tag:blogger.com,1999:blog-361816811593679767.post2146768963946340638..comments2023-10-06T18:06:09.288+05:30Comments on मैं घुमन्तू: ओह! कलकत्ताAnu Singh Choudharyhttp://www.blogger.com/profile/00504515079548811550noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-361816811593679767.post-32715046488837060532012-12-27T15:48:55.844+05:302012-12-27T15:48:55.844+05:30nice view to see a city as wel as description...nice view to see a city as wel as description...Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/01580911781392668481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-361816811593679767.post-43015110032388828272011-12-31T11:41:18.962+05:302011-12-31T11:41:18.962+05:30कलकत्ता तो जीवन के गहरे रहस्य छिपाये है, अपने अन्द...कलकत्ता तो जीवन के गहरे रहस्य छिपाये है, अपने अन्दर।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-361816811593679767.post-26806726376481951012011-12-30T06:12:36.689+05:302011-12-30T06:12:36.689+05:30संस्मरणों में हमेशा कुछ ऐसा होता है जो गृह विरही स...संस्मरणों में हमेशा कुछ ऐसा होता है जो गृह विरही सा भाव संचारित करता है भले ही कहीं किसी का कोई स्थाई ठीहा हो या नहीं ....<br />यहाँ केवल यह कहना है कि ज़िंदगी में उत्तरोत्तर कहीं भी जाने पर बिना ज्यादा लोगों को बताये काम धाम कर लौटने की ही भावना प्रबल होती जाती है ...मैं भी इसे अब शिद्दत के साथ महसूस करता और क्रियान्वित करता हूँ!:(Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-361816811593679767.post-64186206495326974432011-12-29T21:15:14.916+05:302011-12-29T21:15:14.916+05:30कलकत्ता, चौरंगी वाले शंकर की नजर से देख कर योग-वि...कलकत्ता, चौरंगी वाले शंकर की नजर से देख कर योग-वियोग का हिसाब लगाया जा सकता है. हमें फ्लरीज के बजाय फिरपोज के दिन अधिक याद हैं.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-361816811593679767.post-56625828712105900482011-12-29T20:55:56.298+05:302011-12-29T20:55:56.298+05:30संस्मरण के बहाने सुंदर आलेख ।
मैं तो केवल एक बार ...संस्मरण के बहाने सुंदर आलेख । <br />मैं तो केवल एक बार ही गया हूँ..वह भी तब जब मैं सात या आठ में पढ़ता था। आपकी पोस्ट ने बहुत सी यादें ताजा कर दीं क्योंकि शुरूआत में आपके लिखने का अंदाज ऐसा है जैसा मैने देखा था मतलब वैसा ही जितना मेरे जेहन में है.।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.com