और कितना ही अच्छा है कि सारे गुण भरे हुए हैं भीतर - संवेदना, समझ, सुकून। एक माँ, और एक औरत को बिल्कुल ऐसा ही होना चाहिए। रसोई के डिब्बों में समृद्धि अंटी पड़ी हो, बालकनी में शांति कोंपलों से फूट-फूट जाती हो, कमरों में कपूर-सी पवित्रता बांधती हो, फर्श पर अपने सुघड़ होने की परछाई मुस्कुराती हो, सुसंस्कृत बच्चे सिर पर मौजूद अदृश्य ताज हों।
ज़िन्दगी का हासिल बस इतना ही होना चाहिए न? यही तो होना चाहिए - एक अच्छा-सा घर, दो गाड़ियां, बैंक अकाउंट में उतने पैसे जितने से ज़िन्दगी आराम से कटती रहे, अच्छे कपड़े-लत्ते, इज्ज़त, शोहरत, तीन कामवालियां जो आकर आपकी गृहस्थी बारी-बारी से संभाल जाती हों। ज़िन्दगी का हासिल बस इतना ही होना चाहिए। सच में। ज़िन्दगी का हासिल वाकई बस इतना ही होना चाहिए।
मैं तुम्हें किस तरह के क़िस्से सुनाऊं दोस्त? तुमसे बात भी करूं तो क्या? कहूं तो क्या? सुनूं तो क्या? ये कि ग्रोफर्स पर सब्ज़ियां सैंतीस के मार्केट से थोड़ी सस्ती मिल जाएंगी? या फिर ये कि बिग बाज़ार में नॉन-स्टिक फ्राइंग पैन पर भारी डिस्काउंट था? या मैं तुम्हें ये बताऊं कि मल्टिप्लिकेशन की छह किस्म की स्ट्रैटेजी होती है - बाइनरी, लैटिस, एरिया मॉडल, ऐरे मेथड, रिपीटेड एडिशन और चिप मॉडल? या फिर ये बताऊं कि बादामरोगन में दही डालकर बाल में लगाओ, और एक घंटे छोड़ दो तो बाल एकदम सॉफ्ट हो जाते हैं? या फिर ये बताऊं कि पीठ दर्द का इकलौता इलाज नैचुरोपैथी में है, और आयुष के सेंटर्स दिल्ली के बेहतर हैं, नोएडा के नहीं?
श्श्श्श्शशशश... शोर बिल्कुल मत मचाओ। मेरे भीतर का लफंगा मन फिलहाल योग निद्रा के अभ्यास में मसरूफ़ है। जिस रोज़ उठकर लुच्चापंती करेगा, उस रोज़ आऊंगी सुनाने क़िस्से। इन दिनों कहने के लिए वाकई कुछ नहीं है।
2 टिप्पणियां:
आपका यह लेख अच्छा आज सुबह सवेरे में "ब्लॉग से" में पढ़कर बहुत अच्छा लगा ।
हार्दिक शुभकामनायें!
बेहद बेमिशाल
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