कहीं रुकता ठहरता नहीं ये मन,
दर-दर की ठोकर फितरत है।
कभी यहां रुके, कभी उधर चले,
मंज़िल की किसको हसरत है।
रस्ते में हमको लोग मिले,
कुछ संग चले, कुछ छूट गए।
इनसे ही सीखा जीना भी,
इन लोगों से ही बरकत हैं।
मन है कि ढूंढे दर्द नए
कभी किस्सों में, कभी नज्मों में
शब्दों की हेरा-फेरी है,
पर दर्द ही अपनी किस्मत है।
मन देश-देश की सैर करे,
कूचे-कस्बे में क्यों भटके।
कहते हैं, पैरों में पहिए हैं
और घुमन्तुओं की सोहबत है।
1 टिप्पणी:
ये पहली पोस्ट की आखिरी लाइनें ही हैं ब्लाग के टाप पर वाह! :)
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