मेरी प्यारी नानी,
कई दिनों से सोच रही हूं कि आपको लिखूं चिट्ठी। कुछ वैसी ही निर्दोष, जैसी बचपन में लिखा करती थी। जब लिखा करती थी कि सब कुशलमंगल है, वाकई वैसी होती थी ज़िन्दगी, या शायद उतना ही समझ आता था। हालांकि आपके कुशल हो जाने की कामना की तीव्रता अब भी कम नहीं हुई।
नानी, आपको वैसे ही याद करती हूं इन दिनों जैसे पैरों के तलवे में बेसबब निकल आया कोई ज़ख़्म याद आया करता है, एक अविराम टीस की तरह, जिसके होने से याद आता रहते हों वो तलवे जिनपर शरीर का बोझ होता है और जिनपर वक़्त-वक़्त पर मरहम लगाना ज़रूरी होता है। वरना तो अपनी हर प्रिय और सबसे आवश्यक चीज़ को ग्रान्टेड ले लेने की बुरी बीमारी होती है हम सबको।
इन दिनों गर्मी की छुट्टियां है, इसलिए और याद किया करती हूं वो घर जहां पैदा हुई, जहां अपनी सबसे बड़ी बेटी की सबसे बड़ी बेटी को आपने अपनी सबसे छोटी संतान बना लिया। टुकड़ों-टुकड़ों में याद है कि आपके सीधे पल्ले के आंचल को खींचकर अपने सिर पर डालकर गोद में सो जाना बड़ा मुश्किल होता था। उसपर आपका आंचल तो सिर से खिसकता भी नहीं था नानी। फिर आपकी घिसी हुई हड्डियां चुभती थीं। पूरे शरीर पर कहीं मांस का कोई टुकड़ा नहीं। हड्डियों के ढांचे में भी आपकी झुर्रियों वाली हंसी कितनी ख़ूबसूरत लगती थी। मम्मी भी बिल्कुल आपके जैसी लगने लगी हैं अब। मैं भी तो मम्मी जैसी हो गई हूं।
तो नानी, आप तो अपने पिता की जायदाद की इकलौती वारिस थीं ना? ये भी सुना है कि विरासत में मिले खेत सोना उगला करते थे। सोने-से मकई के दानों पर पूरी दोपहर खेलना तो मुझे याद है। आपके बगीचे के आम-सा कुछ नहीं खाया पूरी ज़िन्दगी। और नानी, वो बनारसी बेर। उफ्फ, भूला नहीं मुझको कि कैसे मुंह में डालते ही घुल जाया करता था। आपकी गौशाला से निकले दूध की गाढ़ी मलाई खाने की ऐसी लत पड़ी कि मदर डेयरी को कोस-कोसकर भी मलाई निकालकर बिल्ली की तरह चाट जाया करती हूं। जब मदर डेयरी की मलाई मुझे गोल-मटोल, चुस्त-दुरुस्त बनाए रखती है तो फिर आपकी गायों में क्या खोट था कि आप पर एक आउंस वज़न भी नहीं चढ़ा?
कुछ अपने लिए रखतीं तब तो बचता, नानी। आपको बांटने की बीमारी थी। बाकी की कमियां सोम-बृहस्पति, एकादशी-पूर्णिमा के व्रत पूरी कर दिया करते थे। किसके लिए व्रत करती थीं इतना, ये मां बनीं हूं तो समझ में आया है। अपने बच्चों की सलामती के लिए एक नास्तिक भी पत्थरों को चूमने लग जाता है, आपका तो ख़ैर ऊपरवाला से सीधा कनेक्शन था। उसी कनेक्शन का नतीजा था कि किसी फरिश्ते-सा सब्र था आपमेँ। आपकी ख़ामोशी अब समझ में आती है कि प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए अक्खड़, ज़िद्दी, गुस्सैल और बेहद अनुशासित नाना का साथ निभाने के लिए एक सहृदया, गंभीर और ख़ामोश नानी का होना ज़रूरी था।
मैं अक्सर सोचती हूं कि आर्थिक रूप से आज़ादी औरतों की आज़ादी का रास्ता प्रशस्त करती होगी, लेकिन आपकी मिसाल यहां एन्टीथीसिस का काम करती है। आपको मायके की जायदाद विरासत में मिली, आपके पास एक अदद-सी सरकारी नौकरी थी और क़ायदे से फ़ैसलों की कमान आपके हाथ में होनी थी। लेकिन मेरी पिछले तीस सालों की समझ कहती है कि आप अपनी आर्थिक आज़ादी को लेकर एक अजीब किस्म के गिल्ट से जूझती रहीं। गांव में इकलौती काम-काजी औरत होने का गिल्ट था, मायके में बस जाने का गिल्ट था, तीन बेटियां पैदा करने का गिल्ट था और अपने वजूद का गिल्ट था।
अब समझ में आता है कि दरअसल ये स्त्रियों की डीएनए संरचना का दोष है। आपके गिल्ट को देखकर आपकी बेटी ने कामकाजी ना होना तय किया और ज़िन्दगी भर पति पर आश्रित बने रहने के गिल्ट में रहीं। आपकी बेटी के गिल्ट को देखकर मैंने आर्थिक रूप से आज़ाद होने की पुरज़ोर कोशिश की, और फिर भी गिल्ट में रही। मैं शायद अपनी बेटी को भी विरासत में वही अपराधबोध सौंप रही हूं। ये कैसा बोझ है नानी? हम कैसे बदलें इसको? अगर मैं, आप अपने आस-पास के कई लोगों से बेहतर और जागरूक हैं तो इसको लेकर अपराधबोध कैसा? हम क्यों भीड़ को खुश करने के लिए भेड़चाल में भेड़ बने रहते हैं? हमें क्यों अपने वजूद पर गुमान करना नहीं सिखाया गया?
नानी, मुझे याद है कि आप स्कूल की मास्साब और अपने घर के लिए बेटा और बहू दोनों बनने की कोशिश में कैसे पिसा करती थीं? याद है मुझे कि स्कूल में वीणा बजाती मां शारदे का आह्वान करते हुए भी आपका ध्यान उस ज़िम्मेदारियों पर होता था जो हर लिहाज़ से गैर-ज़रूरी थीं, लेकिन एक गृहस्थ परिवार की शान बचाए रखने के लिए जिनका उन्मूलन नामुमकिन था। कभी-कभी आपसे बेजां कोफ्त होती है कि आपने सबको खुश रखने के क्रम में अपने देह और अपनी आत्मा की धज्जियां उड़ाईं। एक राज़ की बात बताऊं नानी? आपके गांव से कई सौ किलोमीटर दूर बैठकर एक महानगर में रहते हुए भी, देश के सबसे अच्छे कॉलेज में पढ़ लेने के बाद भी मेरी किस्मत और फितरत पर आपकी परछाईयां दिखाई देती हैं। मैं पचास साल बाद भी भेड़चाल में ही हूं, एक भेड़ की तरह, इस ख़ौफ़ में कि मेरे अलग रंग की ख़बर भीड़ को मिली और मुझे आउटकास्ट क़रार दिया गया तो?
आप भी डरती थीं, मैं भी डरती रहती हूं।
नानी, मेरी ट्विन प्रेगनेन्सी के बारे में जानकर डॉक्टर ने फैमिली हिस्ट्री के बारे में पूछा। मैंने ना में जवाब दे दिया और मेरे साथ बैठीं मम्मी चुप रहीं। गाड़ी में उन्होंने धीरे से बताया, नानी को ट्रिप्लेट्स हुए थे, बच नहीं पाए। मैंने मम्मी को सवालिया निगाह से देखा, पांच बच्चों के अलावा? उन दो और बच्चों के अलावा, जो बच नहीं पाए? नानी बच्चा पैदा करने की मशीन थीं? एक स्कूल की प्रिंसिपल होने के बावजूद? पढ़ी-लिखी होने के बावजूद? मम्मी चुप रहीं। नानी से चुप्पी विरासत में मिली थी उन्हें, मुझे भी मिली है। क्या-क्या दिया है मुझे विरासत में मुझे नानी, आपने?
आपकी तरह मुझे फ़ैसले लेने से डर लगता है नानी, ऊंची आवाज़ में अपनी बात कहने से डरती हूं। डरती हूं कि कुछ कह देने से बात बिगड़ी तो? ज़िद किसी की नाराज़गी का सबब बना तो? इसलिए नानी, ये जानते हुए भी कि आपकी आख़िरी ख़्वाहिश मेरे जुड़वां बच्चों को देख लेना था, मैं अपनी ससुराल से आपके पास जाने की अनुमति मांगने की ज़िद नहीं कर पाई। मैं नहीं आ पाई आपको देखने, और सुना है कि आप आखिरी सांसें लेते हुए भी मेरे बारे में पूछती रही थीं। मम्मी ने मुझे नहीं आने के लिए चार सालों में माफ़ कर दिया होगा मुझे, मैं ज़िद नहीं करने के लिए आजतक ख़ुद को माफ़ नहीं कर पाई।
एक रात सपने में आप आई थीं। मेरे पैर में कांटा चुभा था कोई और मैं ननिहाल में बिस्तर पर बैठी थी, कांटे को निकालने के कोशिश में। आपके हाथ में कोई जंगली पत्ता था। आपने कहा मुझसे, अकवन के दूध से कांटा निकल जाई बाबू, तहार दुख दूर करे खातिर रामजी के आगे हाथ जोड़ब।
आपका रामजी से सीधा कनेक्शन है, हाथ जोड़िएगा नानी। लेकिन मेरे ज़ख़्मों का इलाज मत कीजिए। टीसते रहे ये घाव तो याद आती रहेंगी आप, और याद आता रहेगा मुझे कि मैं किसके जैसा नहीं बनना चाहती थी और क्या बनती रही फिर भी...
पोस्टस्क्रिप्ट: नानी को मैंने आख़िरी बार अपनी शादी में देखा था। शादी में उन्होंने वही सिल्क की साड़ी पहनी जो मैं अपने पैसे से खरीदकर लाई थी उनके लिए। पौ फटते ही पराती गाने बैठी नानी और दादी को देखकर लगता, बस इसी एक खुशी पर सब कुर्बान और शाम को नानी ढोलक के साथ राम-जानकी विवाह के गीत गातीं - जाईं बाबा जाईं अबध नगरिया/जहां
बसे दसरथ राज/पान सुपारी बाबा तिलक दीहें/तुलसी के पात दहेज/कर जोरी बिनती करेब मोरे
बाबा/मानी जायब श्रीराम हे।
पान सुपारी और तुलसी के पात से ही श्रीराम मान गए। दशरथ भी, नानी। हमें ये क्यों नहीं मालूम कि जानकी की मां का नाम क्या था और उनकी नानी कौन थीं? या धरती-सा धैर्य सारी औरतों का स्वभाव है और इससे भी क्या फर्क पड़ता है कि मेरी भी नानी कौन थी?
भूल-चूक, सवाल-जवाब की माफ़ी मांगते हुए,
आपकी
अनु
16 टिप्पणियां:
कुछ अनुभव सारे पढ़े-लिखे को सगड़बड़ा देते हैं !
कुछ अनुभव सारे पढ़े-लिखे को गड़बड़ा देते हैं !
नारी कहूँ या भारतीय नारी का यही सर्वोच्च गुण उसे पुरे विश्व में वंदनीय हैं .
आप कभी न सोंचें आधा गिलास खाली है वास्तव में आधा गिलास भरा है .
गुण सदा गुण ही होते हैं बस परिस्थितियां ............
प्रेम और संस्कारों से भरा ये पत्र ...हर स्त्री के मन की बात है ....एक शाश्वत सत्य सा ....जिसकी महक फूलों के खुश्बू की तरह कभी कम होगी ही नहीं...!!
सुंदेर विचार और उत्नी ही सुंदर अभिव्यक्ति भी ....!!
शुभकामनायें.
एक एक लफ्ज़ दिल को छूता चला गया अनु जी....
मुझे भी याद आयीं अपनी प्यारी दुलारी नानी....
सस्नेह
अनु
भोरे से सेंटीयाये बैठे हैं आपके कारण...ई अच्छा बात नई है.
Thanks Anu - meri naani yaad aa gayin, literally :) This was beautiful - tortured, introspective and yet a lovely tribute.
इस पत्र में चित्रित पीढ़ियों की कहानी कुछ अपनी जैसी ही लगती है, दादी की ओर से।
इतनी अच्छी सच्ची चिट्ठी .... कुछ नहीं कहना अधिक , क्योंकि आँखें नम हैं
तरलता कितनी आसानी से फैलकर कितनों को समेट लेती है.
पोस्ट - एक से बढ़ कर एक.
101….सुपर फ़ास्ट महाबुलेटिन एक्सप्रेस ..राईट टाईम पर आ रही है
एक डिब्बा आपका भी है देख सकते हैं इस टिप्पणी को क्लिक करें
सिर्फ़ पोस्ट ही नहीं , टिप्पणियों पर भी नज़र है हमारी , देखिए आज आपकी पोस्ट पर पाठकों ने क्या प्रतिक्रिया दी , हमने सहेज लिया है , इस टिप्पणी पर क्लिक करें
भावपूर्ण -ये डी एन ये का मामला ही विरासत वाला है ! :(
Sochneeya hai nani ki chitti...
Behtreen rachna...
सच है कभी कभी विरासत में ही कुछ ऐसी चीज़ें मिली होती हैं जीवन में जिन्हें हम पीढ़ियों में भी बदल नहीं पाते और ज़िंदगी भर सब कुछ जानते समझते हुए भी यही सोचते रह जाते हैं कि आखिर हम क्या हैं और किसके जैसा बनाना चाहते है बहुत ही मार्मिक चिट्ठी
आँखें नम ...
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