शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

एक दोपहर शनिवार की

हमने रुककर फूलों की खुशबू ली है,
आंखें बंद कर गुलाबी और
पीले फूलों को पहचाना है अलग से।
तैरती मछलियों के झुंड गिने हैं
पानी पर चलती लकीरों के बीचोंबीच।
देखा है तोते के जोड़े को
डालियों पर फुदकते हुए।
हमने फड़फड़ाते बतखों के पंख से
गिरती ठंडी बूंदों की सिहरन को
आंखों से छुआ है आज।
हमने गीली घास को
पैरों के तले देखा है कुचलते हुए,
फिरंगी दोस्तों के कैमरे में
करने दिया है कैद
हमने अपनी खुमारी को।
हम - मेरे बच्चे और मैं -
आज लोदी गार्डन में
दुपहर गुज़ार कर
लौटे हैं घर दोस्तों...

3 टिप्‍पणियां:

Manoj K ने कहा…

badhiya hai jee.. lagta hai khoob masti hui hai ..))

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत बढ़िया दृश्य प्रस्तुत किया ....लोदी गार्डन की सैर ही करा दी ..

के सी ने कहा…

लोदी गार्डन इस कविता को सुन कर बहुत खुश होगा कि ये बेहद आत्मीय है. बहुत कम लोगों ने इस तरह उससे प्रेम किया होगा.