शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

डायरी के पुराने पन्नों से

टुकड़े टुकड़ों में ख्याल...



"तुम अपने ख्वाब
बचाकर रखो
कि कल दुनिया
तुम्हारी आँखों में झांके
तो जिंदगी देखे!"



"बहाने और भी होते जो ज़िन्दगी के लिए
हम इक बार भी तेरी आरज़ू न करते"



"कहाँ ढूंढूं मैं,
कि गुम हूँ कई बरसों से/
मुझको ढूँढता फिरता है
अक्स मेरा"




"घेरकर मुझको खड़ी रुस्वाइयां चारों तरफ़/
और मेरे भीतर हैं तनहाइयां चारों तरफ़/
मुझको मैं ही नज़र आती नहीं अब, क्या कहूँ/
दिखती हैं मुझको परछाईंयां चारों तरफ़"




"जाने किस साये की तलाश रही मुझे उम्रभर/
जितना करीब आते गए, दूरियां बढती गयीं"


१९९६ की डायरी से

2 टिप्‍पणियां:

Prashant Raj ने कहा…

bahut umda...naye saal ke awsar par kuch vishesh likh paao! :)

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर ....अच्छी पेशकश