टुकड़े टुकड़ों में ख्याल...
१
"तुम अपने ख्वाब
बचाकर रखो
कि कल दुनिया
तुम्हारी आँखों में झांके
तो जिंदगी देखे!"
२
"बहाने और भी होते जो ज़िन्दगी के लिए
हम इक बार भी तेरी आरज़ू न करते"
३
"कहाँ ढूंढूं मैं,
कि गुम हूँ कई बरसों से/
मुझको ढूँढता फिरता है
अक्स मेरा"
४
"घेरकर मुझको खड़ी रुस्वाइयां चारों तरफ़/
और मेरे भीतर हैं तनहाइयां चारों तरफ़/
मुझको मैं ही नज़र आती नहीं अब, क्या कहूँ/
दिखती हैं मुझको परछाईंयां चारों तरफ़"
५
"जाने किस साये की तलाश रही मुझे उम्रभर/
जितना करीब आते गए, दूरियां बढती गयीं"
१९९६ की डायरी से
2 टिप्पणियां:
bahut umda...naye saal ke awsar par kuch vishesh likh paao! :)
बहुत सुन्दर ....अच्छी पेशकश
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