बयालीस साल... बयालीस साल कोई गुज़ारता है साथ-साथ। और फिर एक दिन दोनों में से कोई एक चला जाता है चुपचाप। जो रह जाता है, उसकी तन्हाई और तकलीफ़ के बारे में चाहे जितना चाह लें, कुछ भी लिखा नहीं जा सकता। सब दिखता है, फिर भी नहीं दिखता। सब समझ में आता है, फिर भी समझना नहीं चाहते हम।
मृत्यु - ज़िन्दगी के इस सबसे बड़े, सबसे कठोर और इकलौते शाश्वत सत्य से क्यों फिर भी स्वीकार नहीं कर पाते हम? क्यों लिखने से डर रही हूं कि अब धीरे-धीरे हमारे आस-पास मौजूद मां-पापा, चाचा-चाची, अंकल-आटी, मामा-मामी, मौसी-मौसा, बुआ-फूफा की जोड़ियां बिखरेंगी और फिर एक दिन हम भी इसी दहलीज़ पर होंगे जहां आगे घनघोर तन्हाई दिखती है, जहां होते हुए ना खुलकर रोया जा सकता है ना ख़ामोश रहा जा सकता है... जहां से सरकते हुए वक्त में पिछले कई दशकों की परछाईयां देखते हुए अपनी ज़िन्दगी के कट जाने का इंतज़ार ही किया जा सकता है बस।
सच है कि हम भी मरनेवालों का शोक मनाएंगे एक दिन। हम भी बिना अलविदा कहे चले जाएंगे एक दिन।
और चले जाएंगे आस-पास के लोग धीरे-धीरे, कि मर जाना इस ज़िन्दगी का इकलौता सच है। ।
१
बड़ा मुश्किल है
कुछ चीज़ों के बारे में सोच पाना
जैसे कि पहले पापा गुज़र जाएंगे, या मम्मी।
२
उस दिन भी रख दिया था
आपका चश्मा पोंछकर मेज़ पर
आपने लेकिन अपनी आंखें फिर ना खोलीं।
३
नहीं लौटेंगे बाबा
ये तो कई सालों से जानती हूं
उनके नकली दांत अभी भी हंसते हैं इस बात पर।
४
अब भी वैसे ही है
हैंगर में टंगा हुआ नीला सफ़ारी-सूट
बस मेरी साड़ियों के रंग उतार लिए गए हैं।
५
सब कट ही जाता है,
घंटे, दिन, रात, हफ्ते, महीने, साल, उम्र
एक चाय की सुड़कियों वाला लम्हा नहीं कटता।
17 टिप्पणियां:
अरे क्या है ये .......
रुला कर छोडोगी.
hate u
hate u
hate u
एक चाय की सुड़कियों वाला लम्हा नहीं कटता!
itna saral !!!!
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 08 - 11 -2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
सच ही तो है .... खूँटे से बंधी आज़ादी ..... नयी - पुरानी हलचल .... .
अति संवेदनशील...
बिलकुल सही बात है | खुद भी कुछ ऐसे ही दौर से गुज़र रहा हूँ !!!
ओह ! रुला दिया आपने... :(((
जब कोई सत्य शेष नहीं बचता है, तब भी मृत्यु का सत्य शेष रहता है।
मृत्यु शाश्वत सत्य है .... सच ऐसे ही बिना अलविदा कहे चले जाएँगे हम सभी ...
हर क्षणिका मन की गहराई तक पहुंची ... चश्मा जिसे पोंछ कर रखा लेकिन फिर काम नहीं आया ... बाबा का डेंचर आज भी हँसता है ... चाय पीते लम्हे और साड़ियों के रंग का उतार दिया जाना ...॥मन को भिगो गया ।
कहने को कुछ शेष नहीं ...बस इतना ही कि
यादे अब भी पीछा नहीं छोड़ती
he bhagwaan ye aapne aaj kya likh diya ...andar bahar har royein se kaamp rahi hoon.ye sach apne se, apno/auron se kabhi nahin batana/kahana chahiye,isi ek sach ko chhupane se paap nahin lagata .ab agali post me aisa vaisa kuchh mat likhiyega plzzzzzzzzzzz its a rqst .
खुबसूरत यादों की बानगी
कुछ सच वाकई बड़े कटु होते हैं।
aisee hi kuchh soch mere me bhi aati hai.. Anu jee
pahle hamne dekha dada-dadi type ke logo ka death ho raha tha, fir chacha chachi me se log gujarne lage... ab to bhaiya bhabhi ka bhi no. aane laga..
pata nahi kab ham??:)
संवेदनशील पर सत्य |
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
ब्लॉग जगत में नया "दीप"
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
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