टूटी-फूटी,
उलझी-सिमटी
प्रेम में लिपटी
कहानी को
दूं छोड़
और बख़्श दूं ऐसा मोड़
जहां से लौटने की
ना बाकी हो कोई राह।
आवेग में बहती
बिफरती, बिखरती
नायिका से
पूछूं ना सख़्त सवाल,
ना कसूं कोई तंज,
ना हो कोई रंज
उसे दूं बिखरे बाल,
और एक शख्सियत बेहाल।
रचूं एक हीरो
जिसके हारने का
ना हो कोई मलाल,
जो कांधे पर रखकर सिर
कह सके अपनी बात
जिसकी नमकीन आंखें
चलती हों हर पल नई चाल।
ना पूछो
ऐसा फ़साना कहां
कहां हों ऐसे किरदार
कि हमने ख़्वाबों में
जागते हुए
गुज़ार दिए कई
बेशक़ीमती साल...
4 टिप्पणियां:
सुन्दर सी रचना!
वाह बहुत ही सुंदर भाव संयोजन ...http://mhare-anubhav.blogspot.com/ समय मिले कभी तो आयेगा मेरी इस पोस्ट पर आपका स्वागत है
खुबसूरत रचना.....
आशाओं ने जिन जगहों पर समय बिताया है,
लोग बताते वहाँ बड़े झूठों का साया है।
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