क़तरा-क़तरा,
लम्हा-लम्हा,
जो बिखरा है
इधर-उधर
उसे सहेजना,
समेटकर रखना
मेरा ही तो काम है।
लफ़्जों में
जो फिसलते नहीं
ज़ुबां से कई बार
वो उतरे, बिखरे,
बरसे काग़ज़ पर
उस सावन की तरह
जिसका मक़सद
हरा कर देना है
मन को भी,
ख्वाबों की
बंजर ज़मीं को भी।
5 टिप्पणियां:
aapke yeh shabd man ko yun hi hara karte rahein..
A creation by heart with liable feelings .thanks .
beautiful expression .
carry on ...!!
Bahut sundar !
वाह !
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