सुघड़ मां? मैं? तीर-ए-नीमकश-सा कुछ गया है दिल के आर-पार। छह साल मैंने गुज़ार दिए तुम दोनों के बहाने। इरादा ये नहीं था कि सुघड़ मां का तमगा हासिल कर लेना है। लेकिन मां होने की आड़ में खुद से बड़ी ज्यादतियां की हैं, तुमलोगों से भी, आस-पास से भी।
छह साल बर्बाद होने दिए, आबाद होने दिए। जब औंधे मुंह गिरी, मातृत्व के माथे फोड़ दिया ठीकरा। ट्विन् यू सी, वेरी डिफिकल्ट टू डू द जगलिंग। सफल हो गई तो वाहवाहियां भी इन्हीं के नाम। दोनों मेरी प्रेरणा हैं, म्यूज़ हैं, बचाए-जिलाए रखते हैं मुझे। इनसे ही तो सीखती हूं सबकुछ।
मुमकिन हो आधी हक़ीकत, आधा फ़साना जैसा कुछ आलम यहां भी हो। थोड़ा-बहुत लिखने का शऊर है तो किसी भी बात को अपने तरीके से तोड़-मरोड़ ही डालूंगी। इसलिए एक कन्फेशन करना चाहती हूं। मेरे होने-ना होने में तुम दोनों का उतना ही हाथ है, जितना मेरी मां ने मुझे बनाया-बिगाड़ा होगा। मां के ना चाहते हुए भी मैं भीतर की घुन्नी, विद्रोहिणी, अव्वल दर्ज़े की पाखंडी और बहानेबाज़ निकली। मेरे पास मेरी हर असफलता का बहाना था, मेरी हर नाकामियों के लिए जस्टिफिकेशन।
अब ये जस्टिफिकेशन तुम लोगों के नाम कर दिया है। बच्चों को स्कूल भेजना है, इसलिए जल्दी सोना पड़ता है। उन्हें सुबह तैयार करना होता है इसलिए मॉर्निंग वॉक के लिए कैसे जाऊं? उनके लिए घर में होना होता है, तो काम कैसे करूं? बच्चे बीमार हैं तो डेडलाईन गई भाड़ में। सिरहाने बीस-बाईस किताबें रखी हैं सजाकर। हर दूसरे दिन मैगज़ीनवाला नई मैगज़ीन दे जाता है और मैं बिना पढ़े उसको पत्रिकाएं लौटा दिया करती हूं। बच्चों के साथ वक्त कहां मिलता है? नालायकी और आलस्य की हद है।
सुघड़ मां का एक किस्सा सुनाऊं? पिछले हफ्ते की बात है। आदित बीमार था, और घर पर था। याद नहीं ठीक-ठीक कि मैं लैपटॉप पर क्यों थी? फेसबुक पर थी या जीटॉक पर, असाईनमेंट लिखकर रही थी या कॉन्सेप्ट नोट, इससे फर्क नहीं पड़ता। बच्चा बगल में लेटा हुआ था, और मैं कीबोर्ड पर लगी हुई थी।
"मैं टेन तक गिनूं तो आपका काम हो जाएगा, मम्मा?"
"हूं? हूं।"
"वन, टू, थ्री, फोर.... टेन। मम्मा हो गया। आपका हुआ?"
"हूं? नहीं हुआ।"
"हन्ड्रेड तक गिनूं, मम्मा?"
बिना उसकी तरफ देखे मैं स्क्रीन पर आंखें गड़ाए बैठी रही।
"गिन लो।" मकसद टालना था।
"ट्वेन्टी... थर्टी एट... सिक्सटी सेवेन.... नाईन्टी वन... हन्ड्रेड.... मम्मा, हो गया।"
"अच्छा।"
मेरा काम अब भी खत्म नहीं हुआ था। जाने कौन-सा महाकाव्य लिखने में लगी थी।
"मम्मा... हो गया..."
"हूं..."
"मम्मा, प्लीज़... हो गया... मेरी तरफ देखो न।"
"एक मिनट, बेटा... ये कर लूं?"
"मम्मा, वॉशरूम।"
"क्या?"
"वॉशरूम, मम्मा।"
"तो चले जाओ ना आदित।"
"ठीक है।" बच्चा बुखार में उठा, और लड़खड़ाते हुए बिस्तर से नीचे उतरने लगा। तब होश आया कि मेरा बेटा बीमार है। गिल्ट मिटाने के लिए इतना ही कहा मैंने, "मम्मा चले साथ?"
"हां, प्लीज़ मम्मा। चक्कर आ रहा है।"
मुझे होश तब आया और मैंने उसे गोद में उठाया।
मेरी गर्दन के दोनों ओर हाथ बांधकर उसने धीरे-से कान में कहा, "उतार दो मम्मा। डॉक्टर ने आपको भारी चीज़ उठाने से मना किया है। पीठ में दर्द होगा।"
"तुम इतने भी भारी नहीं हो आदित", हम फिर से एक-दूसरे में मसरूफ हो गए। आदित भी मुस्कुरा उठा। वॉशरूम से लौटने के ठीक पांच मिनट बाद तक
मैं उसके माथे पर हाथ फेरती रही। फोन की घंटी बजी। क्लायंट। जिसका डर था, वही हुआ।
"आर यू डन, अनु? आधे घंटे में मेल कर सकोगी?"
"नहीं यार। हैव जस्ट बीन सो टेरिबली कॉट अप। माई सन इज़ नॉट वेल।"
"ओ हो। टेक योर टाईम देन। शाम को बात करते हैं।"
हां, लेकिन बेटे ने मुझे काम करने से कब रोक लिया था? मैं रात में जाग सकती थी। सुबह काम कर सकती थी। उसे वक्त देते हुए चार पन्ने लिखने में कितना वक्त लगता है?
हेन्स प्रूव्ड, मां सुघड़ नहीं, निहायत ही डिसऑर्गनाइज़्ड और बेसलीका है। उसका वक्त कहां किसी का हो पाता है? उसका वक्त अपना भी नहीं होता।
बच्चों के सिरहाने गुज़ारनेवाले रात और दिन के नाम मां ने अपनी तमाम नाकामियां कर दी हैं। दस साल बाद कहना शुरू कर दूंगी, मैं दुनिया की सबसे बेहतरीन प्रोफेशनल होती मगर... आई कुडन्ट बिकॉज़ ऑफ यू। ये मेरे बच्चों के लिए सबसे बड़ी सज़ा हो शायद और मेरे लिए अपना आलस छुपाने का सबसे बड़ा कवच।
हैप्पी मदर्स डे, मम्मा!
11 टिप्पणियां:
आई ऑब्जेक्ट !
सुघड़ माँ ने अपने को बचा रखा है अभी है. बचा लेगी तब भी.
इसे पढ़ते ही तुरंत यहाँ से नौ दो ग्यारह हो जाना चाहिए..:)
ये 'तेरी मेरी उसकी बात' जैसी है...
uff ....
व्यस्त और कामकाजी माँ ऐसी ही होती है .
i agree................
no no.....disagree............
yeah....happy mothers day to all kind of mammas.
:-)
anu
निःशब्द ... (यहाँ कुछ लिखा था मिटा दिया) ....बस इतना ही :)
क्यों डिस्टर्ब करें....
मेरी बात...तुमने कैसे कह दी...
अनगढ़ से विचार शब्द पा कर कभी किस्से लगते, कभी सच्चे.
mera apradhbodh hai...ve saare kaam jo unse door rahkar karne padte hain. main hamesha unke kareeb rahna chahti hoon.
''आई कुडन्ट बिकॉज़ ऑफ यू।''
I object, I object, I object.
Hope sustained.
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