ये कोई ऐसा मील का पत्थर भी नहीं जिसका जश्न मनाया जाए। लेकिन अपने ड्राफ्ट्स में देखती हूं कि आज लिखी जाने वाली पोस्ट मेरी २००वीं पोस्ट है, तो मैं थमकर सोचने पर विवश हूं कि क्या हासिल रहा इस लिखाई का? मुझे लिखना नहीं आता, लेकिन कमाल की बात है कि यही लिखना अब मेरी आजीविका है। (पेशा नहीं कहना चाहती, अभी भी)। फिर ब्लॉग पर इस लिखे हुए को सेलीब्रेट करने का बहाना क्यों ढूंढा जाए?
२००९ में ब्लॉग करना शुरू किया था शायद। अजीब से दिन थे वो भी। दो-ढाई साल के बच्चों के साथ उलझी हुई थी। कोई सोशल लाईफ नहीं, कोई दोस्त नहीं। नौकरी छूटी, दोस्त-यार छूटे। कई-कई महीने दिल्ली से दूर इधर-उधर बिताती रही। कई-कई दिनों तक फोन की घंटी तक नहीं बजा करती थी। किसी से बात भी करती थी तो ज़ुबां पर कोई बात नहीं आती थी। बच्चों को बड़ा करना इतनी एकाकी प्रक्रिया होती है, मुझे इसका ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था। मैं पूर्णियां में थी बच्चों के साथ और मुझे याद है कि फोन पर भाई को कहा था, आई कान्ट थिंक स्ट्रेट। कई बार लगता है कि मैं अपनी भाषा भी भूलने लगी हूं।
मैं भूलने ही लगी थी सबकुछ। दोस्तों से कतराने लगी थी, खुद से डर लगने लगा था और आत्मविश्वास टुकड़े-टुकड़े होकर ऐसे बिखर गया था कि सूझता ही नहीं था, सहेजना शुरू कहां से करूं खुद को।
फिर एक दोस्त की ज़िद पर ब्लॉगिंग शुरू की। जहां होती हो, वहां से लिखा करो। लेकिन लिखूं क्या? कुछ भी। जस्ट थिंक अलाउड।
वैसे भी मुझे जानता कौन था? पहले टूटी-फूटी कविताएं आईं, फिर कच्ची बेहद खराब कहानियां। छह महीने तक मैंने ब्लॉग को यूं ही छोड़ दिया। फिर एक दिन जनसत्ता में छपी अपनी कहानी को ब्लॉग पर क्या डाला, लोगों को मेरे होने की ख़बर मिल गई। गिरिजेश राव, आप पढ़ रहे हैं इसे तो अपने हिस्से का आभार लेते जाइए। मुझ जैसी आलसी, अनसोशल, घुन्नी इंसान को ब्लॉगिंग की दुनिया में आपने ही ढकेला। इस बात की माफ़ी कि मैं बहुत खराब शागिर्द निकली।
उसके बाद ई-मेल्स आने लगे, दोस्त बनने लगे। बावजूद इसके कि मैं किसी ब्लॉग पर जाकर प्रतिक्रिया ज़ाहिर नहीं करती। लेकिन दावे के साथ कह सकती हूं कि बीस बड़े और रेग्युलर ब्लॉगर्स के लिखे हुए एक-एक बेनामी पोस्ट मुझे पढ़ने को दे दिए जाएं तो मैं बता सकती हूं कि कौन-सी पोस्ट किसकी लिखी हुई है।
मुझसे कई बार पूछा गया कि मैं अपने बारे में ही क्यों लिखती हूं? पत्रकार हूं, कई और विषयों पर मेरी राय भी तो हो सकती है। ये ब्लॉग मेरे लिए मेरी बुद्धिजीविता या ज़हानत को साबित करने का ज़रिया नहीं है। ये ब्लॉग एक रोज़नामचा है जहां मैं बेहद ईमानदारी से वो दर्ज करती हूं जो अपने बच्चों के लिए छोड़ जाना चाहती हूं। पहले भी लिख चुकी हूं कि मेरे बच्चों को इससे फर्क नहीं पड़ेगा कि मेरी पोलिटिकल लीनिंग क्या थी या कश्मीर के मसले पर मैं क्या राय रखती थी। लेकिन उन्हें इससे फर्क पड़ेगा कि मेरी ज़िन्दगी में उनका होना क्या मायने रखता था या एक औरत, एक इंसान होने के नाते मैं कैसे गिरती-संभलती, हारती-जूझती रही। ज़िन्दगी के बड़े पाठ अख़बारों से नहीं आते, मोटी किताबों से भी नहीं आते। ज़िन्दगी के पाठ हमारी-आपकी कहानियों से आते हैं, हमारे-आपके रोज़मर्रा के अनुभवों से आते हैं और मुझे अपने बच्चों की ख़ातिर यही पाठ छोड़ जाना है। यहां यूं भी कमबख्त क्या कालजयी हुआ करता है? वैसे भी, हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे....
मेरी ब्लॉगिंग के तीन बड़े फायदे हुए - मैं धीरे-धीरे निर्भीक, ईमानदार और बिंदास हो गई। मैंने बहुत सारे दोस्त बनाए और तीसरा सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि मैंने अपने कई बेहद अंग्रेज़ीदां दोस्तों को हिंदी पढ़ना सीखा दिया। इस्मत, मंटो और नसीर वाली पोस्ट के बाद तीन दोस्तों ने फोन किया, कैन आई बॉरो सम बुक्स फ्रॉम योर कलेक्शन? हिंदी की किताबें! ये मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है।
मेरे कई स्कूल के दोस्तों ने मुझे मेरे ब्लॉग के सहारे ढूंढ निकाला। फेसबुक पर दोस्तों की संख्या १३५ से बढ़कर पांच सौ के पार हो गई। ये भी जानती हूं कि अमेरिका, यूके, फिनलैंड और ऐसी कई फैंसी जगहों पर मेरे कई पुराने दोस्त बैठे हैं जो मेरा कच्चा-पक्का लिखा हुआ पढ़ते हैं। इनमें से कई क्रश भी होंगे, और ये सोचकर मेरे चेहरे पर बड़ी-सी मुस्कुराहट उतर आई है। मैं ठीक हूं, दुरूस्त हूं और अपनी तमाम दीवानगियों और गलतियों के बावजूद बची हुई हूं - ये ब्लॉग तुम लोगों को वही बताने का ज़रिया है दोस्तों।
बाकी, बच्चे बड़े होकर मम्मा की डायरी पढ़ेंगे तो उन्हें कुछ वैसा ही रोमांच होगा जैसे मम्मी का लिखा हुआ पढ़ने पर हमें होता है। बस दुआ कीजिए कि डायरी लिखने का ये बेसाख्ता सिलसिला बंद ना हो। बाकी शोहरत, दौलत, चाहत, किस्मत - सब आनी-जानी है।
जाते-जाते एक और बात...
जो दिखता है यहां,
मेरा एक टुकड़ा है/
जो बिखरा है टुकड़े-टुकड़ों में/
मेरा वजूद है।
12 टिप्पणियां:
200 to 2000 is not very difficult
keep writing
आपको बहुत बहुत बधाई हो, अभिव्यक्ति मन को भी माँजती है।
आप लिखते रहिये..............
हम पढते रहेंगे.....................................
शुभकामनाएँ.
अनु
200 सिर्फ गिनती नहीं होती, लेकिन इस तरह तो गिना ही जा सकता है. (आजीविका-पेशाः वाह)
यही है असली ब्लोगिंग.
आपने कई फायदे गिनवा दिए ब्लॉग लिखने के,
इस रोजनामचे को यूहीं जारी रखियेगा, आपकी सारी पोस्ट्स पढ़ी और सराही जा रहीं हैं, यह आपको भी पता है :)
२००वीं पोस्ट की बहुत बहुत बधाई...दुआ है....ये सिलसला अनवरत चलता रहे
हजारवीं टिप्पणी मेरी थी...दो हज़ारवीं टिप्पणी भी मेरी हो...:)
बधाई भी और आभार भी |
आपका ब्लॉग काफी समय से पढ़ रही हूँ - यह नहीं जानती थी कि डबल सेंचुरी हो गयी है , यह भी नहीं कि इसका श्रीगणेश करवाने का श्रेय गिरिजेश जी को जाता है | उनके लिखे की फैन तो हूँ ही, पर यह नयी बात पता चली उनके बारे में |
likhti raho ham padh rahe hai
First time here, thanks to Rachana, love your blog!!
वाकई अपने मन के उद्गार ईमानदारी से उतारना बेहद साहस का कार्य है, बधाई आपको ।
चलती रहे यात्रा..... निरंतर... अनवरत....
सादर बधाई
ये जो टुकड़ा इधर है वो बड़ा हसीं है !:)
लिखती रहिये !
एक टिप्पणी भेजें