हर शहर की तरह पिछले आठ सालों में सिलिगुड़ी भी तेज़ी से बदला है। सड़कों पर भीड़ बढ़ी है, गाड़ियों का काफ़िला बढ़ा है और शॉपिंग मॉल्स की संख्या में तो बेतहाशा वृद्धि हुई है। जिस उत्तरायन की नींव पड़ते हुए पतिदेव ने पहाड़ों के तराई में बस जाने की ख्वाहिश जताई थी, वही उत्तरायन एक बड़ी-सी टाउनशिप में तब्दील हो गया है, जिसमें घुसते ही अंसल प्लाज़ा और मल्टीप्लेक्स थिएटर आईनॉक्स आपका स्वागत करता है।
हम विशाल मेगा मार्ट के सामने हैं और मैं दीवार पर बांग्ला में लिखे विज्ञापन के शब्दों को पढ़कर सुनाती हूं, “मनीष, दीवार पर लिखा है कि शिलीगुड़ी ते मूल्येवृद्धि युगे शेष”।
“मतलब?”
“मतलब नो इन्फ्लेशन इन सिलिगुड़ी। दादा के खराब बजट से ममता दीदी बचा लेंगी, बढ़ती हुई पेट्रोल की क़ीमतों से बचा लेंगी और जो पैसे हम बचाएंगे, विशाल मेगा मार्ट में आकर उड़ाएंगे।”
पतिदेव की नज़रें कहती हैं कि दैट वॉज़ अ पुअर जोक। बहरहाल, हम घुसे थे तीन सौ के कप खरीदने और निकले हैं कुल तेरह सौ की शॉपिंग करके।
शहर में हम कुछ देर और भटकते हैं। मैं चलती गाड़ी की खिड़कियों से बाहर होर्डिंग्स और बिलबोर्ड्स पर लिखे बांग्ला के विज्ञापन पढ़ने की कोशिश में अपनी उस दीवानगी पर मंद-मंद मुस्कुराती हूं जो आठवीं क्लास में की थी। रैपिडेक्स बांग्ला स्पीकिंग कोर्स से बांग्ला सीखने की कोशिश की थी, इसलिए क्योंकि शरतचंद्र की कहानियों और उपन्यासों को ओरिजनली बांग्ला में पढ़ना चाहती थी। लेकिन ये भाषा इतनी ही सीख पाई कि कोई भी बांग्ला में गालियां दे तो मैं समझ जाऊंगी और अख़बार ना सही, घटी हुई कॉल रेटों और सेल से जुड़े विज्ञापन तो पढ़ ही लूंगी। उपभोक्तावाद के इस ज़माने में मार्केट को मेरे जैसे साक्षर ही तो चाहिए।
सिलिगुड़ी में आकर आपने एयरपोर्ट मोड़ से शॉपिंग ना की तो क्या किया। एयरपोर्ट मोड़ की दुकानों के सामने तमाम बैंकॉक मार्केट्स फीके पड़ जाएंगे। चीनी मोबाइल्स हों या थाईलैंड के जूते, बोन चाइना की क्रॉकरिज़ हों या इलेक्ट्रॉनिक आईटम्स, यहां सबकुछ मिलेगा और ऐसी मज़ेदार क़ीमतों पर कि आप पूरे घर का सामान बदल डालना चाहेंगे। हां, टिकाऊ होने की गारंटी कोई नहीं लेगा। लेकिन सरकार, यहां घर ही कितने दिन टिका करते हैं?
मुझे अगले दो घंटे के सफ़र के लिए बॉलीवुड संगीत चाहिए और मैं सीडी की एक दुकान के बाहर खड़ी हूं। फेक चीज़ें बेचनेवाले इस बाज़ार में, ज़ाहिर है, संगीत भी पाइरेटेड मिलेगा। ए आर रहमान खोज रही हूं और साथ में शंकर-जयकिशन। बगल में बारह-चौदह साल के तीन लड़के आ खड़े होते हैं। स्कूल ड्रेस से लगता है, किसी सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं।
“दादा, इंग्लिश फिल्मेर शीडी आछे की?”
“आछे तो। कि चाई तोमाके?”
मेरे भी कान खड़े हो गए
हैं। देखना चाहती हूं कि डबल एक्स मांगते हैं या ट्रिपल एक्स। लेकिन जाने मेरे पूर्वाग्रहों
को झुठलाना है या बच्चे मुझे देखकर हिचकिचा रहे हैं, उनमें से एक कहता है, “ओ आछे की, एच-यू-एल-के, शेई
चाई।”“हल्क निकाल दीजिए और द इनक्रेडिबल हल्क भी। अवतार है? वो भी निकाल दीजिए बच्चों के लिए। स्पाइडरमैन की सारी सीरिज़ देखी है? सुपरमैन? बैटमैन? हाउ टू ट्रेन योर ड्रैगन? आयरन मैन? ”
बच्चे मुझे हैरत से देख रहे
हैं और मैं उनके लिए एक के बाद एक सीडीज़ निकलवा रही हूं।
“इतना नहीं देख पाएंगे दीदी,” हल्क की स्पेलिंग बताने वाला बच्चा कहता है।
“कोई बात नहीं। भैया को नाम लिखवा दो। एक एक करके देख लेना।” जी में आया है, कह दूं,
पॉर्न देखने से तो बेहतर है सुपरहीरो की फिल्मों देखकर फंतासी की किसी दुनिया में
रहना। लेकिन बहती हवा को कौन बांध सका है? चढ़ती उम्र को किसकी सलाह रास आई है?
बढ़ती मूंछों पर किसका वश चला है?मैं गाड़ी में लौट आई हूं और अब पूर्णियां जाने का वक्त हो चला है। छतरी लगाए चाय के बगानों में पत्तियां तोड़तीं औरतें पीछे छूट जाती हैं, अनानास के खेत पीछे छूट जाते हैं, पटुए की हरियाली पीछे रह जाती है और पीछे छूट जाता है मेरा घंटे भर का क्रश।
बड़ी गाड़ी में सफ़र करने का फ़ायदा है कि आप टांगें समेटकर पिछली सीट पर लेट सकते हैं। चुपके से लेट जाती हूं और सामने की सीट पर बैठे पतिदेव से कहती हूं, गाना बदल दो प्लीज़।
मन ही मन सोचती हूं, तेरी दुनिया से हो के मजबूर चला जैसे गाने अंत्याक्षरी में ही सुनने में अच्छे लगते हैं, सफ़र में नहीं।
8 टिप्पणियां:
सिलीगुड़ी और दार्जलिंग मेरे लिए...एक बार देखा है दूसरी बार देखने की तमन्ना है...वाली ख्वाहिश है. ऐसे याद आता है जैसे बिछड़ा हुआ महबूब. मैंने पहली बार मिस्टी दोई सिलीगुड़ी में ही खायी थी. मेरा मौथऑर्गन भी वहीं ख़रीदा था...और कितनी ही चीज़ें...कितने रंग. मन ऐसे ललच गया था लेकिन दार्जलिंग महीने भर की यात्रा का पहला पड़ाव था तो ज्यादा सामान नहीं खरीद सकते थे.
अभी तक जितने रास्तों पर घूमी हूँ...सिलीगुड़ी से दार्जलिंग से खूबसूरत रास्ता और कोई नहीं दिखा है. इस पोस्ट को पढ़ कर वो सब कुछ याद आ गया. पूर्णिया में आराम से आप आम और लीची खाईये...हम लोग के लिए फोटो उटो सटा दीजियेगा, उसी को देख कर खुश हो लेंगे :) :)
जिंदगी का सफर...
अंग्रेजी फिल्मों का वर्गीकरण बहुत ही संक्षिप्त मिलता है हर दुकान पर।
safar jaari rakho anu main bhi saath hoon
हल्क निकाल दीजिए और द इनक्रेडिबल हल्क भी। अवतार है? वो भी निकाल दीजिए बच्चों के लिए। स्पाइडरमैन की सारी सीरिज़ देखी है? सुपरमैन? बैटमैन? हाउ टू ट्रेन योर ड्रैगन? आयरन मैन? ”
बच्चे मुझे हैरत से देख रहे हैं और मैं उनके लिए एक के बाद एक सीडीज़ निकलवा रही हूं।
IT SHOWS THE EMOTIONAL ATTECHMENT ,
TOUCHING LINES .......
आज से लगभग २५ साल पहले कई बार सिलीगुड़ी देखा....एक सुन्दर छोटा सा शहर जहां सभी विदेशी सामान मिल जाता था....लगता है सभी जगह की तरह यह भी बहुत बदल गया है....बहुत रोचक यात्रा वृतांत....
एक संक्षिप्त परिचय तस्वीर ब्लॉग लिंक इमेल आईडी के साथ चाहिए , कोई संग्रह प्रकाशित हो तो संक्षिप ज़िक्र और कब से
ब्लॉग लिख रहे इसका ज़िक्र rasprabha@gmail.com
पहले का भी एक सिलीगुड़ी यात्रा वृत्तांत याद आ रहा है जिसमें किसी कमिश्नर साहिबा /साहब ने कुछ स्थानीय सद्भाव आपको मुहैया कराये थे ..है न ?
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