tag:blogger.com,1999:blog-361816811593679767.post2911301143807591066..comments2023-10-06T18:06:09.288+05:30Comments on मैं घुमन्तू: याद-ए-सीवान से सीवान तकAnu Singh Choudharyhttp://www.blogger.com/profile/00504515079548811550noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-361816811593679767.post-9643054399002522422011-10-29T18:56:52.168+05:302011-10-29T18:56:52.168+05:30आपकी लेखनी पर वैसे ही कुछ कहने के बजाय उसे महसूसना...आपकी लेखनी पर वैसे ही कुछ कहने के बजाय उसे महसूसना ज्यादा मुफीद रहता है मगर यह तो बस कुछ न पूछिए -फेसबुक पर कुछ भाव पहले से ही संवादित हो गए थे उन्हें पूरी समग्रता में यहाँ पाकर सन्न हूँ ! <br />कुछ भी हो जैसा भी हो शहर अपना है ....अंगूठे में जहर फैलने पर क्या तुरंत उसे काट दिया जाना चाहिए ?Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-361816811593679767.post-37845550746925093882011-10-29T00:45:31.050+05:302011-10-29T00:45:31.050+05:30इसे पढ़ तो कुछ दिन पहले लिया था…अब कुछ कह रहे हैं…...इसे पढ़ तो कुछ दिन पहले लिया था…अब कुछ कह रहे हैं…बिहार के सीवान से सबसे अधिक लोग अरब देशों में रहते हैं…और हाँ, सीवान जिले के लोगों से जब भी पाला पड़ा है, एक अनावश्यक किस्म का अहंभाव दिखा है…यहाँ उद्देश्य निन्दा नहीं है…राजेन्द्र बाबू का सीवान तो बस नाम का रह गया है…आगे फिर कभी कहेंगे कुछ, अगर लगा तो…चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-361816811593679767.post-79919992610537495932011-10-24T13:35:13.601+05:302011-10-24T13:35:13.601+05:30हमारे बैच के किसी भी क्लास मेट ने इसे इस रूप में च...हमारे बैच के किसी भी क्लास मेट ने इसे इस रूप में चित्रित न किया। हो सकता है तब हम बिहार के शहरों से ही बिहार के दूसरे शहर की तुलना करते तो ऐसा कुछ अटपटा न लगता। अब उन दिनों लोग हमारे मुज़फ़्फ़रपुर को मच्छरपुर कहते थे। गंदगियां होंगी तो मच्छर तो भरे रहेंगे ही..।<br /><br />लेकिन राजेन्द्र बाबू का कद इतना ऊंचा था कि सीवान के हर छात्र में उनका ही अंश नज़र आता था।<br /><br />संस्मरण एक साहित्यिक कृति से कम नहीं है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-361816811593679767.post-5672334778878404132011-10-24T10:51:06.019+05:302011-10-24T10:51:06.019+05:30हमें तो सिवान = शहाबुद्दीन लगता है। पास के जीरादेई...हमें तो सिवान = शहाबुद्दीन लगता है। पास के जीरादेई के राजेन्द्रबाबू थे, पर सिवान पर उनका प्रभाव नहीं दीखता।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-361816811593679767.post-48598616498466031502011-10-24T07:01:29.693+05:302011-10-24T07:01:29.693+05:30जीवन की पेचीदगियों के बीच जीने की सहज राह...
सीवान...जीवन की पेचीदगियों के बीच जीने की सहज राह...<br />सीवान, शब्द के साथ गुजरात का दोहद याद आता है, अर्थ संधि-रेखा पर, मानों बौद्ध 'मज्झिम पटिपदा'Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-361816811593679767.post-56297981899658777162011-10-24T03:32:38.270+05:302011-10-24T03:32:38.270+05:30सीवान तो बदायूँ का बिहारी संस्करण लग रहा है। सब कु...सीवान तो बदायूँ का बिहारी संस्करण लग रहा है। सब कुछ वैसा ही है सिवाय ट्रैक्टर की बैट्रियों के अनूठे प्रयोग के।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-361816811593679767.post-81485483387224402782011-10-23T23:42:59.766+05:302011-10-23T23:42:59.766+05:30सही शब्द है सीवान के संस्मरण के लिए..लव हेट। नफरत ...सही शब्द है सीवान के संस्मरण के लिए..लव हेट। नफरत भी प्यार की निशानी है। दिल से लिखा है आपने। दिल से लिखी बातें अच्छी लगती हैं।<br />और लिखिए सीवान के संस्मरण । लाख बुरा हो पर साहित्य की पूरी रसद है इसमें।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-361816811593679767.post-43678148488833829262011-10-23T21:48:26.205+05:302011-10-23T21:48:26.205+05:30इन सार्वजनिक पिक्चर देखाई वाली यादें पढ़ कई कई संस...इन सार्वजनिक पिक्चर देखाई वाली यादें पढ़ कई कई संस्मरण कौंध गये। <br /> कुछ इसी तरह की फिल्मों को मैंने बचपन में अपने यहां मुंबई में परदे पर देखा है। दरअसल मेरे पड़ोस में ही एक स्मगलर रहता था ( हाजी मस्तान के जमाने का)। वही पूरे इलाके को परदे पर फिल्में दिखवाता था। <br /> <br /> एक बार तो उसने पूरे एक महीने लगातार परदे पर फिल्में दिखलाया था। बाद में जब उस पर पुलिस की दबिश पड़ी तो वीसीआर पर उतर आया, परदे पर फिल्में तब भी यदा-कदा लोगों को दिखाता रहता। बाद में अचानक कुछ ऐसा हुआ कि उसका सारा ऐश्वर्य धराशायी हो गया और उसकी बेटी जो कभी भी कार छोड़ किसी और वाहन से स्कूल न जाती थी वह करीब आठ दस साल पहले मुझे एक निर्माणाधीन इमारत में मजदूरी करती दिखी। बीड़ी या सिगरेट में कुछ मिलाकर पीने की उसे लत सी लग गई है। <br /><br /> सोचने लगता हूं तो लगता है जैसे सारा कुछ इत्तिफाक है, कब क्या हो जाय कहा नहीं जा सकता :)सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.com