घर
क्या होता है
घर
किसको कहते हैं
ईंट, गारे, पत्थर,
छत और दीवारें
या ज़मीन भरोसे की,
छत ख़्वाबों का?
घर
रिश्तों की बुनियाद
पर खड़ी एक इमारत
जिसकी दीवारों पर
बच्चों के सपने,
उनकी शरारतें,
खिलखिलाहटें चिपकाईं हैं।
बाबा की खांसी,
दादी की घंटी का स्वर,
नानी की साधना,
नाना के योग के
गूढ़ रहस्यों की
यादें सजाईं हैं।
घर
अपना हो कि ना हो
रोज़-रोज़ की उलझनें,
झगड़े,
प्यार-मोहब्बत,
भागमभाग तो अपनी हो।
घर
बड़ा हो कि ना हो
मेहमानों की कद्र,
आनेवालों का सम्मान
करनेवाला
एक दिल तो बड़ा हो।
घर,
मुझसे मेरा घर,
मेरी पहचान
मेरा वजूद
तो मत मांग लो।
दे ना सकूंगी
इतनी बड़ी कुर्बानी
घुमन्तू हूं
फिर भी घर
लौटकर आती हूं।
3 टिप्पणियां:
बहुत सार्थक और भावपूर्ण रचना..
घूमंतू का भी केंद्र कोई घर ही होता है -है न ? कितनी भावपूर्ण रचना !
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