अपना नया रूप दिखाओ, ओ बसंत
बढ़ाओ अपना हाथ, मुझे ले लो साथ
और रंग दो अपने ही किसी रंग।
धूप दो ऐसी कि पिघलूं
और दो सुकूं कि रो लूं जीभर के
टूटी हुई ख्वाहिशों के लिए लिखने दो गीत
और सौंप दो वो आख़िरी पैग़ाम-ए-इश्क।
टूटने दो लहरों का सन्नाटा,
कि बर्फ़ पिघली तो होगी कहीं
कहने दो अलविदा सर्द हवाओं को
कि लौटा मेरा वो महबूब नहीं।
उड़ने दो तितलियों को घूंघट के पास
लगाने दो घूंघर में एक लाल गुलाब
ना छेड़ो कोई राग ओ बुलबुल आज की रात
जो गाऊंगी साथ, तभी पूरी होगी बात।
रुको, रख दूं तुम्हारे होठों पर उंगलियां
गुज़र जाए आंखों का पानी, गुज़र जाए ये नर्म रात
ये मौसम नहीं होने देगा हमें नमनाक
ना तोड़ो इसकी लय को, और ना ही बैठो मेरे पास।
Show me your beauty, O Spring –
Give me a gentle touch,
and smear your colour atop the green.
Grant me a sun full of warmth
Give me some peace
Let the air sing a song of heartache
And give me that one final fling.
Let the lakes break out of their listlessness,
For, freeze has come and gone.
Let me say my adiue to the chill,
And beloved, forlorn.
Let the butterfly grace my veil,
And let a red rose dazzle in my hair
Behold your mellow song, O nightingale
Let me sing with you, when I come there.
Hang in there, for you are not allowed to say
Let the water flow, let the placid night go
Spring is the season not for tear
Hold that rhythm but not with me, Oh dear!
2 टिप्पणियां:
wonderful expression....
हे बसंत,
अब अंत करो,
यह दुख अनंत..
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