12 फरवरी 2010
आज मेरे बारहवें बर्थडे पर पापा ने ये डायरी गिफ्ट की है। पापा ने कहा, सभी महान लोग डायरी लिखा करते थे। मुझे भी लिखनी चाहिए। सोचता हूं, इन महान लोगों को इतना लिख लेने का टाईम कब मिल जाता होगा कि महान बनते भी रहो, और अपनी महानता के बारे में डायरी भी लिखते रहो। फिर भी कोशिश करूंगा छोटा-मोटा महान बनने की।
14 फरवरी 2010
आज वैलेंटाइन्स डे है। स्कूल में सारे दीदी-भैया लोग अपने बैग में कार्ड और फूल छुपाए घूम रहे थे। जिनका चेहरा जितना खिला हुआ होगा, उन्हें उतने ही खिले हुए फूल मिले होंगे, ऐसा मेरे दोस्त फैटी ने कहा। फैटी का नाम फ़िरोज़ है। बहुत मोटा है ना, इसलिए हम सब फैटी बुलाते हैं उसको। वैसे मैं भी तुम्हें कोई नाम क्यों नहीं दे देता? सोचकर बताऊंगा।
15 फरवरी 2010
सोच लिया तुम्हारा नाम। नीले रंग के कवर वाली डायरी का नाम होगा ब्लू लेबल। पंद्रह दिन में एक्ज़ाम्स शुरू होंगे। बहुत प्रेशर है ब्लू लेबल। कितने सारे सब्जेक्ट्स पढ़ने होते हैं हमको। मैथ्स, साइंस, इंग्लिश, हिंदी, संस्कृत, हिस्ट्री, जिओग्राफी, सिविक्स, जनरल नॉलेज, कम्प्यूटर... सांस फूलने लगी मेरी। उसके बाद कीबोर्ड प्रैक्टिस के लिए हफ्ते में दो दिन सर आते हैं, और शाम को मैं स्पोर्ट्स अकादमी में क्रिकेट सीखने जाता हूं। देखा? मैंने कहा था ना टाईम नहीं होता। ऊपर से शाम को पापा लेकर पढ़ाने बैठ जाएं तो शामत ही समझो। अब कल ही की बात है। पापा हिस्ट्री पढ़ाने बैठे। अब हड़प्पा का 'ग्रेट बाथ' कितना लंबा और कितना चौड़ा था, ये याद रखकर मैं क्या करूंगा? कहते हैं पांच नंबर का क्वेशचन है, श्योर शॉट। ऊपर से इंटरनेट खोलकर बैठ जाते हैं तस्वीरें दिखाने के लिए। ये स्कूल की किताबें ही कम हैं क्या कि मैं गूगल पर आनेवाले सेवेंटी फाइव हज़ार (सॉरी, 75 की हिन्दी नहीं पता) सर्च पेज को पढ़ूं और समझूं। ख़ैर, दोस्त अभी सोने का टाईम हो गया है। बाकी कल।
17 फरवरी 2010
शाम को खेलने के बाद आज मैं थोड़ी देर के लिए कबीर के घर क्या चला गया, घर में तो तूफ़ान ही मच गया। अब मम्मी को मखीजा आंटी से पर्सनल प्रॉब्लम हैं तो मैं क्या करूं। पहले तो मुझे इतना भाषण दिया कि कबीर रईस बाप का बेटा है, उसके साथ प्ले-स्टेशन और लैपटॉप पर गेम्स खेल-खेलकर मैं बिगड़ जाऊंगा। उससे भी मन नहीं भरा तो पापा से फोन पर ही मेरी शिकायत कर दी। लेकिन मैं जानता हूं प्रॉब्लम क्या है। कबीर की मम्मी जब पीटीएम के लिए आती हैं तो सारे पापा लोग उन्हीं की तरफ देख रहे होते हैं। वैसे तो मखीजा आंटी मम्मी से बहुत स्वीटली बात करती हैं, लेकिन मैं जानता हूं कि उन्हें देखते ही मम्मी का पारा चढ़ जाता है। कोई बात नहीं। होता है मेरे साथ भी। अपनी क्लास के मयंक को देखते ही मुझे इतना तेज़ गुस्सा आता है कि मन करता है उसे पटक दूं। लेकिन मैं ऐसा थोड़े करता हूं। या फैटी और ग्रंपी को उससे बात करने से थोड़े रोकता हूं।
19 फरवरी 2010
बॉस, तुम्हारे लिए बिल्कुल टाईम नहीं है। पहले स्कूल, फिर पढ़ाई और एक्स्ट्रा एक्टिविटिज़, फिर मम्मी का चालीस मिनट का भाषण और पापा का गुस्सा... अभी एक्ज़ाम्स दे लेने दो, फिर सारी राज़ की बातें बताऊंगा।
12 मार्च 2010
आई विल बी अ फ्री बर्ड सून। सारे इम्पॉर्टेन्ट पेपर्स खत्म। अब हिंदी, संस्कृत रह गया है, मम्मी का डिपार्टमेंट। हिंदी तक तो ठीक है, ये संस्कृत समझ के बाहर की चीज़ है। मम्मी किचन में खड़ी होकर भी मुझसे पठति, पठतः, पठन्ति करवाती हैं। पानी का संस्कृत? आसमान का पर्यायवाची? गैस जलाएंगी तो पूछेंगी, पेट की आग को क्या कहते हैं? और जंगल की आग को? पापा अपने बॉस को क्या कहते हैं? हां, टफ़ टास्कमास्टर। मम्मी भी वही है, टफ़ टास्कमास्टर - टीटीएम।
14 मार्च 2010
यार ब्लू लेबल, एक्ज़ाम्स के बाद भी चैन नहीं है। मेरी टीटीएम हैं ना, वोही टफ टास्कमास्टर - नया काम दिया है मुझे। एक्ज़ाम के सारे क्वेशचन पेपर सॉल्व करके दिखाओ कि एक्ज़ाम में आख़िर किया क्या है। फिर सिक्स्थ क्लास का पूरा रिविज़न हो जाएगा! पीछेवाली गली में सारे बच्चों के खेलने की आवाज़ें सुनाई दे रही है और एक मैं हूं कि मैथ्स का पेपर लेकर बैठा हूं। आई हेट टीटीएम।
15 मार्च 2010
एक्चुएली इतनी बुरी भी नहीं है मम्मी। हम आज मॉल गए थे। सेल लगी है ना, तो ढ़ेर-सारी शॉपिंग के लिए। मम्मी ने वो सारे कपड़े खरीदे जो मैं चाहता था। एक शर्ट को छोड़कर। कितनी कूल शर्ट थी। शर्ट के साथ टाई भी अटैच्ड थी, और पीछे बेनटेन की फोटो भी छपी थी। आज हमने मेरी पसंद का खाना भी खाया। एक कविता लिखी है मैंने, सुनोगे?
"छोटा हूं, कहते हो तुम।
फिर भी रखते उम्मीद बड़ी।
कभी दोस्त कहते हो मुझको,
कभी मिलती डांट, छड़ी।
बारह का ही तो हूं मम्मा,
कितना ले पाऊंगा बोझ।
क्या थकता नहीं भाषण से,
मेरी परेशानी भी सोच।
हंसकर कर लो बात ज़रा,
सारी बात बताऊंगा।
मुझपर जो होगा विश्वास,
दोस्त तुम्हारा बन जाऊंगा।"
16 मार्च 2010
आज का दिन बिल्कुल अच्छा नहीं था। पापा-मम्मी घर में होते हुए भी एक-दूसरे से दूर रहे। मम्मी कल रात मेरे कमरे में सोईं। तुम मेरे इकलौते दोस्त हो ब्लू लेबल। वरना तो यहां सब एक-दूसरे से रूठने में ही टाईम निकाल देते हैं। मेरी छुट्टियों के पांच दिन बचे हैं बस। पांच दिन में रिज़ल्ट। ओ गॉड, प्लीज़ हेल्प। मैं घर की टेंशन और नहीं बढ़ाना चाहता।
17 मार्च 2010
आज सुबह से ही पापा मेरे पीछे पड़े हैं। मम्मी से बात नहीं हो रही ना, इसलिए झल्लाहट मुझपर। कहा, पेपर क्यों नहीं पढ़ते रोज़? कितनी पूअर जीके है तुम्हारी? लेकिन पेपर में रोज़-रोज़ क्या पढ़ूं? वही स्कैम, वही इंडिया-पाकिस्तान के झगड़े, कभी यहां इलेक्शन, कभी वहां, कभी यहां बम ब्लास्ट कभी वहां ट्रेन एक्सीडेंट। ये सब याद करके क्या होगा? एक स्पोर्ट्स पेज ठीक लगता है तो वो फिर इंडियन टीम के हारने की न्यूज़ पढ़ने के लिए तो मैं पेपर खोलूंगा नहीं ना। फिर मुझसे पूछा कि दिनभर क्या करते हो, घंटे-घंटे का हिसाब दो। घंटे-घंटे का? बड़े लोग दे सकते हैं क्या ऐसा हिसाब? दिन तो निकल जाता है बस।
18 मार्च 2010
आज चार बजे का उठा हुआ हूं। चार बजे का! कैन यू बिलीव दिस? मम्मी-पापा को फिटनेस का भूत चढ़ता है कभी-कभी। बस आज मैं भी उस भूत का शिकार बन गया। सुबह पहले कई तरह के आसन करवाए गए, फिर प्राणायाम। फिर पार्क के पांच चक्कर। आईपीएस बनना है तो ये सब करना पड़ेगा, पापा ने कहा। आईपीएस? मैं? क्यों? मैं तो कार रेसर बनना चाहता हूं। माइकल शूमाकर की तरह। किसी से कहना मत दोस्त, ये मेरा-तुम्हारा सीक्रेट है।
20 मार्च 2010
सुबह से डांट सुन रहा हूं यार। कबीर से लेकर मम्मी के फोन पर वो इमरान खान वाला गाड़ियां गाना डाउनलोड कर लिया इसलिए। पापा कहते हैं, वो मेरे म्यूज़िक टेस्ट से डिस्गस्टेड हैं। अब मैं चौबीस घंटे भजन और देशभक्ति के गीत तो नहीं सुन सकता ना। वैसे मामाजी ने एक राज़ की बात मुझे कल शाम को ही बताई। मम्मी छोटी थीं तो उन्हें टपोरी टाईप गाने बहुत पसंद थे। मामाजी ने तो एक गाना गाकर भी सुनाया जो मम्मी सुनती थीं रेडियो पर - कभी तू छलिया लगता है टाईप का कुछ। पत्थर के फूल जैसा नाम था फिल्म का। पत्थर के फूल??!!
22 मार्च 2010
पापा को आज अचानक तुम्हारी याद आई दोस्त। पूछा कि मैं डायरी लिख रहा हूं या नहीं। खुश होकर तो मैंने तुम्हारा नाम भी बता दिया। तुम्हारा नाम सुनकर पापा हंसने लगे। कहा, सही जा रहे हो बेटा। बाद में मैंने गूगल किया तो पता चला ब्लू लेबल तो किसी स्कॉच व्हिस्की का नाम है! तो इसमें हंसने वाली कौन-सी बाद हो गई भला? जॉनी वॉकर की बॉटल पर डंडा लिए गांधीजी जैसा एक आदमी छपा हुआ नहीं होता क्या? दोस्त, वैसे आज की रात ही हंसने-हंसानेवाली है। कल मेरा रिज़ल्ट आएगा, और उसके बाद...
25 मार्च 2010
संस्कृत की किताब में सुभाषितानि में कोई एक श्लोक था जिसका मतलब मम्मी ने समझाया था - संतोष में बहुत सुख मिलता है। मम्मी ने मुझे तो समझाया लेकिन खुद नहीं समझीं। अब मेरे मार्क्स पर ऐसा माहौल हुआ है घर का कि क्या बताऊं। मैं पास कर गया हूं यार। 75 परसेंट मार्क्स है। लेकिन फिर भी किसी को संतोष नहीं। पापा तो ऐसे सदमे में हैं जैसे वो ही फेल हो गए हों। तू चिंता मत करना दोस्त, दो दिन का तूफ़ान है, शांत हो जाएगा।
28 मार्च 2010
मम्मी का फेवरेट टाइमपास क्या है आजकल पता है? मेरी शिकायत। जिससे देखो, शरद पुराण लेकर बैठ जाती हैं। वो पढ़ता नहीं, बदतमीज़ हो गया है, बात नहीं मानता, टीवी देखता रहता है, सुबह टाईम पर नहीं उठता वगैरह वगैरह। कहती हैं, कार्टून नेटवर्क देखकर मैं बिगड़ गया हूं। जब मैंने कहा कि आप भी सास-बहू के सीरियल देखकर मीन हो गए हो, तो मुझसे गुस्सा हो गईं! ये कोई बात है? जब पापा एक्सएन पर एक्शन फिल्में देखकर आर्नल्ड श्वार्जनेगर नहीं बन सकते, मम्मा गंदीवाली बहू नहीं बन सकती तो मैं कैसे बेन-टेन देखकर वॉयलेंट हो जाऊंगा? सारी शिकायत मुझी से? क्या करूं यार! चल छोड़, बाद में बाकी बातें।
2 अप्रैल 2010
कल से नया क्लास। नए किताबों की खुशबू कितनी अच्छी होती है। लेकिन सिर्फ खुशबू, उनका वजन नहीं। पापा ने मैथ्स का आधा सिलेबस भी पूरा करा दिया है। वो बात अलग है कि मैं दो दिन में भूल जाऊंगा सब। मम्मी के भी बड़े-बड़े प्लान्स हैं। कीबोर्ड के साथ-साथ शायमक दावर की डांस क्लास भी ज्वाइन करवा रही हैं मुझे। मैं क्या-क्या करूं यार? पापा के बदले आईपीएस और मम्मी के बदले डांसर मुझे ही तो बनना है। गर्ररररररर....
नोट: ये शरद का आखिरी नोट था। 2 अप्रैल की दोपहर अलमारी साफ करते हुए मम्मी के हाथों में शरद की डायरी आ गई। फिर तो जो बवाल कटा कि पूछिए मत। मम्मी अबतक अपने दिए 'संस्कारों' को कोस रही हैं कि बेटा उनकी शिकायत एक अदद-सी डायरी से करता है! सबकुछ इतना जल्दी हुआ कि शरद को अपने दोस्त को अलविदा कहने का भी मौका ना मिला और बढ़े हुए थायरॉड और हॉरमोनल चेंजेस से परेशान मम्मी ने गुस्से में आकर डायरी के पन्ने-पन्ने अलग कर दिए। बहरहाल, हम एक उभरते लेखक के बेबाक लेखन से वंचित रह गए...
7 टिप्पणियां:
घोर अत्याचार ! मम्मी-पापा ने तो शरद को अपना दोस्त बनाया नहीं ...ले दे के एक डायरी से दोस्ती की थी वो भी इन महान लोगों ने टुकड़े-टुकड़े कर दी. अभी वोटिंग हो जाय तो सारे वोट शरद को मिलेंगे.
हम जाने-अनजाने बच्चों का बचपन छीने ले रहे हैं...अपनी कुंठित महत्वाकांक्षाओं के लिए बच्चों का स्तेमाल ? एक विचारणीय पोस्ट.
रोचक!
सुंदर प्रस्तुति !!
उस दोस्त को फिर से बुलाया जाये.......बहुत अच्चा लग रहा था.. कि आचानक से सब खतम क्यूँ हो गया?
badhiya...lage raho.
भई हम तो सोच रहे थे की आजतक की डायरी पढ़ने को मिलेगी पर मम्मी का गुस्सा उफ्फ्फ..
मैं तो ये सोच कर आया था कि कोई अपने जैसा घुमक्क्ड मिलेगा, लेकिन यहाँ तो एक अलग तरह का घुमंतु है।
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