ये जो ढाई अक्षर है ना प्रेम का, इसकी ठीक-ठीक परिभाषा कहीं मिल सकेगी, ये कहना मुश्किल है। प्रेम, प्यार, इश्क, मोहब्बत, लव वगैरह वगैरह की जो धारणा मैंने बनाई उसकी नींव बॉलीवुड ने तैयार की। प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है। प्यार करनेवाले कभी डरते नहीं। जब प्यार किया तो डरना क्या। चाहिए थोड़ा प्यार, थोड़ा प्यार चाहिए। जब बड़ी हो रही थी तो लगता था कि प्यार वो है जो आंखों-आंखों में होता है। फिर यश चोपड़ा की फिल्मों ने प्यार की परिभाषा को और नए मायने दे दिए। ये वो रोमानी प्यार था जो लाल गुलाब की पंखुड़ियों-सा नाज़ुक और शंकर-जयकिशन के संगीत-सा मधुर था। पर्दे पर दिखाई देने वाला प्यार ही सच्चा प्यार था, ऐसा प्यार जो हीरो-हीरोईन में हो जाता हो, जिसे खूंखार खलनायकों का भी डर ना सताता हो, जो दुनिया के रस्म-ओ-रिवाज़ की बेजां चिंताओं में वक्त ना गंवाता हो। वो प्यार सोलह-सत्रह साल की उम्र वाला प्यार था – सच से दूर अपनी ही किसी दुनिया में मगन।
पहली बार प्यार हुआ तो समझ
में आया कि फिल्मों ने जो दिखाया, सब कमबयानी था। शायरों और कवियों ने जितना
बताया, वो भी काम ना आया। ये प्यार ऐसी गज़ब की चीज़ है कि जितनी बार जितनों को
होता हो, हर बार अलग रूप-रंग में मिलता है। हर बार अलग तरीके से सताता है। मेरे
प्यार के किस्से आपके प्यार के किस्से से मेल खाएंगे, इसकी गुंजाईश कम ही है। जिन
चीज़ों की शक्लें मिलती होंगी वो है बेचैनी, तकलीफ़ें, आंसू, नाउम्मीदियों और
उम्मीद के बीच के हिचकोले...
ये प्यार जिन दो दिलों को
बांधेगा वो वाकई दुनिया की परवाह किए बगैर बाग़ी बनकर अपनी नई दुनिया बसाएंगे -
क़यामत से क़यामत तक के लिए। लेकिन पर्दे पर दिखाई देने वाला ‘दे लिव्ड हैपिली एवर आफ्टर’ पर्दे के पीछे कोई और नई
कहानी रच रहा होगा। जितनी तेज़ी से प्यार हो जाता है, उतनी ही तेज़ी से प्यार से
उबर भी जाते हैं लोग। प्यार ख़ुमारी है तो उसका हैंगओवर बना रहे, उसके लिए बड़ी
मशक्कत करनी पड़ती है और सुबह-ओ-शाम प्यार में ढेर सारा भरोसा और सब्र मिलाकर
घूंट-घूंट पीना होता है। वरना हमारे आस-पास प्यार में दुनिया भुला देने और सबकुछ
लुटा देने के जितने किस्से हैं, उनसे कहीं ज़्यादा किस्से बेवफ़ाईयों और तकलीफ़ों
के, ब्रेक-अप्स और अलग हो जाने के हैं। जिन फिल्मों से हमारे प्यार की परिभाषा
बनती और पुख़्ता होती है, वो फ़िल्मी दुनिया तो प्यार के ऐसे तमाम किस्सों से भरी
पड़ी है। अगर पर्दे पर एक ‘आग’, ‘चोरी चोरी’, एक ‘बरसात’ थी तो पर्दे के पीछे राज कपूर-नर्गिस-सुनील दत्त के जिए
हुए बनते-बिखरते प्यार के लम्हे भी थे। ‘अभिमान’ और ‘सिलसिला’ भी प्यार की कहानियां थीं – कुछ हक़ीकत के
टुकड़े थे, कुछ स्क्रीन के लिए रचे गए मोमेन्ट्स थे। बॉलीवुड सफल-असफल प्यार का वो
अथाह सागर है कि जिसमें जितनी बार डुबा जाए, उतनी बार किसी नई सीपी में बंद कोई नई
कहानी हाथ आएगी। ग्लैम दुनिया से दूर मेरी-आपकी दुनिया का प्यार भी तो इससे अलग कहां
है?
लेकिन बात चाहे ऑनस्क्रीन
प्यार की हो या ज़िन्दगी के रंगमंच पर निभाई जानेवाली निस्बतों की, प्यार जो
कुर्बानियां मांगता है उनके बग़ैर इसे निभाना मुश्किल है। प्यार सबसे पहले हमारे
अहं की कुर्बानी मांगता है। ढाई आखर प्रेम का पाठ पढ़ानेवाले कबीर के शब्दों में
कहें तो ‘मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोर’। प्यार सब्र की सेज पर सोता है, इंतज़ार की
चादर ओढ़े कई-कई रातों की नींद अपने महबूब की फ़िक्र और उसके ख़्याल के हवाले कर
डालता है। प्यार को नापने का कोई पैमाना नहीं होता, सिवाय इसके कि आपमें तकलीफ़ों
को बर्दाश्त करने की कितनी क्षमता है। प्यार जितना गहरा होगा, जितना विशाल होगा
उतना ही मज़बूत होगा। प्यार महबूब के लिए जितना ही दरियादिल होगा, अपने लिए उतना
ही संगदिल होगा। प्यार माफ़ करना सिखाएगा। प्यार माफ़ी मांगना सिखाएगा। प्यार दर्द
भूलना सिखाएगा। प्यार खुशगवार लम्हे ताउम्र याद करना सिखाएगा। प्यार कमज़ोर
बनाएगा। प्यार हिम्मत बंधाएगा।
और अब प्यार क्या है ये भी
समझ आने लगा है और इस प्यार को कैसे बचाए रखा जाए, ये भी। प्यार वो है जो दादाजी चश्मा
लगाकर सुबह की चाय पीते हुए मेरी अनपढ़ दादी को अख़बार पढ़कर सुनाया करते थे।
प्यार वो है जो मां डायबिटिक पापा के लिए अलग से खीर बनाते हुए दूध में मिलाया
करती है। प्यार पति के खर्राटों में मिलने वाला सुकून है। प्यार गैस पर उबलता हुआ
चाय का पतीला है, जिसमें शक्कर उतना ही हो कि जितना महबूब को पसंद हो। प्यार अपनी
गैरमौजूदगी में भी मौजूद रहनेवाला शख्स है। प्यार आंखें बंद करके लम्हा भर के लिए
उसकी सलामती के लिए मांगी हुई दुआ है। प्यार फिल्मों के ज़रिए हमें
सिखाई-बताई-समझाई गई अनुभूति तो है ही, प्यार ‘दी एन्ड’ के बाद की बाकी पिक्चर है।
(डेली न्यूज़ 'खुशबू' के लिए वैलेंटाइन्स डे पर लिखा हुआ कॉलम - http://dailynewsnetwork.epapr.in/89442/khushboo/13-02-2013#page/1/1)
7 टिप्पणियां:
बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!बेहतरीन अभिव्यक्ति.
behtreen post....
हुंह कितना अनरोमांटिक प्यार? :-)
एक अपरिभाषित वस्तु की व्याख्याकहाँ संभव!
Nice posting ...... good words ..
Thanks
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प्यार के बारे में जितना कहा जाय, लिखा जाय, सोचा जाय, सब कम लगता है...ना?
प्यार इन्सान को खुबसूरत बना देता है दिल से,सोच से,और शक्ल से.
वो तो दिख ही रहा है
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