शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

इश्क़, ख़ुदा और पछतावा

कहाँ से शुरु करे कोई जब छूटी हुई दास्तानों का सिरा मौसमों की आवाजाही में भटक गया हो कहीं।

ज़िन्दगी क़ायदों के राग अलापती है और बेतरतीबी से बाज़ नहीं आती। बच्चे गोद से उतरकर शहर की सड़कें नापने लगे हैं। तोतली बोलियों की ज़ुबान पुख़्ता, भरे-पूरे निर्देशों में तब्दील हो चुकी है। जब बच्चों की अभिव्यक्ति का अंदाज़ बदल गया है तो फिर ज़िन्दगी कैसे वैसी की वैसी रहे जनाब? ज़िन्दगी भी बदली है, और हमने उसके मायने भी बदल डाले हैं। उस गंभीर, दार्शनिक मुद्दे पर गहन बातचीत फिर कभी।

लेकिन वाकई वजूद से जुड़े सवाल बदल गए हैं। मैं कौन हूं और कहां हूं, क्यों हूं जैसे सवालों की जगह कहीं ज़्यादा व्यावहारिक सवालों ने ले ली है। एटमॉस्फियर में कितनी परतें होती हैं और हर लेयर का काम क्या है? फ्रिक्शन और ग्रैविटी के बीच का रिश्ता क्या है? पार्ट्स ऑफ स्पीच कितने किस्म के होते हैं? मिक्स्ड फ्रैक्शन को सिर्फ दो स्टेप में डेसिमल में कैसे बदलेंगे? फोटोसिंथेसिस की परिभाषा क्या है?

सवाल दरिया की लहरे हैं। मैं नाचीज़, नासमझ, मूढ़ उनमें कतरा-कतरा विकीपीडिया के लिंक्स डालती रहती हूं।
मेरे बालों में अब इतनी ही सफेदी उतर आई है कि मैं उन्हें मेहंदी की लाल परतों के नीचे छुपाने की नाकाम कोशिश भी नहीं करती। इतना ही सुकून आ चला है भीतर कि जिस्म का फ़िजिक्स न दिन के चैन पर हावी होता है न रातों की नींद उड़ाता है। पढ़ लिया बहुत। पढ़ लिया मर्सिया कि उम्र अब चेहरे पर अपने रंग दिखाने लगी है। आंखें कमज़ोर होती हों तो हों, नज़र तो नहीं बदली न। उंगलियों पर शिकन पड़ती हो तो पड़े, मोहब्बत पर पकड़ तो ढीली नहीं हुई। पैर कमज़ोर हुए हों तो क्या है, कोई बरसों पुराना दोस्त, कोई अज़ीज़, कोई जानशीं महबूब एक बार बुलाओ और मैं न आऊँ तो फिर कहना। दिन घट रहे हैं तो क्या हुआ? ज़िन्दगी तो बढ़ रही है हर रोज़।  

सुकून है। है सुकून कहीं भीतर। उम्मीद के आख़िरी पुल पर ही सही, लेकिन बैठा है वो कहीं - महबूब। ज़र्रा-ज़र्रा नूर बिखराता, वस्ल की डूबती-उतराती शामों को रौशन करता, हम आशिक़ों के सब्र का इम्तिहान लेता है वो। कई जिस्मों, कई ज़िन्दगियों से होकर कई सूरतों में उसको ढूंढते हुए जो हर बार ये रूह मौत और ज़िन्दगी के बीच की जो हज़ारों यात्राएं करती है, उसी के लिए करती है।

इसलिए सुनो ओ इश्क़ में डूबे हुए एक मारी हुई मति के बदकिस्मत सरताज, जिससे मिलना प्यार से मिलना। उंगलियों से यूँ छूना कि कई जन्मों की गिरहें खुलकर फ़ानी हो जाएं। साबुन के टुकड़े-सा यूँ पिघलना हथेलियों पर कि कई जन्मों के पाप धुल जाएँ। जितना बार गुज़रना अपने किसी महबूब के जिस्म से होते हुए, ऊँचे पहाड़ों और गहरी घाटियों में उलझी-हुई बेचैन हवाओं की तरह गुज़रना। उसके जिस्म को ख़ुदा का ठौर समझना और अपने इश्क़ को सज्दा।

जिस दिन इतनी निस्वार्थ मोहब्बत तुममें आ जाएगी, उस दिन तुम वस्ल और फ़िराक़ की दुश्चिंताओं से आज़ाद हो जाओगे। फिर मत पढ़ना तुम गीता और पुराण। मत रटना आयतें। मत सुनना ओल्ड टेस्टामेंट से मूसा की ज़िन्दगी और मौत की कहानियां। उस दिन - उस एक दिन - बन जाओगे तुम इंसान।

लेकिन तब तक चलो गमलों में बंद तुलसी के सेहत की फ़िक्र करें। रंग-बिरंगे गेंदे के फूलों की मालाएँ गूंधे। अगरबत्ती और धूप की ख़ुशबुओं में छुपाएँ अपने मन के कोनों में चढ़ी मैल के दुर्गंध। चढ़ते हुए सूरज के सामने हाथ बांधे रटते रहें अपने मुरादों की अंतहीन सूचियाँ और ढ़ारते रहें शिवलिंग पर गंगा के कई तीरों से जुटाया गया जल।

तब तक चलो फिर से झाड़ लें अपने जानमाज़ की धूल और सभी मेहराबों का मुँह मोड़ दें काबे की ओर।

सुनो, जमा कर लो दुनिया भर की मोमबत्तियाँ और रौशन कर डालो एक-एक गिरिजाघर को कि दिलों के अंधेरों को रौशन करने का कोई और रास्ता सूझता नहीं है।

चलो न ढूंढे अपना कोई एक महबूब दरियादिल ख़ुदा जो आसानी से हमें हमारे गुनाहों से निजात दिला सके।

...कि टूटकर मोहब्बत होती नहीं हमसे, और गुनाहों की गठरी अब ढोई नहीं जाती और।

11 टिप्‍पणियां:

Pooja Priyamvada ने कहा…

As always flowing meaningful,insightful poetic prose.

sushil ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
sushil ने कहा…

अच्छा लगा है जी।

Shilpi_MannPakhi ने कहा…

फिर एक बार तुमने मेरे दिल की आवाज़ को गूंथ दिया अपने शब्दों में।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हर दिन उठता हूँ तो लगता है कि अभी भी वही हूँ, एक अंश भी नहीं बदला। पुनः प्रस्तुत विकल्पों की लंबी श्रंखला।

जज़्बात - ए - स्याही ने कहा…

pehli bar apki kalam se itne shayrana lafjon ka kamal dekha hai Anu ji,
:)

Unknown ने कहा…

गज़ब, मजा आ गया | शब्दों का चयन बहुत अच्छा लगा, आपका पहला पोस्ट है लेकिन अब मैंने आपके ब्लॉग को अपनी लिस्ट में सेव कर लिया है और मैं जब भी वक़्त मिलेगा आपकी सारी पोस्ट पढने की कोशिश करूँगा
Hindi Shayari

Jyoti Dehliwal ने कहा…

सही कहा आपने। जिसे निस्वार्थ मोहब्बत करना आ गया हो, उसे गीता कुराण पढने की कोई आवश्यकता नहीं है।

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर पोस्ट है अनु। ❤ हमेशा की तरह।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

http://bulletinofblog.blogspot.in/2016/09/1.html

Unknown ने कहा…

इश्क़ दी इबादत न कर बंदिया, जे इश्क़ सच्चा ता तेनु मिल ही जाना।
इश्क़ करना ता रूहों कर, शरीर ता एथे ही मुक जाना।


Hindi
इश्क़ की इबादत मत कर तू,अगर इश्क़ सच्चा है तो तुम्हे मिल ही जाएगा।
इश्क़ करना है तो आत्मा का आत्मा से करो, क्योंकि शरीर तो मिट्टी का है और मिट्टी में ही मिल जाएगा।