई कर रही थीं। उन्होंने मुझे ये देखने के लिए बुलाया कि घाव सूखा है या नहीं, एक बार छूकर देख लो। मैं डरते-डरते पहुंची। तबतक मां घाव को दबाकर उससे पस निकालने लगीं।
आपको मेरी बात का यकीन नहीं होगा, लेकिन सिर्फ़ इतने से ज़ख़्म को देखकर मैं वहीं छत पर खड़े-खड़े गश खाकर ज़मीन पर गिर गई। होश आया तो बेचारे मनीष अपनी तकलीफ़ छोड़कर मेरे मुंह पर पानी के छींटे मारने में लगे थे और मां मुझे संभाले बैठी थीं। कई दिनों तक इस बात को लेकर मेरा मज़ाक उड़ाया जाता रहा। हम भी बेशर्म होकर खुद को सुकुमारी डिक्लेयर कर बैठे।
सुकुमारी मां के रूप में आती है तो सब बर्दाश्त करना सीख जाती है। अलर्ट होना, एमरजेंसी सिचुएशन हैंडल करना, ऑपरेशन थिएटर की बदबू में खड़े रहना, पट्टियां बदलना, एंटिबायोटिक का ठीक-ठीक डोज़ देना, अपने करीबी दोस्तों से मदद मांग लेना, उन्हें आवाज़ देकर बुला लेना - सबकुछ। कमाल है कि स्टिच वाले मुंह में खाना डालने के तरीके भी आ जाते हैं और दर्द के बावजूद थपकी देकर सुला देना भी। कमाल है कि इस बारे में बेबाकी से लिखना भी आ जाता है, और सोते हुए बच्चे के सिरहाने बैठे हुए उसपर इतना प्यार भी आ जाता है कि टूटी-फूटी कविताएं तक निकल आती हैं।
१
कहां से लाएं
शब्दों की दौलत
कहने की मोहलत
सुनने की फ़ितरत
जो लाना ही है
तो मांग न लाएं
तुमसे हमारा गुज़रा हुआ वक़्त?
२
मुल्तानी मिट्टी
आंवला और रीठा
पपीते का पैक
संतरे का छिलका
नाख़ून पर रंग
बालों पर रोगन
चम्मच-भर नींबू
ज़र्रा भर शहद
ज़ुबां की मिठास
आंखों की प्यास
जिस्म की ख़ुशबू से
दुनियादारी का क्या वास्ता?
३
धीमे धीमे
आंच जलाओ
अब दिल का
एक डोंगा चढ़ाओ
भर दो उसमें
इश्क का पानी
अपने आप को
उसमें मिलाओ
पकने दो और
भूल भी जाओ
हाथ जलाओ
हाथ हटाओ
इस गाढ़ी चाशनी को
अब जहां चाहो, बांटकर आओ
16 टिप्पणियां:
बहादुर मां के बच्चे के जल्दी ठीक होने के लिये शुभकामनायें।
बच्चे की बार माँ इतनी समर्थ हो जाती है इसीलिए उसे ईश्वर का स्वरूप कहते होंगे !
ज़िंदगी की डायरी में ऐसे ही हादसे और हौसले याद के पन्नों पर बचे रहेंगे। आदित के लिए खूब सारी विशेज़ कि वह जल्द ठीक हो जाए। कवितायें सुंदर हैं कि ज़िस्म की खुशबू से
दुनियादारी का क्या वास्ता?
मन पर लगी चोट पर कविता का स्टिच.
अपनों पर आयी विपत्ति देख मन और कड़ा हो जाता है, आँखें सब देख सकती हैं, दुख ठहरता नहीं, आकर बह जाता है।
बहुत ही भावपूर्ण रचना,आभार.
विपत्ती में भी बच्चों के सवाल मन को राहत देते हैं ।
मुश्किल आने पर हौसला भी आ ही जाता है खास तौर पर तब जब कोई दूसरा सहारा ना दिखे।
As they say adversity is the best teacher and when a child is in a hot soup moms show their claws.
may Aadit get well soon !
हमदम के दुख:दर्द ने मूर्छित किया
पुत्र की पीड़ा ने समर्पित किया
आज की ब्लॉग बुलेटिन १०१ नॉट आउट - जोहरा सहगल - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आदित ठीक होंगे !
get well soon dude :)
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Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
my mommy strongest....
बीवी भले सुकुमारी हो....
बच्चे को हमारा प्यार और शुभकामनाएं.
सुन्दर कवितायेँ पढ़ कर जी खुश हुआ
जो लाना ही है
तो मांग न लाएं
तुमसे हमारा गुज़रा हुआ वक़्त?
अनु
माँ ऐसी ही होती है
भावनाएं सीधे दिल से
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